विवादित बाबरी मस्जिद की समस्या का हल बातचीत से करने के सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद राम मंदिर निर्माण का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है. हिंदू और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मद्देनजर अपनी-अपनी राय व्यक्त की है. कुछ राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया है तो कुछ का कहना है कि इस मसले का समाधान कोर्ट के बाहर नहीं हो सकता है. मुस्लिम नेता बातचीत से क्यों पीछे भाग रहे हैं, कोई नई बात नहीं है।
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि मामले से जुड़े दोनों पार्टीयों को अब आपसी सुलह से मुद्दा सुलझा लेने चाहिए| यहाँ तक कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवादित मुद्दे को सुलझाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने खुद मध्यस्थता करानी वाली बात भी कही है|
स्मरण आता है, 1990 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर का यही साहसिक कदम जो आज सर्वोच्च न्यायालय ने अपनाया है। लेकिन बातचीत असफल हो गयी, क्यों? यदि बातचीत असफल होने का तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने सदुपयोग किया होता , भाजपा बहुत पीछे होती, और समस्त हिन्दू एवं शांतिप्रिय मुस्लिम समाज सब चंद्रशेखर के पीछे होते। जिन लोगों के कारण बातचीत टूटी थी, चंद्रशेखर ने उन लोगों को बेनकाब तक नहीं किया। डॉ सुब्रमण्यम स्वामी कानून मन्त्री थे।
इसी बीच ओवैसी की पार्टी AIMIM के एक नेता द्वारा राम मंदिर को लेकर दिया गया ये बयान काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो में ये नेता कहा रहा है कि अगर राम मंदिर बना तो भारत में तबाही आ जाएगी. इस वीडियो को देखने के बाद आपको कट्टरवादियों की सोच साफ़ पता चल जाएगी. जिस मुद्दे को हिन्दू समाज के लोग बातचीत द्वारा सुलझाना चाहते हैं उसको लेकर ओवैसी की पार्टी के नेता लोगों को भड़का रहे हैं.
"बाबर 1527 में फतेहपुर सीकरी को जीत कर अपने जनरल मीर बांकी को इहाँ का चार्ज देई के चला गया . मीर बांकी ने तलवार के जोर पर धर्म परिवर्तन किहा . 1528 में मीर बांकी अयोध्या आया और उसने मस्जिद बनवाया और उसका नाम बाबरी मस्जिद करि दिहा . तबै से ई विवाद पैदा हुआ .
अच्छा 1967 मा एक पादरी अयोध्या आईन Joseph Tieffenthaler . पेरिस मा जाइके लिखेन की बाबरी मस्जिद ही राम जन्म भूमि है और हिन्दू इहाँ पूजा करते है और रामनवमी मनाते है .
ब्रिटिशर P. Carnegy ने 1870 में लिखा की 1855 तक हिन्दू मुस्लिम इस जगह का युपयोग करते थे . 1858 में बाबरी मस्जिद में मोज्जैन ने ब्रिटिश सरकार के सामने माना की हिन्दू इस स्थान का युपयोग सैकड़ो साल से कर रहे है .
सबसे पहले मुकदमा 1885 में महंत रघुबरदास जी ने दायर किया और 18 मार्च 1986 को को फैज़ाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज ने भी ये बात मानी की ये स्थान हिन्दुओ का पवित्र स्थल है लेकिन अभी यथा स्थिति बहाल रखी जाये
भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण ने 1970 ,1992 और 2003 में बहुत गहराई मा खुदाई करि के बताया की विवादित परिसर के नीचे भव्य ईमारत के अवशेष है .
30 sept 2010 इलाहबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने बहुत माथापच्ची के बाद 13320 वर्ग फ़ीट जमीन को तीन हिस्सो में बाँट दिया . दो हिस्सा निर्मोही आखाड़ा और राम जी को मिला और एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को ,जबकि अगलबगल 70 एकड़ जमीन भारत सरकार के पास है .
