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मुलायम सिंह और अखिलेश लड़ाई मात्र मीडिया से भाजपा को दूर रखना

No automatic alt text available.सलाहकार का मेल लीक, अखिलेश की छवि के लिए झगड़ा प्लांट — पिछले कुछ दिन से समाजवादी पार्टी में चल रहे पारिवारिक घमासान के बीच एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसे जानकर लोग हैरान रह जाएंगे। समाजवादी पार्टी की आंतरिक रणनीति से जुड़े एक ई-मेल के लीक होने से अब कहा जा रहा है कि सपा में ये झगड़ा केवल अखिलेश यादव की इमेज को चमकाने का शिगूफा है। ये लीक मेल जुलाई महीने का है। खबर अनुसार अखिलेश के अमेरिकी सलाहकार स्टीव जार्डिंग के एक मेल के लीक होने से ये खुलासा हुआ है। जार्डिंग द्वारा भेजे गये ईमेल में लिखा है कि यूपी में अखिलेश यादव को विकास का आइकॉन बनाने के लिए पार्टी में अदरूनी लड़ाई दिखाना जरूरी है। उन्होंने मेल में लिखा है कि अखिलेश की छवि बेहतर उभर कर आएगी और मजबूत सीएम के तौर पर जाने जाएंगे। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों खबर आई थी कि समाजवादी पार्टी और सीएम अखिलेश सरकार की सकारात्मक छवि दिखाने के लिए अमेरिकन पीआर एजेंसी भी हायर करने व और भारत की भी कुछ पीआर एजेंसी ब्रांडिंग और इमेज बिल्डिंग का काम कर नेताओं की नकारात्मक छवि को सकारात्मक बनाने का काम करती हैं। जनता या टार्गेट ऑडियंस के मन में किसी भी पार्टी की सकारात्मक इमेज बनाने में ये पीआर एजेंसी सक्षम होती हैं, फिर चाहे जनता उस पार्टी या व्यक्ति से नाराज ही क्यों न हों
परसो तक सारे विधायक मुलायम के साथ थे आज अखिलेश की मीटिंग में है ये ड्रामा नही तो और क्या है मुलायम ने दाँव चला है जिससे अखिलेश की छवि चमकायी जा सके और ताकत बढ़ाई जा सके ताकि फिर कोई ये ना कह सके के उत्तर प्रदेश में साडे चार सी.एम् है और जैसा की हमारी यू. पी की जनता भावुक है तो इस सेंटीमेंट का सारा फायदा अखिलेश को पहोचाया जा सके और दुबारा सत्ता कब्जाई जा सके क्योंकि काम तो कुछ किया नही अखिलेश ने और ऊपर से रोज के बलात्कार और इनके गुंडों की गुंडागर्दी और चाचाओं का बेहिसाब भ्रस्टाचार। मुलायम जानते है इसके अलावा और कोई रास्ता नही है फिर से चुनाव जितने का, चुनाव अखिलेश जीते या मुलायम सरकार तो इनकी ही रहेगी सारे भ्रस्ट मंत्री वो ही रहेंगे ,सारा सिस्टम वो ही रहेगा जो है हर जगह यादव वाला, एस डी म हो या डी म सब यादव।
समाजवादी पार्टी के अंदर एक घमासान मचा हुआ है , मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अपने ही भाई और पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव को समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। कारण अगर ऐसे देखे तो मुलायम सिंह यादव का कहना है कि अखिलेश उनकी बात नहीं मान रहे जबकि अखिलेश यादव का कहना है कि पिता और चाचा ऐसे लोगो को टिकेट दे रहे हैं को जनता की नजरों में पहले से गिर चुके हैं और चुनाव हार जायेंगे
Image may contain: 2 people, textइसी वजह से अखिलेश यादव ने अपने समर्थक विधायको से कह दिया कि वो चुनाव की तैयारी करें।
लेकिन अगर सारा सच यही होता तो जाहिर सी बात है कि अखिलेश को इसका पूरा फायदा मिलता और पार्टी से कट रहे वोट भी अखिलेश को ही मिलते।
लेकिन हमारे पास ऐसा प्रूफ है जिससे आपको ये समझते एक मिनट भी नहीं लगेगा कि ये झगड़ा सच का झगड़ा नहीं है बल्कि अखिलेश यादव की छवि चमकाने के लिए कमजोर हो चुके मुलायम का कठोर प्रयास है
