Skip to main content

चिन्तन : भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ और संघ के हिन्दुस्तान मुस्लिम मंच का क्या है औचित्य?

राजनेता चाहे जिस तरह की राजनीति खेले, लेकिन जनता उनसे दस कदम आगे ही चलती है। आज नेता समाज जिस तरह तुष्टिकरण नीति अपनाते है, जनता उनसे ज्यादा। अभी पाँच राज्यों में सम्पन्न हुए चुनावों में “सबका साथ, सबका विकास” मुद्दे पर मुस्लिम समाज से लेकर समस्त विपक्ष  भारतीय जनता पार्टी पर इस बात को लेकर प्रहार करते रहे कि “उत्तर प्रदेश में भाजपा ने किसी भी मुस्लिम को टिकट क्यों नहीं दिया?” आरोप में दम भी बहुत है।

आरोप लगाना गलत नहीं, जब तक आरोप नहीं लगाए जाएंगे, सरकार को गलती का पता ही नहीं चलेगा। बशर्ते आरोप तर्कपूर्ण हों, आधारहीन नहीं।  इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि जनसंघ वर्तमान भारतीय जनता पार्टी का इसके गठन वाले दिन से मुस्लिम विरोधी होने का प्रचार हो रहा है। हो सकता है, मेरे विचार गलत भी हो सकते है। 

इतिहास में जाने से पूर्व, सर्वप्रथम अवलोकन करें वर्तमान में दिल्ली में होने वाले नगर निगम चुनावों पर किसी चर्चा/परिचर्चा पर विचार करने पूर्व सीता राम बाजार मंडल के कुछ मतदान केंद्रों  पर निगाह डाल देखिये तुष्टिकरण कौन कर अपना रहा है :  भाजपा; भाजपा विरोधी या स्वयं मुस्लिम? मुस्लिम समाज भाजपा को वोट नहीं देगा, लेकिन भाजपा से सुख सारे चाहिए।

अभी कुछ दिन पूर्व किसी काम से भाजपा ज़िला चांदनी चौक कार्यालय में किसी काम से जाना पड़ा। जहाँ मुस्लिम वोटों पर ही चर्चा चल रही थी। केन्द्रीय मन्त्री हर्षवर्धन के पी.एस. गुलशन विरमानी के सम्मुख भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सदस्य ने स्पष्ट कहा कि “मुसलमान की बोली में सुन लो, कोई (अपशब्द जिन्हें मर्यादा में रहकर लिखना असम्भव है) मुसलमान जो…. भाजपा को वोट दे…” विरमानी और दूसरे उपस्थित लोगों ने उस सदस्य की बात को गम्भीरता से न लेते हुए हंसी में टाल गए। लेकिन उस मुस्लिम की बात में वजन था, सच्चाई थी।

वर्तमान सीता राम बाजार मंडल के महासचिव अशोक भंडारी के अनुसार "2012 के चुनाव में तत्कालीन मंडल प्रधान मौहम्मद साबरीन के समय में उन्ही के मतदान केंद्र से भाजपा को एक भी वोट नहीं मिला। चुनाव में मंडल एवं उम्मीदवार से सहयोग पूरा लिया, और एक बार क्षेत्र में बिजली की समस्या आयी, इसी मंडल प्रधान (साबरीन ) ने केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन के विरुद्ध अपशब्द कहे, जिसका मीडिया में प्रमाण है। क्या भाजपा इनकी दोगली नीति को नहीं समझ रही?"

यदि महासचिव भंडारी की बात में सत्यता है, तो अधिकारियों ने अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की? क्या भाजपा भी अन्य दलों की भाँति तुष्टिकरण नीति अपनाए हुए है?

