आज जिसे देखो गरीबी की बात करता है। नेता से लेकर अभिनेता तक जिसको देखो एक ही अलाप राग रहा है : गरीबी गरीबी गरीबी!!!!!! इनको शायद यह भी नहीं मालूम की जो गरीब होता है,वह इतना आत्मसम्मानी होता है, जो किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता। कन्हैया जिसके लिए उसके समर्थक चिल्ला रहे है कि “वह एक गरीब परिवार से है और उसके माँ-बाप बड़ी कठिनाई से तीन हज़ार रूपए में गुजारा करते हैं। ” यह भी बात नहीं भूलनी चाहिए , कि जिस छात्र के माता-पिता निर्धन हो,उसे शर्म आनी चाहिए कि वह देशविरोधी नारे लगाये या नारे लगाने वालों के साथ खड़ा हो।
जब से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” का नारा दिया , मेरा अनुभव है ,शायद गलत हूँ ,कि “गरीबी एक स्वांग अधिक और वास्तविक कम ” प्रतीत हो रहा है। नेताओं के चाल-चलन देख जनता इतनी होशियार हो गयी है, पूछों नहीं। जनता देख रही है कि कोई जाति के नाम और कोई धर्म के नाम पर पार्टियाँ बनाते समय गरीब होते/होती है, लेकिन नेतागीरी चलने पर इतना धन अर्जित कर लेते/लेती हैं कि उनकी कम से कम तीन पीढ़ी को कमाने की जरुरत नहीं,फिर हम क्यों पीछे रहें। तर्क में दम इतना है कि किसी भी नेता में नकारने का साहस नहीं।
बच्चों के नर्सरी में दाखिले को ऑन लाइन किया, बहुत अच्छा किया। लेकिन इस ऑनलाइन दाखिले में क्या-क्या धांधलियां हो रहीं है, उससे सरकार बिल्कुल अंजान है। गरीब होने का स्वांग खेला जा रहा है। जबकि गरीब है नहीं। तीन-तीन मकान, तीन टैक्सियाँ किराये पर और चौथी स्वयं चला रहा है। महीने की एक लाख से अधिक आय ,फिर भी गरीब। क्योंकि ड्राइवर है।
सुनिए हकीकत
19 फ़रवरी की रात्रि को मेरे बड़े भाई स्वर्ग सुधार गए। जगह दूर थी तो सुबह ही निकलने का तय हुआ। कैब बुक की। बच्चों के दाखिले पर चर्चा चल रही थी। ड्राइवर गांधी नगर का रहने वाला था। तुरंत ड्राइवर बोला कि मेरी लड़की का अमुक स्कूल (जमुना पार नामी स्कूल) में दाखिला हो गया,सब कुछ फ्री ,किताबें,ड्रेस, जूते ,फीस भी कम। गरीब कोटे में हो गया। अपनी कमाई को देखते हुए एक वकील से जब आय का अफ्फैडवित बनवाया तो उसने सलाह दी कि तेरे अकाउंट में जो रूपए हैं खर्च कर, जो कुछ भी ख़रीदे क्रेडिट कार्ड से खरीद , खातों की अगर जाँच हुई और खाते में इतना पैसा हुआ तो तेरी लड़की का दाखिला रद्द हो जायेगा। बाबूजी आप भी ऐसे ही करो। जब उससे पूछा “मकानों का किराया ,टैक्सियों का किराया, ये सब। … ” जवाब मिला :अपना क्या है ? कुछ नहीं। सब कुछ माँ, पिताजी, और पत्नी के नाम।नेता क्या करते हैं, ऐसे ही तो करते हैं चीखते रहो।” ये है गरीबी स्वांग का सच। जबकि लोग पांच से दस लाख रुपए लिए खड़े हैं। जब बच्चा बड़ा होकर सुनेगा कि स्कूल के दाखिले में मेरे माँ बाप ने लाखों रुपए डोनेशन या रिश्वत में दिए हैं, स्पष्ट है भ्रष्ट तरीके अपनाएगा। देश से भ्रष्टाचार कहाँ से दूर होगा ?जब नीव ही भ्रष्टाचार की रखी गयी है, उस स्थिति में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना करना ही व्यर्थ है।
मैंने एक धनी फिल्म वितरक को बहुत ही निकट से देखा है। नाम था एम.बी.एल.निगम। उनकी एक फिल्म ऐसे फ्लॉप हुई कि फिल्म के रिलीज़ होने के ही दिन ऑफिस बंद हो गया। वितरक पैरों से सिर तक कर्जे में। पार्टनर दगा दे गया। उस संकट की घडी में साथ दिया उस समय के चर्चित निर्माता, निर्देशक और अभिनेता कुमार एवं निर्माता कमाल अमरोही ने। यदि बम्बई में रहते फिल्म पाकीज़ा पूरी हो गयी होती प्रोडक्शन कंट्रोलर में उनका ही नाम होता। अपने किसी भी बच्चे की स्कूल से न फीस माफ़ करवाई और न ही कोई सहायता।माँ शन्नो देवी ने सिलाई और बुनाई कर अपने पति से कन्धे से कन्धा मिलाकर उस संकट की घडी में साथ देकर अपने अपने परिवार को समाज में मान-सम्मान से ग्रस्त नहीं होने दिया।