कहने को तो झगड़ा जग जाहिर है पर हमारे हाथ लगा ये सबूत साबित करता है कि ये झगड़ा झगड़ा नहीं बल्कि सोचा समझ खेल है मुलायम सिंह यादव का।
कहते हैं कि मुलायम सिंह एक सुलझे हुए नेता है, लेकिन अपने ही बुने जाल में फंस फरवरी में होने वाले चुनावों में खुद ही मात दे बैठे। उत्तर प्रदेश में कल तक जो लड़ाई समाजवादी एवं भाजपा में देखी जा रही थी, अब बसपा और भाजपा में परिवर्तित होती नज़र आ रही है। एक सम्भावना यह भी व्यक्त की जा रही है, सपा ने थाली में सजा कर भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता दे दी है।
समाजवादी पार्टी की अंदरूनी रणनीति से जुड़े एक ई-मेल के लीक होने से अब पता चल रहा है कि सपा में ये झगड़ा केवल अखिलेश यादव के इमेज को चमकाने का शिगूफा है. ये ईमेल जुलाई महीने में भेज गया था।
ये खुलासा अखिलेश के अमेरिकी सलाहकार स्टीव जार्डिंग के एक मेल के लीक होने से हुआ है. ईमेल में लिखा है कि यूपी में अखिलेश यादव को विकास का आइकॉन बनाने के लिए पार्टी में अदरूनी लड़ाई दिखावे के लिए जरूरी है. इससे अखिलेश की छवि बेहतर उभर कर आएगी और मजबूत सीएम के तौर पर जाने जाएंगे।
तो आप ही सोचिये कि इस सोच वाली पार्टी का आप सहयोग करेंगे या बहिष्कार ?
सपा ने 2012 में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर, अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूरी बाज़ी पलट के रख दी. 80 में 73 जीत कर सपा सरकार की सारी उम्मीदें ध्वस्त कर दी. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव होने है. मुलायम के सुपुत्र अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है. राज्य में कानून व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है. गुंडाराज और भ्रष्टाचार चरमोत्कर्ष पर है.सरकार के ख़िलाफ़ जबर्दस्त एंटी इन्कम्बैसी का माहौल था. सपा की साइकिल की रही सही हवा,मोदी लहर और मायावती का मजबूत जनाधार ने निकल कर रख दी है.
इन सबके बीच एक दिन अचानक सी.एम. अखिलेश बड़े हो गये. और चाचा शिवपाल से टक्कर लेने लगे. वो बच्चा जो साढ़े चार साल तक अपने सभी चाचाओं की सारी बात मानता था. वो अब खुलकर चाचा की मुखालफ़त करने लगा था. पापा मुलायम चाचा के साथ थे और अपने पुत्र के ख़िलाफ़. अखिलेश अब एक अच्छे बेटे नहीं रहे लेकिन बहुत अच्छे नेता जरुर बन गए थे.
राजनीतिक पंडित जो मुलायम सिंह को और उनके परिवार को नजदीक से जानते है. वो इस पूरे मामलों को पहले से ही राजनीतिक दांवपेंच बता रहे थे. कभी अखिलेश चाचा को मंत्रिपद से हटाते है तो पिता मुलायम अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर भाई शिवपाल को प्रदेशाध्यक्ष बनाते है. सी.एम से पूंछे बिना पापा मुलायम चाचा शिवपाल के मुताबिक़ टिकट बंटवारा कर देते है. गुस्से में बेटा बाप के ख़िलाफ़ खुलकर बगावत कर देता है. और अपने अलग उम्मीदवारों की लिस्ट निकाल देता है. अब नाराज पापा बिगडैल बेटे सी.एम. अखिलेश को पार्टी से निकल देते है. अब प्रदेश में अखिलेश के प्रति सहानुभूति का जबरदस्त माहौल, एंटी इन्कम्बैसी खत्म. भतीजे को चाचा ने काम नहीं करने दिया वरना उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन जाना था. इस पुरे एपिसोड ने
कुल मिलाकर सपा ने अपने युवराज (अखिलेश ) की छवि भी बचा ली और मुलायम ने अपनी लम्बी नाक भी.