प्राप्त जानकारी के अनुसार, फिर आज(मार्च 17) भी अजमेरी गेट स्थित कार्यालय में मीटिंग के दौरान अजय भारद्धाज के सम्मुख जब "भारत माता की जय" और "वंदे मातरम" के नारे लगने पर किसी अल्पसंख्यक का मुँह तक नहीं खुला।   

इस समय मेरे पास इस मंडल के मुस्लिम बहुल पोलिंग बूथों  में से तीन बूथों की मतदान की वोट गणना है, जबकि इन क्षेत्रों में भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सदस्य एवं पदाधिकारी भी है, जिसे देख यह बात प्रमाणित होती है कि इन मतदान केन्द्रों पर भाजपा अल्पसंख्यक सदस्यों की भी वोट नहीं पड़ती; और इन केन्द्रों जो भी मतदान हुआ है, देख सिर शर्म से झुक जाता है।  भाजपा को इस सदस्यों से सख्ती से पूछताछ करनी ही नहीं चाहिए बल्कि पार्टी से निष्कासित भी कर देना चाहिए।

एक मतदान जिस पर 20 से अधिक वोट है, वहाँ लगभग उतने ही हिन्दू है। देखिये और निर्णय लीजिए कि आरोप में कितनी सार्थकता है।

ये तीनो चित्र मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों के हैं 

जनसंघ से लेकर आज भाजपा तक मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा से कहीं अधिक वोट  आज़ाद उम्मीदवार एवं अन्य छोटी पार्टियों को मिल जाते हैं। लेकिन भाजपा द्धारा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ होते हुए भी भाजपा की इतनी दुर्गति। फिर अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ क्यों? 

हिन्दू बहुल क्षेत्रों में मतदान 

जबकि मेरी जानकारी के अनुसार इन चार चुनावों में से एक चुनाव में भाजपा का मुस्लिम प्रत्याशी था। यानि न सावन हरे न भादों सूखे। अब इन लोगों से पूछे कि “यदि भाजपा किसी मुस्लिम को टिकट नहीं देती तो क्या गलत करती है?” जब मुस्लिम बहुल क्षेत्र से भाजपा मुस्लिम उम्मीदवार की जमानत जब्त हो, फिर क्या मालपुए खाने के लिये टिकट चाहिए? आखिर मुस्लिम के लिए टिकट मांगने में शर्म भी नहीं आती? किस आधार पर टिकट मांगते हो?

