एक शेर है…
“सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के वसूलों से.
कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से.”
कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से.”
पिताश्री एम.बी.एल.निगम |
मेरे लिखे लेख पढ़ पाठक अक्सर यही अनुमान लगाते है कि “शायद मै मुस्लिम विरोधी और कट्टर हिन्दू हूँ “, वास्तव में अपने जीवन में जो लिखा पिताश्री स्व मगन बिहारी लाल निगम से मिले ज्ञान के कारण , उसी को आधार बनाकर लिखता हूँ। उन्होंने वास्तविक इतिहास पढ़ा था। क्योंकि उनके अध्ध्यन काल में ईश्वरी प्रसाद द्वारा लिखित इतिहास पढ़ाया जाता था।
जबकि आज छद्दम इतिहासकारों का वोट-बैंक आधारित इतिहास पढ़ाया जाता है। महात्मा गांधी के भी घोर विरोधी थे, क्यों विरोधी थे यह पत्रकारिता में आने पर ही ज्ञात हुआ। मेरे पिताश्री कहते थे कि “देश आज जिन विषम परस्थितियों से गुजर रहा है, इसका ज़िम्मेदार कोई और नहीं महात्मा गांधी है। देश की न जाने कितनी पीढियां इस दर्द को झेलेंगी। गांधीवाद जब तक जीवित रहेगा, देश साम्प्रदायिकता और जात-पात की आग में जलता रहेगा। नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी को मारा जाना देश में हित में बताते थे।” उनके इस कथन में पीड़ा थी ,दर्द था। जो आज शत-प्रतिशत दुनिया के समक्ष है, लेकिन वोट-बैंक के भूखे पाखंडी नेता वास्तविकता को जगजाहिर नहीं होने दे रहे। मैंने एक हिंदी पाक्षिक के संपादन काल में अपने स्तम्भ “झोंक आँखों में धूल– चित्रगुप्त" में लिखा था कि “लाल किला शाहजहाँ ने नहीं हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने नाना अनंतपाल तोमर-ll ने बनवाया था।
मुस्लिम से इस लेखन पर खूब गालियों की सौगात भी मिली ,क्योंकि रहता मुस्लिम मोहल्ले में हूँ। लेशमात्र भी चिंता नहीं की। 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा भारतीय जनता पार्टी पर इतिहास और भूगोल को बिगाड़ने के आरोप लगाये जाने पर, एक बार फिर अपने स्तम्भ में शीर्षक “प्रधानमंत्री राष्ट्र को जवाब दो !” के अंतगर्त प्रश्न किये थे कि :-
“1. 1947 से लेकर आप तक हर प्रधानमंत्री ने लालकिले पर तिरंगा फहराया, इसका वास्तविक इतिहास क्या है ?
2. लालकिला किस वर्ष में बना था ?
3. जब लालकिला बना था ,तब किस नाम से चर्चित था ?
4. इसका वास्तविक निर्माता कौन है ?
5. ताज महल में दो कमरे क्यों बंद हैं?
6. कुतुबमीनार किस सन में बनी थी?
7. हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने जो सात-मंज़िला स्तम्भ बनाया था, कहाँ है ?
8. ज़मीन खा गयी या आसमान डस गया ?
9. कुतबुद्दीन ऐबक एक गुलाम था, क्या एक गुलाम इतना ऊँचा स्तम्भ बना सकता है?
10. सम्राट चौहान द्वारा निर्मित सात-मंज़िला स्तम्भ किस नाम से चर्चित था?
इसी भांति अयोध्या मुद्दे पर पाखंडी राज नेताओं से मालपुए खाने के चक्कर में इतिहासकारों ने विवादित बना दिया। 6 दिसंबर को ढांचा गिरने उपरांत जब न्यायालय के संरक्षण में खुदाई हुई, उसमें मंदिरों का मलवा, खंडित मूर्तियां एवं फर्श निकले। लेकिन तथाकथित इतिहासकारों ने तब भी विवाद को सुलझने नहीं दिया।
आज उसी पर प्रकाश डाल रहे हैं पुरातत्ववेत्ता डॉ. के. के. मुहम्मद। क्या तथाकथित इतिहासकार इन तथ्यों को भी झुडलायेंगे ?
