मुझे भी दया आती है उन रोहिंग्या लोगो की दीनता को देखकर, उनके बच्चों की मासूमियत को देखकर.. लेकिन उस समय हमारी यह दयालुता वाली सोच कहाँ चली गई थी जब भारत के सर की पगड़ी कहे जाने वाले प्रदेश कश्मीर से 1.5 लाख पंडितों ने किसी की प्रताड़ना की वजह से पलायन कर गए, अपना वजूद खो बैठे.. वे लोग कहाँ है, क्या एकत्रित होकर परिवार के साथ रहते है ? क्या अपने ही देश-प्रदेश में निवास करते है या कहीं गुमनाम हो गए ?
क्या उनके भी बच्चे आज मुस्कुराते है, किस दयालु व्यक्ति ने उनकी वकालत कर उन्हें सुरक्षा दी, किसने उनको शरण दिया, वो कहाँ के शरणार्थी है अब ? सिर्फ कश्मीर के पंडित ही नही बंगाल के हिन्दुओ वाले चौराहे से लेकर कैराना जैसी गलियों तक बहुत लंबी लिस्ट है, अपने देश के भीतर की पलायन स्थिति को गंभीरता से न लेने वाले लोग आज पराए देश से पलायन कर आए हुए रोहिंग्या लोगो की वकालत कर रहे है, उन्हें शरणार्थी बता रहे है ! क्या यह उचित है ? अथवा इसके पीछे कोई बहुत बड़ा स्वार्थ है ?
विदेशियों का दर्द इन्हे दिख रहा है, लेकिन जब कश्मीर में हिन्दुओं को मारा जा रहा था, उनको कश्मीर छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा था, तब क्यों गूंगे और अंधे बन गए थे? क्या कश्मीरी हिन्दू इन्सान नहीं है? मानवाधिकार भी पता नहीं कहाँ मस्ती मार रहा था?
देश में रोहिंग्या मुसलमानों के शरण देने के लेकर विवाद अभी थमा नहीं है कि रोहिंग्या हिन्दुओं पर रोहिंग्या चरमपंथी मुसलमानों द्वारा कुए गए जुल्म धीरे धीरे सामने आ रहे हैं। म्यांमार आर्मी द्वारा करीब 28 हिन्दुओं की सामूहिक कब्र मिलने की बात कहने के एक दिन बाद हिन्दी न्यूज चैनल आजतक ने बांग्लादेश के रोहिंग्या राहत कैंप में पहुंचकर वहां रह रहे लोगों से बात की। कैंप में रह रहे हिन्दू समुदाय के लोगों से भी चैनल ने बात की है। विस्थापित हिन्दुओं ने एक एक करके चैनल को अपनी आपबीती सुनाई। किस तरह रोहिंग्या चरमपंथी मुसलमानों के गुटों द्वारा ने ना सिर्फ हिन्दुओं का नरसंहार किया गया बल्कि महिलाओं का बलात्कार कर उनका जबरदस्ती धर्मांतरण भी किया गया। एक हिन्दू महिला जो म्यांमार से भागकर शर्णार्थी कैंप में पहुंची है उसने चैनल को बताया है कि उसके पास पहनने के लिए सिर्फ एक जोड़ी साड़ी है लेकिन उसकी तीन साल की बच्ची के पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं है।
जबरदस्ती मुसलमान बनाई गई रिका उर्फ सादिया ने चैनल को बताया कि, ” अगस्त के आखिरी हफ्ते में उन्होंने हिन्दुओं के घर में घुसपैठ की और हमले किए। हमारे आदमियों के मोबाइल फोन छीन लिए गए और बांधकर बुरी तरह पीटा गया मेरे पति लोहार थे। मेरे सारे गहने ले लिए मुझे पीटने लगे सभी हिन्दुओं को पकड़कर एक पहाड़ी पर ले जाया गया और लाइन में लगाकर मार डाला गया। सिर्फ 8 महिलाओं को जिंदा रखा गया उन्होंने कहा तुम अब हमारे साथ रहोगी हमसे शादी हमारे पास उनके सामने सरेंडर करने के अलावा कोई उपाय नहीं था। धर्म परिवर्तन की बात माानने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं बचा थी। वहीं से हमें बांग्लादेश के एक कैंप में ले जाया गया और धर्म परिवर्तन के नाम पर मीट खिलाया गया। इसकी जानकारी हमारे एक हिन्दू जानकार को लगी तो हम रोहिंग्या हिन्दुओं के कैंप में आज सके।”
हद है दोगलेपन की
मजे की बात यह है कि कल तक जो लोग मोदी सरकार के आने पर मुस्लिमों के लिए भारत असुरक्षित होने का रोना रो रहे थे, आज वही रोहिंग्य मुसलमानो को भारत में रहने के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं। इसका मतलब स्पष्ट है, "जय बोलो तुष्टिकरण की", यानि जिस तरह हो सके, भारत का वातावरण ख़राब किया जा सके। भारत को असुरक्षित का विधवा विलाप करने वालों राष्ट्र को जवाब दो: "अब भारत का वातावरण सुरक्षित कैसे हो गया? क्या उस समय भारत को विश्व में बदनाम करने और माहौल ख़राब करने के उद्देश्य से इस तरह की ज़हरीली बातों को बोला गया था?"
जावेद अख्तर ने एक ट्वीट कर रोहिंग्या मुसलमानों का पक्ष लेते हुए म्यांमार की सेना पर ही सवाल उठा दिया. उन्होंने लिखा…
“यदि हिंदुओं की एक व्यापक कब्र मिली है तो यह म्यांमार की सेना का काम हो सकता है. नहीं तो क्यों रोहिंग्या के साथ सैकड़ों हिंदू भी भाग कर भारत आरहे है.”
उनके कहने से साफ़ लग रहा था की वे इस बात को नहीं मानते की रोहिंग्या मुस्लिम आतंकवादी भी हो सकते है. उनके शब्दों से यह भी ज़ाहिर हो रहा है कि उनको रोहिंग्या मुसलमानों की काफी चिंता है, तभी तो उन्होंने हिन्दुओं के ऊपर भी सवाल उठा दिया.
उनके ट्वीट करने के बाद यूजर्स ने भी उनको अपनी प्रतिक्रियाएं दी… शायद इससे उनको कुछ सीख मिली हो…
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