फिर एक बार इसी अजमेरी गेट स्थित भाजपा कार्यालय में शाम के समय किसी से मिलने जाना पड़ा, उस समय किसी मंडल की मीटिंग चल रही थी। जिसमे अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के भी सदस्य उपस्थित थे, मीटिंग के दौरान जब “भारत माता की जय” के नारे लगे, 99.9 प्रतिशत का मुँह ही नहीं खुला, जबकि एक सदस्य ने भाजपा द्धारा किसी भी मुसलमान को टिकट न दिए जाने पर रोष प्रकट करते हुए कहा “मैं सुल्तानपुर से आता हूँ, टिकट दिलवाओ, सीट निकाल कर दूंगा”,भारत माता की जय बोल नहीं सकते, और भाजपा से टिकट चाहिए। उस सदस्य ने ज़िला अधिकारी अजय भारद्धाज के सम्मुख इस आपत्ति को रखा था। हालांकि अजय ने जिस मधुर शैली में उत्तर दिया, उससे भी उसे संतुष्टि नहीं हुई। जब पार्टी के एक पदाधिकारी से इन अल्पसंख्यकों के मतदान केंद्रों पर पड़ने वाली वोटों की गणना बताने का आग्रह किया। सौभाग्य से पार्टी ने चार चुनावों में हुए मतदान का विवरण(उपरोक्त) दे दिया। जबकि 2014 में मोदी लहर में उस सदस्य के मौहल्ले में तीन मतदान केंद्रों पर कुल 1690  पड़े वोटों में  भाजपा को मिले 38 वोट और आज़ाद उम्मीदवारों को 192; 2015 में 1832 में से भाजपा को मिले 40 और अन्य को 18 वोट। इन तीन में से दो शत-प्रतिशत मुस्लिम मतदान केन्द्रों पर 1165 में से 14 और 1054 में से केवल 09(नौ) मत भाजपा को मिले।    
इस विवरण को देख स्मरण आती है एक चर्चित कव्वाली “बड़े बेशर्म आशिक है…” की यह पंक्ति “चूड़ी का बोझ उठा न सके, उस पर दावा की तलवार हम उठाएंगे” , हँसी आती है कि किस तरह भाजपा और संघ को मुर्ख बनाया जा रहा है। मटिया महल, चितली कबर, तुर्कमान गेट, फराश खाना,  कसाबपुरा, सीलमपुर, जामिया नगर, आदि दिल्ली के अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के बारे में कुछ लिखना ही शायद व्यर्थ है।         
इतना ही नहीं संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने भी मुस्लिम मंच बना लिया। फिर भी संघ और भाजपा मुस्लिमों की दुश्मन। हंसी संघ वालों पर आती है, जब अधिकारी कहते हैं  कि यह संगठन इंद्रेश का है, संघ का नहीं। जब उनसे पूछा कि “क्या इंद्रेश संघ प्रचारक नहीं? संघ की तरफ से कोई विरोध नहीं।”
हंसी आती है संघ अधिकारियों पर। जो न आर्गेनाइजर को, न पाञ्चजन्य को संघ का साप्ताहिक मानती है, जबकि इस संस्थान में किसी चपरासी से लेकर प्रबन्धक तक सभी संघ से सम्बंधित हैं, और उसी तर्ज़ पर इन्द्रेश द्धारा संचालित मुस्लिम मंच का संघ से कोई सम्बन्ध स्वीकारते नहीं। जबकि इन्द्रेश संघ प्रचारक है। क्या संघ ने मुस्लिम मंच बनाने के लिए इन्द्रेश को संघ से निकाल दिया?
Image result for हिंदुस्तान मुस्लिम मंचसंघ का कोई अधिकारी जवाब दे कि "क्या संघचालक की अनुमति बिना कोई संगठन खोल सकता है?" काम और उद्देश्य गलत नहीं है, लेकिन मूर्ख बनने के सिवा क्या मिला? जो धन, समय और चिंतन इस वर्ग पर बर्बाद किया है, उसका आधा भी यदि समाज के अन्य वर्ग पर प्रयोग किया होता, निश्चित रूप से कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिला होता।
खैर, हमेशा की भाँति मुस्लिम मंच के एक कार्यक्रम के चित्र आदि लेकर आर्गेनाइजर सम्पादकीय विभाग में एक पदाधिकारी बड़े गुणगान करने लगे, तब उन मियाँ से जब प्रश्न किया “भाजपा ने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ खोल रखा है, और अब प्रचारक इन्द्रेश ने भी मुस्लिमों को मालपुए खिलाने के लिए मंच खोल दिया, फिर भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनसंघ से लेकर आज भाजपा उम्मीदवारों की बहुत ही शर्मनाक तरीके से जमानत ज़ब्त होती है। क्यों? क्या हिन्दू क्षेत्रों से भाजपा का कोई मुस्लिम उम्मीदवार हारा? और भाजपा उसको मुस्लिम चेहरा बनाकर फर्श से अर्श पर उठाए फिरते हैं।  
Related image
चुनावों में दोनों संगठन एकजुट होकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा का क्यों नहीं प्रचार करते? यह क्या, जहाँ दिखी तवा परात, वही बिता सारी रात। पता नहीं आप लोग भी वोट देते हो या नहीं?” यह क्या गुड़ खाओ, लेकिन गुलगुलों से परहेज। यानि माल खाने कहीं भी पहुँच जाओ, फिर संघ और भाजपा को गालियां भी दो। यह कौन-सा और कहाँ का इंसाफ है?
वह अधिकारी गुस्से से इतना तिलमिलाए पूछो नहीं। उनके गुस्से में घी उस समय और पड़ गया है, जब उनसे कहा “तिलमिलाने की जरुरत नहीं, सच्चाई का सामना करो। ज्यादा गुस्सा आ रहा है, तो अन्दर जाकर संपादक जी से शिकायत कर दो, फिर भी मन न भरे इन्द्रेश जी को और नागपुर शिकायत कर दो।” परन्तु जब सम्पादकीय विभाग में पत्रकारों ने उनसे कहा, जो निगमजी कह रहे हैं, गलत नहीं कह रहे, जामा मस्जिद क्षेत्र में रहते है, इसीलिये बोल रहे है।” इतना सुनते ही काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गयी भाईसाहब की।
और मेरे इस गम्भीर आरोप को सिद्ध  कर रही हैं मुस्लिम बहुल मतदान केन्द्रों का  उपरोक्त मतदान विवरण। मतदान के दिन सड़क पर भाजपा की मेज-कुर्सी डालकर दिखावा करने को स्वांग नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए। अब चिंतन भाजपा और संघ को करना है कि अपने इन प्रकोष्ठों को बन्द करें या अल्पसंख्यक के नाम पर धन को बर्बाद किया जाए।
एक बात केवल भाजपा या संघ को नहीं, समस्त दलों द्धारा चिंतन अथवा मंथन करने की है, कि जो समुदाय संख्या में दूसरे नम्बर हो, वह अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है? क्या इस तरह जनसंख्या में दूसरे स्थान पर अंकित समुदाय का अपमान ही नहीं , देश की आँखों में धूल झोंकी जा रही है?       

