बॉलीवुड फिल्म इंदु सरकार को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। बताया जा रहा है कि ये फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाए इमरजेंसी पर आधारित है। इस फिल्म को लेकर कांग्रेस के सदस्य विरोध कर रहे हैं। विरोध इतना बढ़ गया है कि इलाहाबाद के एक कांग्रेसी नेता ने इस फिल्म के निर्देशक मधुर भंडारकर के मुंह पर कालिख पोतने वाले को 1 लाख रुपए इनाम में देने तक का ऐलान कर दिया है। दरअसल इलाहाबाद के कांग्रेस नेता हसीब अहमद ने एक पोस्टर जारी किया है। इस पोस्टर में लिखा है, ‘नेहरू-गांधी परिवार को साजिशन बदनाम करने वाली फिल्म इंदु सरकार के निर्माता और निर्देशक मधुर भंडारकर के मुंह पर कालिख लगाने वाले योद्धा को 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार’। अहमद का ये पोस्टर सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे वायरल हो रहा है।
https://www.facebook.com/iSupportNamo/videos/1670536176300795/
फिल्म के डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने भी इस पोस्टर पर अपनी आपत्ति जताई है। इस पोस्टर का विरोध करते हुए भंडारकर ने अपने एक ट्वीट में लिखा, ‘वाह, क्या बात है इतनी बोलने की आजादी!’ हालांकि मधुर भंडारकर के इस ट्वीट पर बहुत से यूजर्स ऐसे भी हैं जो उनकी आलोचना करते हुए लिख रहे हैं कि कभी बाल ठाकरे पर फिल्म बनाओ इससे भी ज्यादा फ्रीडम ऑफ स्पीच नजर आएगी।
वीडियो देखिए:-
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सोशल मीडिया पर इस कांग्रेसी नेता की आलोचना के बाद भी वो किसी तरह से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। हसीब अहमद ने ट्वीट कर ये भी लिखा कि इंदु सरकार के प्रसारण पर रोक लगने तक उनकी लड़ाई चलती रहेगी।
मधुर भंडारकर की आने वाली फिल्म इंदू सरकार को लेकर कांग्रेस प्रचंड आवेश मे हॆ। अनेक कांग्रेसी आतंक की भाषा मे मधुर भंडारकर ऒर उनकी युनिट को धमका रहे हॆ। कांग्रेस के कार्यकर्ताओ ने मधुर का मुख काला करने ऒर जूतो से मारने पर इनाम का ऎलान करते हुए कांग्रेस की संस्कृति का परिचय भी दे दिया हॆ।
इस फिल्म को लेकर कांग्रेस की आपत्ति यह हॆ कि यह फिल्म आपातकाल को लेकर बनाई गयी हॆ। फिल्म मे जबरन नसबंदी, इन्दिरा गांधी की क्रूर तानाशही ऒर हठधर्मिता पूर्ण निर्णयो को दिखाया जा रहा हॆ। अब स्वयं कांग्रेस इन्दिरा गांधी के आपातकाल के निर्णय को अनुचित बताते हुए अनेक बार माफी का ऎलान कर चुकी हॆ। ऎसे मे आपातकाल के सत्य को देश की वर्तमान पीढी को बताया जाना किस प्रकार गलत हो सकता हॆ। अभी जब तक फिल्म रिलीज ही नही हुई हॆ तो कांग्रेस का यह आरोप तो पुरी तरह हास्यापद हॆ कि फिल्म मे आपातकाल को लेकर भ्रामक तथ्य फिल्माये गये हॆ। कांग्रेस की मांग हॆ कि फिल्म के प्रदर्शन से पूर्व उसे दिखाया जाना चाहिए। अब कांग्रेस को उसके महागठबंधन का कोई लालू-कालू समझाए कि अब वह सत्ता से बाहर हॆ वह सेंसर बोर्ड नही हॆ कि फिल्म प्रदर्शन से पहले उसे दिखाकर फॆसला किया जाएगा कि उसमे क्या दिखाया जाए क्या नही ?