अब कोई पक्ष इस फैसले को मानने को तैयार नइखे . तो मामला चला सुप्रीम कोर्ट . माननीय जज साहब कहिन अब माथापच्ची मत करावा ,वैसों बहुत केस पेंडिंग मा हयेन , आव बाहर बैठ के मामला सुलटा लिहा जाइ .
कचरपचर कचरपचर मच गया , अब ई बतावा सुन्नी वक्फ बोर्ड , इलाहबाद हाई कोर्ट बहुत सोच के रिकार्ड देखि के निर्णय दिहा , अगर यही निर्णय सुप्रीम कोर्ट भी देई दे तो , का होय 4000 स्क्वायर फ़ीट मा , इतने में तो 3 BHK नहीं बन पायेगा , काहे जमीन नहीं दे देते . झूठहि नाशूर किहे हो . अगर लेखपाल तुम्हरे हिस्सा का जमीन कोने मा काटी दिहेन तो अपनी जमीन पर जाए का रस्ता ना मिली . छोड़ो झगड़ा झंझट , राजनीति को करो दूर ,जमीन देई के टपकाओ नूर ...... के डी सिंह "
(सब रिकार्ड गूगल से लिहे है , तब हम पैदा नाइ हुवे थे वर्ना ई झझंट नाइ होती )
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि मामले से जुड़े दोनों पार्टीयों को अब आपसी सुलह से मुद्दा सुलझा लेने चाहिए| यहाँ तक कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवादित मुद्दे को सुलझाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने खुद मध्यस्थता करानी वाली बात भी कही है|
स्मरण आता है, 1990 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर का यही साहसिक कदम जो आज सर्वोच्च न्यायालय ने अपनाया है। लेकिन बातचीत असफल हो गयी, क्यों? यदि बातचीत असफल होने का तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने सदुपयोग किया होता , भाजपा बहुत पीछे होती, और समस्त हिन्दू एवं शांतिप्रिय मुस्लिम समाज सब चंद्रशेखर के पीछे होते। जिन लोगों के कारण बातचीत टूटी थी, चंद्रशेखर ने उन लोगों को बेनकाब तक नहीं किया। डॉ सुब्रमण्यम स्वामी कानून मन्त्री थे।
... that the Babri Masjid was constructed on the site of a temple. The elaborate excavations conducted by a professional body like the ASI under judicial ... |
सुप्रीम कोर्ट के इसी बयान को लेकर एक टीवी न्यूज चैनल पर डिबेट के दौरान एंकर सुमित अवस्थी ने जब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के कंवीनर जफरयाब जिलानी से सवाल किया तो जिलानी साब तिनक गए| बस फिर क्या था एंकर ने इसी बात पर जिलानी को खूब लताड़ा जिसके बाद तिलमिलाए जिलानी शो छोड़कर चले गए।
the Babri Masjid was constructed on the site of a temple. The elaborate excavations conducted by a professional body like the ASI under judicial instructional clearly prove the matter |
दरअसल न्यूज इंडिया 18 के शो हम तो पूछेंगे में एंकर सुमित अवस्थी ने इस विषय पर चर्चा करने के लिए बड़ा पैनल बुलाया हुआ था। जिसमें जिलानी समेत आरएसएस प्रचारक राकेश सिंहा, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन मुस्लिम चिंतक फहीम बेग और बाबरी कमेटी के सह संयोजक शामिल थे।
एंकर ने जिलानी से कहा कि, “आप जवाब दे चुके हैं। मैं बस ये जानना चाहता हूं कि अगर चीफ जस्टिस जेएस केहर खुद इस मामले में मध्यस्थता कराना चाहते हैं तो आप उनकी बात क्यों नहीं सुनना चाहते?” लेकिन जिलानी अपनी बात पर अड़े रहे जिससे एंकर का गुस्सा फूट पड़ा।