उत्‍तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्‍यों के चुनाव नतीजे 11 मार्च को सामने आ गए। भारतीय जनता पार्टी ने यूपी और उत्‍तराखंड में एक तरफा जीत दर्ज करते हुए सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।  साथ ही उसे मणिपुर में बड़ा फायदा हुआ है और वह शून्‍य से 21 पर पहुंच गई। कांग्रेस ने पंजाब में जोरदार वापसी की है। गोवा में भी वह सरकार बनाने के करीब है। लेकिन इसी बीच एक बड़ा सवाल मुस्लिम प्रतिनिधित्‍व का खड़ा हुआ है। आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी से केवल 23 मुस्लिम विधायक चुने गए हैं। इनमें से सरकार बनाने जा रही भाजपा से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है।

*मुस्लिम समझ चुके हैं कि हिंदुओं के वोट एकजुट हो चुके हैं और हम बिखर गए हैं*
लेकिन स्वीकार नहीं कर सकते...अब भाजपा की सरकार को इस भ्रम में रखना जरूरी है कि हमने भी वोट दिया है आपको , हमारा भी आप पर उतना ही हक है , आप कहीं समाजवादी पार्टी की मुफ्त की खैरातें बंद ना कर दो, कहीं ऐसा ना हो कि हमारी जो मस्जिदों में ,मदरसों में धार्मिक तैयारियां सनातन समाज के विरुद्ध चल रही हैं सरकारी मदद से उसमें कटौती कर दो....
इसलिए कांग्रेस ,सपा ,बसपा ,वामपंथी आप और यहां तक कि भाजपा के भी कुछ लोग राग अलापने लगे हैं... उदाहरण दिया जा रहा है देवबंद का ! अरे देवबंद में सारे प्रत्याशी मुस्लिम थे इसलिए वोट बंटे और भाजपा जीत गई...कैराना के मुस्लिम हालिया आक्रमण से एकजुट थे तो जीत गए...
खुदा भी अब फतवा जारी कर दे तो मुस्लिम मोदी को वोट नहीं देंगा.... इस बात को दिमाग में गांठ बांध कर रख लेना.... यह सरकारी योजनाओं से घर गृहस्थी चलाते है।
एक बार पानी रीडर से एक मुस्लिम बहुल गली के बारे में पूछा कि “इस पूरे मौहल्ले में कितने पानी के मीटर हैं? जवाब मिला 29, जबकि उसी मौहल्ले की एक गली में बोरिंग लाइन में 72 कनेक्शन है।” बिजली की तो बात ही मत पूछिये।  
मुस्लिम सीटों पर हारी है बीजेपी...
45% से अधिक मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर हारी है।
45% से कम आबादी वाली सीटों पर हिन्दू एकजुट हुआ है। मुस्लिम वोट सपा-बसपा में बंटा है
यूपी में बीजेपी की जीत के बाद सेक्युलर तत्व एक्टिव हो गए है।
ये वही लोग हैं जिन्होंने सैफुल्लाह के अब्बू को भी देशभक्त होने का सर्टिफिकेट दे दिया था
खैर, सोशल मीडिया पर हमें कुछ सन्देश दे, हम अपने पाठकों को अभी से आगाह कर देना चाहते है कि हिन्दुओं में सेकुलरिज्म का जहर भरने के लिए सेक्युलर तत्व एक्टिव हो चुके हैं।
"देवबंद में 80% मुस्लिम होने के बाबजूद बीजेपी जीत गयी, अब्दुल को बिना बताये अमीना ने कमल का बटन दबा दिया"
ऐसे सन्देश सेक्युलर तत्व फैला रहे है, और भोला हिन्दू मीठी गोली खा ले रहा है ।
वास्तव में मुस्लिम वोटों में सेंध तो उसी दिन लग गया था, जिस दिन ट्रिपल तलाक़ मुद्दा उछला था। इन चुनावों में केवल कुछ प्रतिशत प्रगतिशील मुस्लिम महिला वोट भाजपा को मिला है। अन्यथा हर भाजपा विधायक बहुत भारी मतों से विजयी होता।
अब आपको हम तस्वीर बता देते हैं, यूपी में क्या हुआ है?