अभी तो कांग्रेस को उसके आपातकाल की जानकारी दिए जाने पर ऎतराज हॆ कल जब फिल्मो मे बताया जाएगा कि कांग्रेस कोई राजनॆतिक संगठन नही वरन देश मे आतंकियो का एक मददगार देशद्रोही संगठन था तब कांग्रेस का क्या हश्र होगा ?
इस फिल्म को लेकर कांग्रेस की आपत्ति यह हॆ कि यह फिल्म आपातकाल को लेकर बनाई गयी हॆ। फिल्म मे जबरन नसबंदी, इन्दिरा गांधी की क्रूर तानाशही ऒर हठधर्मिता पूर्ण निर्णयो को दिखाया जा रहा हॆ। अब स्वयं कांग्रेस इन्दिरा गांधी के आपातकाल के निर्णय को अनुचित बताते हुए अनेक बार माफी का ऎलान कर चुकी हॆ। ऎसे मे आपातकाल के सत्य को देश की वर्तमान पीढी को बताया जाना किस प्रकार गलत हो सकता हॆ। अभी जब तक फिल्म रिलीज ही नही हुई हॆ तो कांग्रेस का यह आरोप तो पुरी तरह हास्यापद हॆ कि फिल्म मे आपातकाल को लेकर भ्रामक तथ्य फिल्माये गये हॆ। कांग्रेस की मांग हॆ कि फिल्म के प्रदर्शन से पूर्व उसे दिखाया जाना चाहिए। अब कांग्रेस को उसके महागठबंधन का कोई लालू-कालू समझाए कि अब वह सत्ता से बाहर हॆ वह सेंसर बोर्ड नही हॆ कि फिल्म प्रदर्शन से पहले उसे दिखाकर फॆसला किया जाएगा कि उसमे क्या दिखाया जाए क्या नही ?
अभी तो कांग्रेस को उसके आपातकाल की जानकारी दिए जाने पर ऎतराज हॆ कल जब फिल्मो मे बताया जाएगा कि कांग्रेस कोई राजनॆतिक संगठन नही वरन देश मे आतंकियो का एक मददगार देशद्रोही संगठन था तब कांग्रेस का क्या हश्र होगा ?
कांग्रेस के कार्यकर्ता मधुर भंडारकर का मूख काला करने ऒर जूते मारने का ऎलान करने के स्थान पर अपने सडक छाप नेता संदीप दीक्षित को उनके द्वारा सेना के जनरल को सडक छाप गुंडा कहे जाने पर जूते मारने ऒर कांग्रेस युवराज द्वारा देशद्रोही कन्हॆया के समर्थन पर मुख काला करने का ऎलान करते तो देश उनका अभिनन्दन करता ऒर स्वीकार करता कि कांग्रेस मे अभी लोकतंत्र व राष्ट्रभक्ति जीवित हॆ। जब कांग्रेस के नेता एक आतंकवादी को बेगुनाह सिद्ध करने का देशद्रोह कर रहे थे ऒर जब आतंकवादी याकूब मेनन की फांसी माफी के लिये आधी रात को अदालत का दरवाजा खटखटा थी व सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सबूत मांग रही थी यदि तब कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता कांग्रेस के इन राष्ट्रद्रोह का मुखर विरोध करते तो देश को लगता कि कांग्रेस मे अभी सभी बन्धुआ मजदूर नही हॆ वहां अभी कुछ लोगो मे आत्मा ऒर स्वाभिमान वास करता हॆ। लेकिन अफसोस सम्पूर्ण देश मे कांग्रेस मे एक भी राष्ट्रवादी व्यक्ति मॊजूद नही जो कांग्रेस नेताओ के राष्ट्र घात के विरुद्ध आवाज उठा सके।
किसी दिलजले राष्ट्रभक्त ने कांग्रेस की हरकतो पर सही कहा हॆ कि आतंकवादी बनने ऒर देशद्रोह करने के लिये किसी आतंकी संगठन मे शामिल होना जरूरी नही आप कांग्रेस मे शामिल होकर भी ये गुनाह कर सकते हॆ।