कहते हैं जिस समय यह परिवार घोर आर्थिक परिस्थितियों से झूझ रहा था तब एक पैसे की चार दही-सोंठ की पकोड़ी लो पापड़ी को या गोलगप्पे। किसी ने इनके बच्चों से यह भी पूछने का साहस किया “भाई घर में चूल्हा जला है या नहीं रोटी पकी है या नहीं, चलो आओ कुछ खा लो। ” कई बार तो समस्त परिवार को गुड़-चने खाकर ही दिन बिताना पड़ता था। खुद पानी पीकर सोते,लेकिन अपने बच्चों को भूखा नही सोने दिया। किस तरह दिल पर पत्थर रख अपने बच्चों कर लालन-पालन किया, बच्चों से ज्यादा माँ-बाप ही विष पीते रहे। किसी पर कोई अहसान नहीं किया था, बच्चों का लालन-पालन करना उनका फ़र्ज़ था; परन्तु जब वही बच्चे अपने माँ-बाप के अधूरे कामों एवं आदर्शों पर नहीं चले, उन माँ-बाप के दिल पर क्या बीतेगी। फिर भी माँ-बाप कभी बच्चो का अहित नहीं सोंच सकते। क्योंकि यदि बच्चों को तकलीफ होगी उनकी आत्मा रोएगी। लेकिन उनकी तड़पन किसी को दिखाई नहीं पड़ेगी।
कहने का अभिप्रायः केवल इतना ही है कि देश में न जाने कितने निर्धन होंगे जो अपने अहम् एवं मर्यादा की चादर को फैंक तमाशबीन नहीं बनना चाहते। लेकिन इन तथाकथित गरीबों के चक्कर में वास्तव में जो गरीब हैं उनतक सरकारी सहायता नहीं पहुँच पाती। ऐसे लोगों को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए। यह निर्णय आप को करना है। अभी कुछ दिन पूर्व ही एक हिंदी दैनिक में अंतिम पृष्ठ पर एक भिखारी का समाचार प्रकाशित हुआ था “करोड़पति भिखारी।….” उसके पास से तीन या चार एटीएम कार्ड्स ,दो आलीशान मकान और लाखों का बैंक बैलेंस।
एक किस्सा और गरीबी का। दिल्ली की जामा मस्जिद के पास एक सुन्दर लड़की अपनी माँ के साथ “अल्लाह के नाम पर कुछ मदद कर दो मेरे भाई। … ” भीख मांगती थी।माँ-बेटी की एक विशेषता थी कि कभी निगाह ऊपर नही की। झोली में पैसे या नोट डालने वाला कौन है नहीं मालूम। कुछ समय पूर्व जब उन माँ-बेटी के बारे में जानकारी ली ,मालूम पड़ा कि भीख मांग कर वो तो धन्नासेठ बन गयी थी। अब उसका निकाह हो गया तीन/चार बच्चों की माँ बन गयी है। उन सज्जन ने आगे बताया कि “जनाब शादी में कार दी है। बड़ी शानदार शादी हुई। उसके तीन टैक्सियाँ तो किराये पर चल रही थीं। “
गरीबी का एक और किस्सा
लगभग हर व्यक्ति भिखारी, भूखे एवं अपाहिज़ को दान देने में कोई गुरेज़ नहीं करता। लेकिन जब वही अपाहिज स्मैक का सेवन करे, दुःख होता है। नियमित जब सुबह घूमकर आता हूँ, बाजार मटिया महल में स्मैक खरीदारों की ऐसी भीड़ होती है पूछो नहीं। स्मैक बेचने वालों के दिल में भी दया भाव होता है, मालूम पड़ता है, जब एक अपाहिज की ट्रॉली आ रही होती है, आवाज़ सुनते ही तुरंत सबको छोड़ उस अपाहिज को स्मैक दी जाती है।
ऐसे में एक और स्मरण सुनिए। नौकरी की तलाश थी। जामा मस्जिद डाकघर से रजिस्ट्री करवाते थे। एक दिन रजिस्ट्री करने वाले सज्जन से पूछा “ये मनीऑर्डर काउंटर पर भिखारिओ की इतनी लम्बी लाइन “, जवाब मिला “बेटा जिसने जामा मस्जिद डाकघर नौकरी कर ली, ज़िंदगी में किसी भिखारी को भीख नहीं देगा। जिन पतों पर मनीऑर्डर जा रहे हैं ,जाकर देखो कोठियाँ बनी हुई हैं। “
झुग्गी निवासी
झुग्गी में कौन रहता है ? गरीब ! झुग्गी में देखो टेलीविज़न ,फ्रिज ,कूलर वीसीआर क्या नहीं है ,सब सुविधाएं उपलब्ध। बिजली चोरी की। पानी फ्री का। जब कोई कार्यवाही होगी , हमारे ही जनप्रतिनिधि नेतागीरी चमकाने सड़क पर उतर आएँगे।
बनावटी गरीब
मुसलमानो के बारे में आम चर्चा क्या जगज़ाहिर है “अजी बेज़ारे गरीब हैं। ” पचास-साठ लाख का फ्लैट खरीदना , फ्लैट में हर सुविधा , बिजली चोरी ,पानी चोरी। गरीब है भइया।”
उस कैब ड्राइवर ने जो नेताओँ का उदाहरण दिया था , गलत नहीं था। बिल्कुल सही था।क्योंकि आज राजनीति जनसेवा नहीं,एक व्यापार बन गयी है। आते जीरो है और बन जाते है करोड़पति। गरीबी के नाम पर वोट मांगते है, और जनता भी गरीब बन इनको बेवकूफ बनाकर अपनी जेब भरते हैं। गरीबी के नाम पर आम जनता को मूर्ख बनाया जाता है और आम नागरिक भी मूर्ख बन जाता है। और जो सुविधा असली गरीब को मिलनी चाहिए ,उस तक जीरो दशमलव भी नहीं पहुँच पाती।
क्या है गरीबी का अर्थशास्त्र ? आज शोर ज्यादा है और काम कम। जब प्राइमरी में थे प्रतिदिन दूध मिलता था। न कोई विज्ञापन या न कोई चर्चा। और आज तो वातावरण ही बदल गया है।
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