मीडिया जिन सीटों को मुस्लिम बाहुल्य कहती है, उन सीटों का आधार ये है कि यहाँ 25% से अधिक मुस्लिम आबादी है। मीडिया इन सीटों को मुस्लिम बहुल कहती है।
इसका मतलब ये नहीं की यहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। जी हां, ऐसी 134 सीटें यूपी में है जहाँ मुस्लिम जनसँख्या 25% से अधिक है, और इन 134 सीटों में से बीजेपी ने 104 सीटें जीती है, पर 30 सीटें हारी है।
अब जानिये कौन सी सीटें जीती और कौन सी हारी...
जहाँ भी मुस्लिमो की संख्या 25% से लेकर 40-45% तक रही, यानि वो सीट जहाँ हिन्दू अब भी बहुसंख्यक है, जैसे शामली की सीट, बबीना की सीट
ऐसी सीटों पर हिन्दू वोट एकजुट हुआ
और यहाँ मुस्लिम वोट सपा और बसपा दोनों में बंटा है, सपा बसपा को भी अच्छे वोट मिले हैं।
हिन्दू वोट एकजुट हुआ इसलिए 134 में से बीजेपी 104 जीती है, पर 30 ऐसी सीटें थी जहाँ मुस्लिम जनसँख्या 45-50% से अधिक थी। यहाँ हिन्दू एकजुट होकर भी कुछ नहीं कर पाया और ऐसी सीटों पर सपा बसपा वाले ही जीते हैं, उदाहरण के तौर पर सहारनपुर, मऊ, कैराना इत्यादि
बीजेपी की जीत सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि हिन्दू एकजुट हुआ
और मुस्लिम वोट सपा बसपा में बंटा।
बीजेपी की जीत के पीछे मुस्लिम वोट नहीं है, हां कुछ मुस्लिम महिलाओं का जरूर वोट मिला है, पर जिताने लायक नहीं
और हां "देवबंद में 80% मुस्लिम आबादी नहीं है।
ये बकवास है, देवबंद तो हिन्दू बहुल इलाका है, यहाँ जाट और गुर्जर जाती का प्रभाव है।
यहाँ मुस्लिम संस्था है, पर ये मुस्लिम सीट नहीं है। जैसे अलीगढ में मुस्लिम यूनिवर्सिटी है, पर वो कोई मुस्लिम सीट थोड़े है। यहाँ बीजेपी अमीना, आयेशा, फातिमा के कारण नहीं बल्कि हिन्दू वोट के कारण जीती है।"
सेक्युलर तत्व मीठी गोली देकर हिन्दुओं में सेकुलरिज्म नामक जहर भरने में लगे हैं
यूपी में बीजेपी की जीत के बाद सेक्युलर तत्व एक्टिव हो गए है, ये वही लोग है जिन्होंने सैफुल्लाह के अब्बू को भी देशभक्त होने का सर्टिफिकेट दे दिया था, पर कल हमने आपको बता दिया की
सैफुल्लाह के अब्बू ने अब यू टर्न लेकर जांच की मांग करते हुए बेटे को आतंकी मनाने से इंकार कर दियाहै,खैर आज सोशल मीडिया पर हमे कुछ सन्देश देखें, हम अपने पाठकों को अभी से आगाह कर देना चाहते है कि हिन्दुओ में सेकुलरिज्म का जहर भरने के लिए सेक्युलर तत्व एक्टिव हो चुके है
"देवबंद में 80% मुस्लिम होने के बाबजूद बीजेपी जीत गयी, अब्दुल को बिना बताये अमीना ने कमल का बटन दबा दिया"ऐसे सन्देश सेक्युलर तत्व फैला रहे है, और भोला हिन्दू मीठी गोली खा ले रहा है अब आपको हम तस्वीर बता देते है यूपी में क्या हुआ है, मीडिया जिन सीटों को मुस्लिम बाहुल्य कहती है, उन सीटों का आधार ये है की यहाँ 25% से अधिक मुस्लिम आबादी है, मीडिया इन सीटों को मुस्लिम बहुल कहती है
इसका मतलब ये नहीं की यहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है, ऐसी 134 सीटें यूपी में है जहाँ मुस्लिम जनसँख्या 25% से अधिक है, और इन 134 सीटों में से बीजेपी ने 104 सीटें जीती है, पर 30 सीटें हारी है