जबकि कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने फिल्म इंदु सरकार विवाद पर बोलते हुए कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का लोगों के दिलों में विशेष स्थान है और यह स्थान कोई चित्र, चलचित्र या किताब नहीं बदल पाएगी। उन्होंने कहा कि फिल्म इंदु सरकार के निर्माता मधुर भंडारकर सिर्फ विवाद पैदा करके फिल्म की पब्लिसिटी कर रहे है। वह फिल्म बेचना चाहते हैं, पैसा कमाना चाहते हैं इसीलिए ये सब हो रहा है।
किसी दिलजले राष्ट्रभक्त ने कांग्रेस की हरकतो पर सही कहा हॆ कि आतंकवादी बनने ऒर देशद्रोह करने के लिये किसी आतंकी संगठन मे शामिल होना जरूरी नही आप कांग्रेस मे शामिल होकर भी ये गुनाह कर सकते हॆ।
जबकि कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने फिल्म इंदु सरकार विवाद पर बोलते हुए कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का लोगों के दिलों में विशेष स्थान है और यह स्थान कोई चित्र, चलचित्र या किताब नहीं बदल पाएगी। उन्होंने कहा कि फिल्म इंदु सरकार के निर्माता मधुर भंडारकर सिर्फ विवाद पैदा करके फिल्म की पब्लिसिटी कर रहे है। वह फिल्म बेचना चाहते हैं, पैसा कमाना चाहते हैं इसीलिए ये सब हो रहा है।
फिल्म इंदु सरकार इमरजेंसी पर बनी है जिसमें इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी को तानाशाह के रूप में दिखाया गया है। कांग्रेसियों को लग रहा है कि यह फिल्म कांग्रेस और इंदिरा गाँधी की छवि खराब करेगी और आने वाले चुनावों में उन्हें नुकसान होगा, इसीलिए पूरे भारत में फिल्म का विरोध हो रहा है।
कई कांग्रेसी नेताओं ने मधुर भंडारकर को मारने पीटने की धमकी दी है जिसके बाद मधुर भंडारकर ने राहुल गाँधी को कहा है कि आप हमेशा फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की बात करते है। लेकिन आज कांग्रेस वाले मेरी फ्रीडम ऑफ़ स्पीच छीन रहे हैं तो आप चुप हैं, अब मुझे मेरी फ्रीडम ऑफ़ स्पीच क्यों नहीं मिल रही है।
आपको बता दें कि 28 जुलाई को रिलीज हो रही इस फिल्म को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम ने भी रिलीज से पहले इसे एक बार देखने की मांग की है।
आपातकाल की ज्यादितियों को उजागर करती "इंदु सरकार"
आपातकाल की ज्यादितियों को उजागर करती "इंदु सरकार"
