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लाल किला शाहजहाँ ने नहीं अनन्तपाल तोमर द्वितीयने बनवाया था

इस पाक्षिक को सम्पादित करते
अपने बहुचर्चित स्तम्भ में
यूपीए  सरकार के कार्यकाल में
 लाल किले पर उठाया प्रश्न
  था 

जिसका विरोध भी किया गया था। लेकिन 
दूसरे (नीचे) स्तम्भ के लिखे जाने पर, 
मौन रहे !!! 
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
क्या आप जानते हैं कि दिल्ली के लाल किले का रहस्य क्या है और इसे किसने बनवाया था। दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पूर्व ही पृथ्वीराज चौहान के नाना महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट है। हमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ ने बनवाया था। 
लेकिन यह एक सफ़ेद झूठ है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले “महाराजा  अनंगपाल तोमर द्वितीय” द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था। महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे। 
इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है, जिसे अनंगपाल द्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर को बसाने के क्रम में ही बनवाया गया था, जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद हुआ। 
दरअसल शाहजहाँ नामक मुग़ल आतताई  ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश की थी ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके लेकिन सच सामने आ ही जाता है।  इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ठ संख्या 160 (ग्रन्थ 3) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया। इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता कि खिलजी के दिल्ली आने और शाहजहाँ के जन्म में कितना लम्बा अन्तराल है। 
सिर्फ इतना ही नहीं अकबरनामा और अग्नि पुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था। जिसको शाहजहाँ ने पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश करी थी ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके। 
इसके पूरे साक्ष्य पृथ्वी राज रासो से मिलते हैं। शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले1398 मे तैमूर लंग ने पुरानी दिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है) सुअर (वराह) के मुँह वाले चार नल अभी भी लाल किले के एक खास महल मे लगे हैं। क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हमारे हिंदुत्व के प्रमाण? अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि भारत के इस गौरवशाली इतिहास को किस कारण और किसने बदलने का दुस्साहस किया? भारतीय पुरातत्व विभाग ने क्या कार्यवाही की?
इतना ही नहीं, लाल किले की बगल में औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह का भी महल था (जहाँ आज रेलवे लाइन और मुख्या डाकघर है), वह कहाँ गया? कोई दारा शिकोह का नाम भी नहीं लेता क्यों? क्योकि वह हिन्दू विरोधी नहीं बल्कि हिन्दू प्रशसंक था। 
किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है। राजपूत राजा गजो( हाथियों) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है) दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से कुंड बना है, जिसके फर्श पर हिन्दुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिन्दू शब्दावली है जो की हमारे राजाओं द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रही है। 
मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्व नही है दीवाने खास और दीवाने आम में। दीवाने खास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है, अपनी प्रजा मे से 99% भाग को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता, ब्राह्मानो द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसिद्ध है। 
दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल(आमेर–पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बना हुआ है। लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरी शंकर मंदिर दोनो ही गैर मुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए हुए हैं। 
लाल किले का मुख्य बाजार चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से घिरा हुआ है, समस्त पुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के ही हैं। क्या शाहजहाँ   जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाए हिन्दुओं  के लिए मकान बनवा कर अपने पास बसाता? 
एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन नही है। “गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमींअस्ता ” –अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है..इस अनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन का निर्माणकर्ता नही लिखवा सकता और ना ही किसी के निर्माणकर्ता होने का सबूत देता है।
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसे ही हिन्दू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट कर के हिन्दुओं का नाम ही इतिहास से हटा दिया गया है, अगर हिन्दू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप में। ताकि हिन्दू हमेशा ही अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके।
आर्गेनाइजर साप्ताहिक ने सब्ज़ी मंडी में देसी घी व्यापारी डॉ गणेशी लाल वर्मा की एक श्रंखला "मुगलों द्वारा मस्जिदों और दरगाहों में परिवर्तित किए चर्चित हिन्दू मन्दिर" प्रकाशित की थी।
आखिर कब तक हिन्दु धर्म को समाप्त करने वालो की पूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलाते रहोगे? क्यों हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान की वीरता को भूलवाया गया, जिसने 16 बार पराजित किए मुगल ज़ालिम आक्रमणकारी मोहम्मद ग़ोरी ने जब जयचन्दों के साथ मिलकर 17 बार आक्रमण में पराजित कर बन्दी बनाकर चौहान की आंखें निकाल ज़ालिमता का उदाहरण प्रस्तुत किया। लेकिन सूरदास बन चुके सम्राट चौहान ने अपने राष्ट्रकवि चंद्रवरदाई की कविता की सहायता से शब्दभेदी बाण कला से उसी विजयी को 72 हूरों के पास पहुंचा कर अपनी पराजय का बदला लिया। लेकिन ज़ालिम ग़ोरी के उत्तराधिकारियों ने सम्राट की अस्थियों को गोरी की मज़ार पर चढ़ने के लिए बनाई गयी सीढ़ियों के नीचे ही दबा कर रखी, बल्कि मज़ार पर जाने वालों को उस सीढ़ी पर जूते-चप्पल मार कर चढ़ने के लिए कहा जाता था। जिसे भारत लेकर आया, तिहाड़ जेल में कैद बाहुबली शेरसिंह राणा। हिन्दू सम्राट पोरस ने किस तरह भारत की धरती पर कदम रखने वाले सिकन्दर को ऐसी मार देकर भगाया कि उसकी पुनः भारत की ओर देखने का साहस नहीं हुआ, लेकिन भारत में पढ़ाया जाता है, "विश्व विजेता सिकन्दर", जो सिद्ध करता है, कि किस तरह चंद चाँदी के टुकड़ों की खातिर जयचंद इतिहासकारों ने हिन्दू गौरवशाली इतिहास को बदल दिया।
अवलोकन करें:--
Thursday, February 2, 2012 Delhi RedFort True Story: True History of Delhi Redfort This tablet raised inside Delhi's Red Fort ...