भाजपा ने विधानसभा चुनाव में अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज करके न सिर्फ पूरे देश में भगवा परचम लहराया है बल्कि देश के कई अन्य नेताओं जो धर्म की राजनीती करते है उनके मुंह पर ज़ोरदार तमाचा भी जड़ दिया है| यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है कि एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट न देने वाली भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत हासिल कर लिया है|

सोशल मीडिया पर मुस्लिम समाज के विचार तथा-कथित धर्म-निरपेक्षों के लिए चिंतन का विषय है।उत्‍तराखंड में भी भाजपा से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। इन चुनावों के मध्‍य और पश्चिम भारत के राज्‍यों में मुस्लिम समुदाय से केवल एक मंत्री है। साथ ही सत्‍ता पक्ष की ओर से केवल तीन विधायक है। हालांकि विपक्षी दलों में 29 विधायक हैं। भाजपा शासित राज्‍यों में केवल राजस्‍थान ही जहां से कोई मुस्लिम मंत्री है। यहां से यूनुस खान केबिनेट मंत्री है। इस तरह से 200 सीटों वाली राजस्‍थान विधानसभा में केवल दो मुस्लिम विधायक हैं। मध्‍य प्रदेश, गुजरात, छत्‍तीस गढ़, हरियाणा, महाराष्‍ट्र, उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड से भाजपा से कोई मुस्लिम विधायक नहीं है।
राजस्‍थान और इन राज्‍यों में कुल मिलाकर 1553 विधानसभा सीटें हैं जिनमें केवल भाजपा से केवल दो मुस्लिम विधायक हैं। मध्‍य प्रदेश और उत्‍तराखंड से केवल एक मुस्लिम विधायक है और वह कांग्रेस से है। हरियाणा से दो मुसलमान विधायक हैं जो कि इनेलो के टिकट पर जीते हैं। इसी तरह से गुजरात में कांग्रेस से दो मुस्लिम विधायक हैं। महाराष्‍ट्र जहां पर भाजपा-शिवसेना की सरकार है वहां पर आठ मुस्लिम विधायक है। ये कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्‍तेहादुल मुसलिमीन से चुने गए हैं। वहीं यूपी में इन चुनावों से पहले 1967 में भी 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली थी। 2012-17 के चुनावों में सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक यूपी की विधानसभा में थे। उन दौरान उनकी संख्या 68 थी। इस बार सपा की ओर से 17 विधायक विधानसभा में पहुंचे हैं, जबकि बीएसपी के 4 मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे हैं। दो मुस्लिम विधायक कांग्रेस से चुने गए हैं।
 .