बॉलीवुड फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने ‘इंदू सरकार’ इसलिए बनाई, क्योंकि आज की युवा पीढ़ी को आपातकाल के बारे में बताना बेहद जरूरी है। भंडारकर ने फिल्म के ट्रेलर लॉन्च पर कहा- मैं हमेशा से ऐतिहासिक फिल्म बनाना चाहता था और 1970 के दशक का मैं बड़ा फैन हूं, जब मैं और मेरे लेखक (अनिल) इस पर विचार कर रहे थे, तब अचानक आपातकाल का विचार आया, इसलिए हमने आपातकाल की पृष्ठभूमि को नाटकीय रूप में पेश करने का विचार किया। उन्होंने कहा- फिल्म की कहानी असल जिंदगी से प्रेरित है और मुझे लगता है कि आज की पीढ़ी को कहानी बताना काफी जरूरी है, क्योंकि उन्हें 1975 से 1977 के 21 महीनों के आपातकाल के बारे में जानकारी नहीं है।”
ट्रेलर लॉन्च के दौरान भंडारकर के साथ पूरी टीम उपस्थित थी। उन्होंने कहा- हालांकि, अब सोशल मीडिया की वजह से बहुत जागरूकता आई है और पिछले पांच-छह सालों में लोग राजनीतिक चीजों के लिए अधिक जागरूक हुए हैं, इसलिए हमने सोचा कि आपातकाल पर फिल्म बनाने का सही समय है। आपातकाल पर आधारित इंदु सरकार 28 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म के ट्रेलर की बात करें तो इसमें सुप्रिया विनोद ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभाया है वहीं स्वर्गीय संजय गांधी के किरदार में बॉलीवुड एक्टर नील नितिन मुकेश नजर आ रहे हैं। कीर्ति कुल्हरी और अनुपम खेर भी मुख्य भूमिका में हैं।
ट्रेलर की शुरुआत में कहा जाता है- अब इस देश में गांधी के मायने बदल चुके हैं। इसके बाद फिल्म की कहानी आपको आपातकाल में हुई जाद्दतियों की तरफ ले जाती है। कीर्ति को आखिरी बार अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की पिंक में देखा गया था। वो इस फिल्म में हकलाते हुए बोलती हैं और आपातकाल के दौरान एक विद्रोही कवि का किरदार निभाते हुए आपको दिखेंगी।
एक्ट्रेस के पति को मार दिया जाता है। जिसके बाद वो सरकार का विरोध करना शुरू कर देती हैं। इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ता है। जहां उनकी पिटाई होती है। कुल मिलाकर हर तरह से प्रताड़ित किया जाता है इसके बावजूद वो सिस्टम से लड़ती रहती हैं। फिल्म के एक दृश्य में कीर्ति कहती हैं अर्जुन के इरादे हिल सकते हैं, घायल द्रौपदी के नहीं।
जिन लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी द्वारा घोषित देश में इमरजेंसी लगा कर किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंट रखा था, आज आइने में उसे देखने से क्यों वंचित किया जा रहा है? क्यों विरोध किया जा रहा है? इन्दिरा की तानाशाही के विरुद्ध जयप्रकाश ने जो जन आन्दोलन छेड़ा हुआ था, जिसकी तुलना आज़ादी संग्राम से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जयप्रकाश के आंदोलन के मुकाबले अन्ना आंदोलन पासंग भी नहीं।