वर्षों बाद भी अयोध्या मामले का हल नहीं निकलने के लिए जानेमाने पुरातत्ववेत्ता डॉ. केके मुहम्मद ने वामपंथी इतिहासकारों को जिम्मेदार ठहराया है। उनके अनुसार वामपंथियों ने इस मसले का समाधान नहीं होने दिया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) उत्तर क्षेत्र के पूर्व निदेशक डॉ. मुहम्मद ने मलयालम में लिखी आत्मकथा ‘जानएन्ना भारतीयन’ (मैं एक भारतीय) में यह दावा किया है।
बकौल मुहम्मद, ‘वामपंथी इतिहासकारों ने इस मुद्दे को लेकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं के साथ मिलकर देश के मुस्लिमों को गुमराह किया।’ उनके अनुसार, इन लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट तक को भी गुमराह करने की कोशिश की थी।
जनवरी 17 को जारी आत्मकथा में डॉ. मुहम्मद ने दावा किया है कि 1976-77 के दौरान एएसआइ के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में पुरातत्ववेत्ताओं के दल द्वारा अयोध्या में की गई खोदाई के दौरान विवादित स्थल से हिंदू मंदिर के अवशेष मिले थे। डॉ. मुहम्मद भी उस दल में शामिल थे।
अगर ब्रेन-वाश का शिकार नहीं होते
आत्मकथा में वामपंथी विचारकों और अन्य के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को भी उजागर किया गया है। फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए डॉ. मुहम्मद ने बताया कि इरफान हबीब (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के तत्कालीन चेयरमैन) के नेतृत्व में कार्रवाई समिति की कई बैठकें हुईं थीं। उन्होंने कहा, ‘अयोध्या मामला बहुत पहले हल हो जाता, यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी, वामपंथी इतिहासकारों के ब्रेन-वाश का शिकार न हुए होते। रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल सहित इतिहासकारों के एक वर्ग ने तर्क दिया था कि 19वीं शताब्दी से पहले मंदिर की तोड़फोड़ और अयोध्या में बौद्ध जैन केंद्र होने का कोई जिक्र नहीं है। इसका इतिहासकार इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज बेन और अख्तर अली ने भी समर्थन किया था।’
डॉ. मुहम्मद कहते हैं, ‘ये वे लोग थे, जिन्होंने चरमपंथी मुस्लिम समूहों के साथ मिलकर अयोध्या मामले का एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया। इनमें से कइयों ने सरकारी बैठकों में हिस्सा लिया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुला समर्थन किया।’
एक नहीं 14 स्तंभ मिले
पुस्तक के एक अध्याय में डॉ. मुहम्मद ने लिखा है, ‘जो कुछ भी मैंने जाना और कहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि ऐतिहासिक सच है।’ उनके अनुसार, ‘हमे विवादित स्थल पर एक नहीं, बल्कि 14 स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों पर गुंबद खुदे थे।
ये 11वीं व 12वीं शताब्दी के मंदिरों में पाए जाने वाले गुंबदों के समान थे। गुंबद ऐसे नौ प्रतीकों में एक हैं, जो मंदिर में होते हैं। यह भी काफी हदतक स्पष्ट हो गया था कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी है। उन दिनों मैंने इस बारे में अंग्रेजी के कई समाचार पत्रों को लिखा था।
मेरे विचार को केवल एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया और वह भी ‘लेटर टू एडिटर कॉलम’ में।’ डॉ. मुहम्मद के अनुसार, वामपंथी इतिहासकारों ने इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश की। अदालत द्वारा निर्णय दिए जाने के बाद भी इरफान और उनकी टीम सच मानने को तैयार नहीं है।
अपनी आत्मकथा में डॉ.के.के. मोहम्मद ने बताया है कि, १९७६-७७ के कालावधि में एएसआइ के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में पुरातत्ववेत्ताओं के दल द्वारा अयोध्या में किए गए उत्खनन के कालावधि में मंदिरों के ऊपर बने कलश के नीचे लगाया जाने वाला गोल पत्थर मिला ।
यह पत्थर केवल मंदिर में ही लगाया जाता है । इसी प्रकार जलाभिषेक के पश्चात, मगरमच्छ के आकार की जल प्रवाहित करनेवाली प्रणाली भी मिली है ।
हिंदूवादी
Yesterday at 2:57am ·
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यह वीडियो ज़रूर पूरा सुनिये : हक़ीक़त की बानगी देखिये कैसे हिन्दुस्तान पर बोद्धिक आक्रमण पिछले 68 सालों से लगातार हो रहा है। देश की युवा पीढ़ी को इसी तरह की झूटी बातों को शिक्षा के माध्यम से परोसे जाते रहे हैं । ऐसा लगता है आज़ादी के समय हिन्दुस्तान की भूमीं का बँटवारा ही नहीं हुआ वरन आज़ाद हिन्दुस्तान को भी कांग्रेस व कम्यूनिष्टो के बीच भी बँटवारा किया लगता है जिसमें कांग्रेस देश को लूट कर आर्थिक रूप से कमज़ोर करेगी व कामरेड हमारी संस्कृति व शिक्षा को अपने अनुरूप परोसेगी जिससे हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाय.