Comments

AUTHOR

My photo
shannomagan
To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

Popular posts from this blog

भोजपुरी एक्ट्रेस त्रिशा कर मधु का MMS…सोशल मीडिया पर हुआ लीक

सोशल मीडिया पर भोजपुरी एक्ट्रेस और सिंगर त्रिशा कर मधु का MMS लीक हो गया है, जिससे वो बहुत आहत हैं, एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है, त्रिशा मधु ने इस बात को कबूल किया है कि वीडियो उन्होंने ही बनाया है लेकिन इस बात पर यकीन नहीं था कि उन्हें धोखा मिलेगा। गौरतलब है कि हाल ही में त्रिशा का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें वह एक शख्स के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रही थीं। इस वीडियो के वायरल होने के बाद अभिनेत्री ने इसे डिलीट करने की गुहार लगाई साथ ही भोजपुरी इंडस्ट्री के लोगों पर उन्हें बदनाम करने की साजिश का आरोप लगाया। त्रिशा मधु कर ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो के साथ पोस्ट लिखा है जिसमें कहा, आप लोग बोल रहे हैं कि खुद वीडियो बनाई है। हां, हम दोनों ने वीडियो बनाया थ। पर मुझे ये नहीं मालूम था कि कल को मेरे साथ धोखा होने वाला है। कोई किसी को गिराने के लिए इतना नीचे तक गिर जाएगा, यह नहीं पता था। इससे पहले त्रिशा ने वायरल हो रहे वीडियो पर अपना गुस्सा जाहिर किया था और कहा था कि उनको बदनाम करने को साजिश की जा रही है। त्रिशा मधु कर ने सोशल मीडिया पर ए

राखी सावंत की सेक्सी वीडियो वायरल

बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत हमेशा अपनी अजीबो गरीब हरकत से सोशल मिडिया पर छाई रहती हैं। लेकिन इस बार वह अपनी बोल्ड फोटो के लिए चर्चे में हैं. उन्होंने हाल ही में एक बोल्ड फोटो शेयर की जिसमें वह एकदम कहर ढाह रही हैं. फोटो के साथ-साथ वह कभी अपने क्लीवेज पर बना टैटू का वीडियो शेयर करती हैं तो कभी स्नैपचैट का फिल्टर लगाकर वीडियो पोस्ट करती हैं. वह अपने अधिकतर फोटो और वीडियो में अपने क्लीवेज फ्लांट करती दिखती हैं. राखी के वीडियो को देखकर उनके फॉलोवर्स के होश उड़ जाते हैं. इसी के चलते उनकी फोटो और वीडियो पर बहुत सारे कमेंट आते हैं. राखी अपने बयानों की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहती हैं.राखी अक्सर अपने रिलेशनशिप को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहतीं हैं. राखी कभी दीपक कलाल से शादी और लाइव हनीमून जैसे बयान देती हैं तो कभी चुपचाप शादी रचाकर फैंस को हैरान कर देती हैं. हंलाकि उनके पति को अजतक राखी के अलावा किसी ने नहीं देखा है. वह अपने पति के हाथों में हाथ डाले फोटो शेयर करती हैं लेकिन फोटो में पति का हाथ ही दिखता है, शक्ल नहीं. इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर राखी जो भी शेयर करती हैं वह भी चर्चा

रानी चटर्जी की बोल्ड तस्वीरों ने हिलाया इंटरनेट

भोजपुरी इंडस्ट्री में अपने अलग अदांज से धाक जमाने वाली रानी चटर्जी अब तक 300 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. एक्ट्रेस की गिनती इंडस्ट्री की नामी एक्ट्रेस में होती है. उनकी हर अदा पर फैंस की नजर बनी रहती हैं. इस बीच वो अपनी लेटेस्ट फोटो के चलते चर्चा का विषय बन गई हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब उनकी किसी हॉट फोटो ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई हो. बल्कि ऐसा हर बार देखने को मिलता है. वहीं इस बार भी एक्ट्रेस की नई तस्वीर को खूब पसंद किया जा रहा है. साथ वो इस नई तस्वीर में बेहद हॉट और बोल्ड नजर आ रही हैं. फोटो में रानी काफी प्यारी दिख रही है. तस्वीरों में रानी का स्टाइलिश अंदाज भी उनके फॉलोअर्स का ध्यान उनकी ओर खींच रहा है. रानी चटर्जी सोशल मी़डिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं और अपनी हॉट सेक्सी फोटो वीडियो फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. वहीं उनके फैंस भी उनकी नई अपडेट पर नजर बनाए बैठे रहते हैं. अक्सर रानी के बोल्ड फोटो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करते नजर आते हैं. हाल ही में रानी के नए लुक ने इंटरनेट को हिला दिया है. इस फोटो में रानी लाल रंग की ड्रेस में नजर आ रही हैं. इस ड्रेस में रानी अपने सेक्सी