दूसरे राजनारायण द्वारा इलाहाबाद अदालत में इन्दिरा के चुनाव को रद्द करवा कर लोकसभा सदस्यता समाप्त करने का निर्णय अपने आप में एक ऐतिहासिक निर्णय था। कुर्सी प्रेम ने इन्दिरा को इमरजेंसी लगाने को विवश कर दिया था। फिर जो लोकतंत्र का गला घोंटने का नंगा नाच खिलना शुरू हुआ, उस पर अनेको पुस्तकें प्रकाशित भी हो चुकी हैं। देश में इमरजेंसी लगाकर इन्दिरा ने जयप्रकाश और राजनारायण को तुरन्त गिरफ्तार नहीं किया, सबसे पहले गिरफ्तार किया अपने घोर विरोधी अंग्रेजी दैनिक The Motherland और Organiser साप्ताहिक के मुख्य सम्पादक केवल रतन मलकानी को। किसी समाचार पत्र को इन्दिरा या कांग्रेस के विरुद्ध लिखने की स्वतन्त्रता नहीं थी। समस्त अखबारों पर सेंसरशिप लागू थी। मलकानी जी गिरफ्तार होने और प्रो वेद प्रकाश भाटिया के गुप्त स्थान पर चले जाने के कारण एवं अख़बारों पर प्रतिबन्ध लगने के कारण प्रकाशन तो नहीं हो पाया, लेकिन किसी तरह से सहायक संपादक मंडल ने जोखिम लेकर रात के अँधेरे से सुबह सूरज उदय होने तक गिरफ्तार किए गए नेताओं और इन्दिरा विरोधियों के नाम एक Supplement में प्रकाशित कर, पूरा दफ्तर खाली हो गया। दीन दयाल भवन के आगे चौक पर दस पैसे का वह Supplement एक रूपए में खूब बिका। और जैसे से पहाड़ गंज पुलिस मौके पर पहुँचती अख़बार बेचने वाला भी पुलिस की आँखों में धूल झोंक कर भाग गया। लेकिन दफ्तर में मौजूद चौकीदार सुन्दर सिंह और सफाई कर्मचारी जौहरी लाल को पुलिस के डंडों से कोई नहीं बचा पाया।
कई बार Indian Express के पृष्ठ सेंसर होने के कारण काले छपते थे। अख़बार के तत्कालीन संपादक अरुण शोरी पर कई बार यातनाओं का डर दिखाया गया। परन्तु मालिक रामनाथ गोयनका का संरक्षण होने के कारण शौरी ने कलम की धार को कम नहीं किया। कुलदीप नायर भी अपनी कलम का करिश्मा दिखाते रहे। फिल्म पर आपत्ति करने वाले इमरजेंसी काल के Indian Express की फाइलों का अवलोकन कर सकता है।
तत्कालीन स्वयंसेवक रहे, पाञ्चजन्य सम्पादक भानु प्रताप शुक्ल की छत्रसाया में पत्रकारिता करने वाले, महाराष्ट्र कांग्रेस नेता संजय निरुपम भी शायद इमरजेंसी में हुई ज्यादतियों से इंकार कर सके।फाटक दुजाना हाउस, जामा मस्जिद दिल्ली में लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कर खूब नोट कमाए जा रहे थे। इस बाजार में नसबंदी के डर से झल्ली वाले, रिक्शा, तांगे वाले तो क्या भिखारी तक भाग गए थे। एक दिन नसबंदी के विरुद्ध आवाज़ बुलंद हुई, क्षेत्र में कर्फ्यू लग गया। बरहाल, सरकार ने वार्षिक बढ़ोतरी लेने, अपने हस्तांतरण आदेश रुकवाने के लिए कम से कम चार नसबंदी के केस देने होते थे। क्या यह ज्यादती नहीं थी?
फिल्म "किस्सा कुर्सी का" का सेंसर बोर्ड ने किस तरह कचूड़मा बनवा दिया, फिल्म "आँधी" को बैन, फिल्म "रोटी, कपडा और मकान" के गीत "हाय हाय ये महंगाई" पर बैन, इतना ही नहीं गायक किशोर कुमार ने संजय गाँधी के एक कार्यक्रम में गाने गाने से मना करने पर प्रतिबन्ध लगाना क्या उचित था?