कहानी के सारे किरदार अपने काम को बख़ूबी अंजाम तक पहुंचा रहे थे. “हम साथ साथ है” वाला सपा परिवार अचानक से “बिग बॉस” के घर में तब्दील हो गया. जनता में फैमिली ड्रामे को लेकर गज़ब का उत्साह था. लेकिन क्लामेक्स सीन से जस्ट पहले एक इमेल ने पूरा खेल चौपट कर दिया. ईमेल के लीक होने से मुलायम-अखिलेश दोनों कि पूरी योजना पर काफी पानी फिर चुका है। 
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--


मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना यादव अपनी बहु अपर्णा के साथ मुलायम कुनबे में पिछले 72 घंटे के बीच कलह क्लाइमेक्स पर पहुंच गई है।...
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जनता के सामने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. उत्तर प्रदेश की जनता की भावनाओं के साथ जमकर खिलवाड़ किया गया है।  मीडिया में थोड़ी देर पहले, एक लीक हुई ईमेल पहुंची है।  इस ईमेल में, अखिलेश यादव के अमेरिकी सलाहकार उन्हें पारिवारिक-कलह का ड्रामा करने के लिए कह रहे है। जिस कारण अखिलेश जनता की सिम्पैथी बटोर सकें और चुनाव में इसे वोट में तब्दील किया जा सकें। 
ममता बनर्जी का क्या होगा?
परिवार की इस लड़ाई को अवसरवादियों ने हाथो में लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा। सूत्रों का मानना है कि मुलायम सिंह से अपना पुराना हिसाब चुकाने में ममता बनर्जी  मुख्य भूमिका निभा रही हैं और  मुलायम सिंह  की  दूसरी पत्नी साधना गुप्ता उर्फ़ यादव चर्चा में आकर मात्र एक मोहरा बन गयी। ममता यह भूल गयीं कि राजनीति में सब खेल खिलते हैं, लेकिन परिवार  का अपना अलग स्थान होता है। 
जुलाई में ही अखिलेश को यह सलाह दी गई थी.’अगर दोबारा सी.एम बनाना है तो एंग्री यंगमैन वाली “हीरो” जैसी छवि गढ़ों. अखिलेश अच्छे हीरो बन सके इसके लिए चाचा लोगों को विलेन का रोल दिया गया.हर शाम डेली शॉप की तरह, सपा परिवार का एक नया किस्सा टेलीविजन की सुर्ख़ियों में होता था. इस विवाद ने सारी एंटी इन्कम्बैसी खत्म कर दी. जनता सोचने लगी थी कि बेचारे भतीजें को चाचा ने काम नहीं करने दिया.
पूरी योजना मुलायम और अखिलेश दोनों ने बनाई और आज दिन में उसे पूरा भी किया. लेकिन, इन्टरनेट का ज़माना है साहब .. सच छुपाये नहीं छुपता!
वाह रे राजनीति ! क्या नौटंकी खेली सपा ने?