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मलकानी जी के साथ बीते पल
स्मरण आता है लगभग 30 वर्ष पुराना एक किस्सा। आर्गेनाइजर साप्ताहिक के तत्कालीन मुख्य सम्पादक, भारतीय जनता पार्टी के जनरल सेक्रेटरी पद पर रहे (स्व) केवल रतन मलकानी जी की एक बात। मुंबई के बाबू भाई पटेल ने अपनी प्रथम पत्रिका के लिए प्रतिष्ठित व्यक्तियों से लेख आमन्त्रित किये थे। उसी में सेवानिर्वित(शायद) जनरल हबीबुल्ला का भी लेख प्रकाशित हुआ था। हबीबुल्लाह ने मलकानी जी के हिंदुत्व पर आधारित लेख पर आपत्ति की। बाबूभाई ने अपनी पत्रिका में प्रकाशित करने के साथ-साथ उसका उत्तर देने के लिए मलकानी जी को प्रेषित कर दिया। आर्गेनाइजर साप्ताहिक में लगभग 4/5 सप्ताह दोनों का वाद-विवाद चलता रहा। अपने अंतिम अप्रकाशित विवाद में मलकानी जी ने क़ुतुब मीनार के विषय जब लिखा, उनसे जब पुष्टि करने का साहस किया कि “यह तो कुतबुद्दीन ने बनाई थी और आप पृथ्वीराज चौहान लिख रहे हैं , वास्तव में उचित क्या है?” शनिवार का दिन था, उन्होंने अपनी जेब से दस रूपए का नोट दिया और बोले “कल रविवार है, अपने दोस्तों या परिवार के साथ कल क़ुतुब मीनार जाना और इस स्थल को बहुत ही शुष्म एवं बारीकी के साथ देखना, दीवारों पर कुछ साबुत बची मूर्तियाँ दिखाई पड़ेंगी जो खंडित होने से बच गईं। इन रूपए से खाना-पीना।” अपने एक मित्र को लेकर गए और मलकानी जी की बातें सच होते देखी। वह पेज अप्रकाशित और अंतिम इस रहा कि सोमवार को हबीबुल्ला साहेब द्वारा ऑफिस आकर विवाद को विराम देने के कारण उस पृष्ठ को रोक दिया था। अन्यथा वह भी रिकॉर्ड में आ गया होता। मलकानी जी का निधन पुडुचेरी के राज्यपाल पद पर हुआ था।
अभी कुछ माह पूर्व तक ज़ी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह 6.30 बजे मंथन कार्यक्रम प्रसारित होता था। इस कार्यक्रम में जब भी दिल्ली के योगमाया मन्दिर के विषय में बताया जाता, सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वर्णन आता है।क्योंकि जब सम्राट चौहान सूर्य स्तम्भ(वर्तमान की क़ुतुब मीनार) के निर्माधीन खुदाई में योगमाया मन्दिर निकला, सर्वप्रथम मन्दिर का जीर्णोद्धार कर, मन्दिर से दूरी बनाकर सात-मंज़िला सूर्य-स्तम्भ का निर्माण किया गया और पाठ्यक्रम में पठाया जाता है कि क़ुतुब मीनार कुतबुद्दीन ऐबक ने बनवाई।
कहने का तात्पर्य है, कि इतिहासकारों ने किस तरह भारतीय इतिहास को धूमिल किया है। यदि इन इतिहासकारों ने चंद चांदी के सिक्कों की खातिर हिन्दू सम्राटों के इतिहास को धूमिल नही किया होता, किसी भी तरह का विवाद नही होता। और इन्ही विवादों ने देश सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने मे अहम भूमिका प्रदान की। और भारत दुनिया मे एक मज़ाक बऩ गया। प्रत्यक्ष सार्वजनिक हैं.किसी प्रमाण की अवश्यकता नही।
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