जिन लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी द्वारा घोषित देश में इमरजेंसी लगा कर किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंट रखा था, आज आइने में उसे देखने से क्यों वंचित किया जा रहा है? क्यों विरोध किया जा रहा है? इन्दिरा की तानाशाही के विरुद्ध जयप्रकाश ने जो जन आन्दोलन छेड़ा हुआ था, जिसकी तुलना आज़ादी संग्राम से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जयप्रकाश के आंदोलन के मुकाबले अन्ना आंदोलन पासंग भी नहीं।
दूसरे राजनारायण द्वारा इलाहाबाद अदालत में इन्दिरा के चुनाव को रद्द करवा कर लोकसभा सदस्यता समाप्त करने का निर्णय अपने आप में एक ऐतिहासिक निर्णय था। कुर्सी प्रेम ने इन्दिरा को इमरजेंसी लगाने को विवश कर दिया था। फिर जो लोकतंत्र का गला घोंटने का नंगा नाच खिलना शुरू हुआ, उस पर अनेको पुस्तकें प्रकाशित भी हो चुकी हैं। देश में इमरजेंसी लगाकर इन्दिरा ने जयप्रकाश और राजनारायण को तुरन्त गिरफ्तार नहीं किया, सबसे पहले गिरफ्तार किया अपने घोर विरोधी अंग्रेजी दैनिक The Motherland और Organiser साप्ताहिक के मुख्य सम्पादक केवल रतन मलकानी को। किसी समाचार पत्र को इन्दिरा या कांग्रेस के विरुद्ध लिखने की स्वतन्त्रता नहीं थी। समस्त अखबारों पर सेंसरशिप लागू थी। मलकानी जी गिरफ्तार होने और प्रो वेद प्रकाश भाटिया के गुप्त स्थान पर चले जाने के कारण एवं अख़बारों पर प्रतिबन्ध लगने के कारण प्रकाशन तो नहीं हो पाया, लेकिन किसी तरह से सहायक संपादक मंडल ने जोखिम लेकर रात के अँधेरे से सुबह सूरज उदय होने तक गिरफ्तार किए गए नेताओं और इन्दिरा विरोधियों के नाम एक Supplement में प्रकाशित कर, पूरा दफ्तर खाली हो गया। दीन दयाल भवन के आगे चौक पर दस पैसे का वह Supplement एक रूपए में खूब बिका। और जैसे से पहाड़ गंज पुलिस मौके पर पहुँचती अख़बार बेचने वाला भी पुलिस की आँखों में धूल झोंक कर भाग गया। लेकिन दफ्तर में मौजूद चौकीदार सुन्दर सिंह और सफाई कर्मचारी जौहरी लाल को पुलिस के डंडों से कोई नहीं बचा पाया।
कई बार Indian Express के पृष्ठ सेंसर होने के कारण काले छपते थे। अख़बार के तत्कालीन संपादक अरुण शोरी पर कई बार यातनाओं का डर दिखाया गया। परन्तु मालिक रामनाथ गोयनका का संरक्षण होने के कारण शौरी ने कलम की धार को कम नहीं किया। कुलदीप नायर भी अपनी कलम का करिश्मा दिखाते रहे। फिल्म पर आपत्ति करने वाले इमरजेंसी काल के Indian Express की फाइलों का अवलोकन कर सकता है।
तत्कालीन स्वयंसेवक रहे, पाञ्चजन्य सम्पादक भानु प्रताप शुक्ल की छत्रसाया में पत्रकारिता करने वाले, महाराष्ट्र कांग्रेस नेता संजय निरुपम भी शायद इमरजेंसी में हुई ज्यादतियों से इंकार कर सके।फाटक दुजाना हाउस, जामा मस्जिद दिल्ली में लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कर खूब नोट कमाए जा रहे थे। इस बाजार में नसबंदी के डर से झल्ली वाले, रिक्शा, तांगे वाले तो क्या भिखारी तक भाग गए थे। एक दिन नसबंदी के विरुद्ध आवाज़ बुलंद हुई, क्षेत्र में कर्फ्यू लग गया। बरहाल, सरकार ने वार्षिक बढ़ोतरी लेने, अपने हस्तांतरण आदेश रुकवाने के लिए कम से कम चार नसबंदी के केस देने होते थे। क्या यह ज्यादती नहीं थी?
फिल्म "किस्सा कुर्सी का" का सेंसर बोर्ड ने किस तरह कचूड़मा बनवा दिया, फिल्म "आँधी" को बैन, फिल्म "रोटी, कपडा और मकान" के गीत "हाय हाय ये महंगाई" पर बैन, इतना ही नहीं गायक किशोर कुमार ने संजय गाँधी के एक कार्यक्रम में गाने गाने से मना करने पर प्रतिबन्ध लगाना क्या उचित था?
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