एंकर ने जिलानी से कहा कि, “यह आपका टीवी चैनल नहीं है जिसमें कि आप अपना ऐजंडा हाई-जैक करें। आपके पास मेरे सवाल का जवाब नहीं है इसलिए आप राकेश सिन्हा की पीठ के पीछे छिपना चाहते हैं। चीफ जस्टिस मुद्दे को सुलझाने की बात करते हैं लेकिन आप उनकी बात नहीं सुनना चाहते हैं, आप राजनीति कर रहे हैं।” एंकर की ये बात सुनकर और खुद को चौतरफ़ा घिरता देख जिलानी शो छोड़ कर भाग खड़े हुए| इसके बाद एंकर ने जिलानी से कहा कि आप नहीं चाहते कि मामले का हल निकले, आप शो छोड़कर जा रहे हैं, ये देखिए आप डरपोक हैं। हिम्मत है तो बैठिए और सवालों का जवाब दीजिए। जिलानी ने एंकर की एक न सुनी और वे वहां से चले गए।
देखिये वीडियो:
#HTP शो में से कैसे बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक #जफरयाब_जिलानी कैसे सीधे और कडे सवालों पर शो छोडकर भाग निकले। #अफसोसजनक @News18India
देखें वीडियो
"बाबर 1527 में फतेहपुर सीकरी को जीत कर अपने जनरल मीर बांकी को इहाँ का चार्ज देई के चला गया . मीर बांकी ने तलवार के जोर पर धर्म परिवर्तन किहा . 1528 में मीर बांकी अयोध्या आया और उसने मस्जिद बनवाया और उसका नाम बाबरी मस्जिद करि दिहा . तबै से ई विवाद पैदा हुआ .
अच्छा 1967 मा एक पादरी अयोध्या आईन Joseph Tieffenthaler . पेरिस मा जाइके लिखेन की बाबरी मस्जिद ही राम जन्म भूमि है और हिन्दू इहाँ पूजा करते है और रामनवमी मनाते है .
ब्रिटिशर P. Carnegy ने 1870 में लिखा की 1855 तक हिन्दू मुस्लिम इस जगह का युपयोग करते थे . 1858 में बाबरी मस्जिद में मोज्जैन ने ब्रिटिश सरकार के सामने माना की हिन्दू इस स्थान का युपयोग सैकड़ो साल से कर रहे है .
सबसे पहले मुकदमा 1885 में महंत रघुबरदास जी ने दायर किया और 18 मार्च 1986 को को फैज़ाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज ने भी ये बात मानी की ये स्थान हिन्दुओ का पवित्र स्थल है लेकिन अभी यथा स्थिति बहाल रखी जाये
भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण ने 1970 ,1992 और 2003 में बहुत गहराई मा खुदाई करि के बताया की विवादित परिसर के नीचे भव्य ईमारत के अवशेष है .
30 sept 2010 इलाहबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने बहुत माथापच्ची के बाद 13320 वर्ग फ़ीट जमीन को तीन हिस्सो में बाँट दिया . दो हिस्सा निर्मोही आखाड़ा और राम जी को मिला और एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को ,जबकि अगलबगल 70 एकड़ जमीन भारत सरकार के पास है .
अब कोई पक्ष इस फैसले को मानने को तैयार नइखे . तो मामला चला सुप्रीम कोर्ट . माननीय जज साहब कहिन अब माथापच्ची मत करावा ,वैसों बहुत केस पेंडिंग मा हयेन , आव बाहर बैठ के मामला सुलटा लिहा जाइ .
कचरपचर कचरपचर मच गया , अब ई बतावा सुन्नी वक्फ बोर्ड , इलाहबाद हाई कोर्ट बहुत सोच के रिकार्ड देखि के निर्णय दिहा , अगर यही निर्णय सुप्रीम कोर्ट भी देई दे तो , का होय 4000 स्क्वायर फ़ीट मा , इतने में तो 3 BHK नहीं बन पायेगा , काहे जमीन नहीं दे देते . झूठहि नाशूर किहे हो . अगर लेखपाल तुम्हरे हिस्सा का जमीन कोने मा काटी दिहेन तो अपनी जमीन पर जाए का रस्ता ना मिली . छोड़ो झगड़ा झंझट , राजनीति को करो दूर ,जमीन देई के टपकाओ नूर ...... के डी सिंह "
(सब रिकार्ड गूगल से लिहे है , तब हम पैदा नाइ हुवे थे वर्ना ई झझंट नाइ होती )
Comments