Image may contain: textउत्तर प्रदेश में इस वक्त अखिलेश यादव और मुलायम-शिवपाल ने बहुत बड़ी नौटंकी शुरू की है ताकि उत्तर प्रदेश की जनता का ध्यान इनके कुकर्मों से हटकर केवल नौटंकी पर केन्द्रित हो जाए और ये लोग जनता को इमोशनल ब्लैकमेल करके चुनाव जीत लें, ये लोग उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हवा से बहुत डरे हुए हैं इसलिए अपनी कुर्सी को बचाने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया है। 
इस वक्त समाजवादी पार्टी गुंडों और माफियाओं की पार्टी मानी जाती है और उत्तर प्रदेश की 80 फ़ीसदी आबादी भी यही मानती है, आज खुद राम गोपाल यादव ने समाजवादी पार्टी को गुंडों की पार्टी बताया। 
मुलायम सिंह भी जानते हैं कि जनता में मन में समाजवादी की छवि गिर गयी है और इसे गुंडों की पार्टी माना जाने लगा है, अगर कुछ किया नहीं गया तो समाजवादी पार्टी की हार तय है। इसीलिए ये नौटंकी हो रही है। 
नौटंकी के पहले पार्ट में अखिलेश और मुलायम सिंह ने अपने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, मुलायम सिंह की लिस्ट में कई दागी और गुंडे उम्मीदवार हैं जबकि अखिलेश की लिस्ट में साफ़ छवि के उम्मीदवार हैं। 
नौटंकी के दूसरे पार्ट में मुलायम सिंह ने अखिलेश और राम गोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया ताकि जनता में यह सन्देश जाए कि अखिलेश यादव को इसलिए पार्टी से निकाला गया क्योंकि वे साफ़ छवि के उम्मीदवारों को टिकट दे रहे हैं जबकि मुलायम और शिवपाल गुंडों को टिकट दे रहे हैं।  
अब मुलायम सिंह और अखिलेश चाहते हैं कि जनता में इमानदार लोग अखिलेश को सपोर्ट करें यह समझकर कि अखिलेश इमानदार नेता हैं और इन्होंने इमानदारों को टिकट दिया है मतलब इन्होने, जबकि जनता में बेईमान धडा मुलायम सिंह को सपोर्ट करे। 
उदाहरण के लिए, मुलायम सिंह ने अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी के परिवार को टिकट दिया है, अगर अखिलेश यादव मुलायम सिंह के साथ ही रहते और अपनी लिस्ट ना जारी करते तो जनता में यह सन्देश जाता कि समाजवादी पार्टी गुंडों माफियाओं को टिकट देती है, अगर इन्हें वोट दिया गया तो गुंडाराज वापस आएगा, खासकर हिन्दू लोग मुलायम सिंह को वोट देने से परहेज करते और इनकी जगह BJP को वोट देते।
इसीलिए अखिलेश यादव को अलग लिस्ट जारी करने के लिए कहा गया जिसमें केवल साफ़ छवि के उम्मीदवार हैं। अब अगर दोनों अलग अलग चुनाव लड़ेगे तो इमानदार लोग अखिलेश यादव को वोट देंगे जबकि मुख्तार और अतीक अहमद को टिकट दिए जाने से सभी मुसलमान मुलायम सिंह को वोट देंगे। अगर दोनों लोग 100 सीटें भी जीत लेते हैं तो बाद में फिर से हाथ मिला लेंगे और अखिलेश यादव फिर से मुख्यमंत्री बन जाएंगे।
अगर अखिलेश और मुलायम साथ होते और एक ही लिस्ट जारी की जाती, मान लीजिये ये लोग अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को टिकट ना देते तो मायावती उन्हें अपनी पार्टी से टिकट दे देतीं और सभी मुस्लिम वोटर मायावती की तरफ मुड़ जाते, अगर अखिलेश इनके साथ होते और अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी का विरोध ना करते तो समाजवादी पार्टी को मुस्लिमों के वोट मिलते लेकिन हिन्दुओं के वोट ना मिलते, इस हालत वोटों का ध्रुवीकरण होता और लोकसभा लोकसभा चुनावों की तरह BJP की जीत होती। 
मतलब इन्होने जनता को BJP की तरफ जाने से रोकने के लिए यह नौटंकी शुरू की है जिसमें एक ने इमानदारी की टोपी पहली है जबकि दूसरी ने गुंडों की टोपी पहनी है। ये चाहते हैं कि जो लोग सपा को गुंडों की पार्टी समझकर वोट ना देने का मन बना चुके हैं वह अखिलेश यादव को इमानदार समझकर वोट दें जबकि गुंडे छवि के लोग मुलायम सिंह वोट वोट दें ताकि दोनों लोग मिलकर 200 से अधिक सीटें जीत लें और फिर से सरकार बना लें। 

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