NIGAMRAJENDRA28.BLOGSPOT.COM
आज अक्टूबर 25 को मेरे एक मुस्लिम मित्र ने "लाल किला शाहजहाँ ने नहीं अनन्तपाल तोमर द्वितीयने बनवाया था" के सबूत देने का आग्रह किया। हालाँकि मित्र की ऐसी कोई गलत मंशा नहीं थी। फिर भी साफ नियत से लिखे लेख को किसी का शिकार होने बचाने का भी दायित्व बनता है। दूसरे यह की यह मित्र एक एनजीओ का संचालन भी करते हैं।
चंद चाँदी के टुकड़ों के लालच में शर्म आती है इन इतिहासकारों पर जिन्होंने अपने ही देश की भोली-भाली जनता को अपने ही वास्तविक इतिहास से अज्ञान रखा। खैर अपने मित्र की शंका दूर करने निम्न चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। वैसे मित्र को शंका शायद इसलिए भी हुई होगी कि अयोध्या,काशी मथुरा विवाद समाप्त भी नहीं हो पाया कि ताजमहल का मुद्दा खड़ा हो गया और मेरा मित्र एक और विवाद यानि लाल किला के मुद्दे को खड़ा कर रहा हैं। 
History was modified by Mughal rulers in India and everyone was made to believe that Shahjahan had built this palace during his tenure in between 1639 to 1648 AD by employing Ustad Ahmad Lahauri as chief architect.
But what they did was only few modifications and the original fort existed even before Mughals entered India.
See below pictures for proof of who originally built Red Fort in Delhi.
redfort stone wrong date
A stone tablet inside Red Fort by modern archaeologists proclaims that Shahjahan (who ruled from 1628 to 1658 AD) built this fort from 1639 to 1648 AD.
redfort shahjahan 1628 painting
But one can see the photo on right side (painting), of Shahjahan’s time preserved in the Bodleian Library, Oxford. It depicts Shajahan receiving the Persian ambassador inside the fort in 1628, the very year of Shahjahan’s accession. Obviously the fort existed much before Shahjahan.
This painting preserved in the Bodleian Library, Oxford, was reproduced in the Illustrated Weekly of India (page 32) of March 14, 1971. Since Shahjahan was in the fort in the year of his accession, this documentary evidence disproves the notion that he built the fort.
redfort kalash symbol
In Red Fort’s Khas Mahal, alias the King’s main apartment, one can find the royal emblem of its builder King Anangpal. It has of a pair of swords laid hilt to hilt curving upwards, the sacred Hindu pot (kalash) above the hilts, a lotus bud and a pair of scales of justice balanced over it. Dotted around are representations of the sun from whom Indian ruling dynasties claimed descent (Surya Vansh).
At the sword points are two small conches considered sacred in Hindu tradition. Bigger conches may be seen at the left and right corners at the base.
This royal Hindu insignia of the Hindu king who built Delhi’s Red Fort, is still there in the Khas Mahal pavilion. But even this visual symbol has been blatantly misinterpreted. The two swords laid hilt to hilt, curving upward are being inadvertently styled by ignorant guides, archaeologists and historians as an Islamic crescent. The sacred Hindu Kalash (water pot) on the hilts is never noticed.
The lotus bud on the kalash represents royal wealth. The pair of scales is symbol of impartial justice.
redfort sun suryavansh symbol
The above picture shows Hindu midday sun (from whom Hindu rulers claim descent, Suryavashi or Solar Dynasty rulers) in the arch above flanked by the sacred Hindu letter OM. Below it is the royal Hindu insignia which is shown their royal emblem. This proves the hollowness of the claim that Shahjahan commissioned the Red Fort.
Mughals made urdu inscriptions in gaps on these archs.
redfort elephants statues
The life size statues of two elephants flanking the Delhi Gate (Delhi Darwaza) of Red Fort are an unmistakable sign of the fort’s Hindu origin. This is one of the proofs that the Red Fort was commissioned by Raja Anangpal in 1060 AD and not the Mogul emperor Shahjahan (1639-48 AD) as is erroneously believed.
The concept of building statues of elephants on forts and palace gates can be well judged by examining the palaces at Gwalior, Udaipur and Kota. Decorating homes, forts, palaces and temples with elephants is a hoary Hindu tradition. To the Hindu an elephant symbolizes might, power, glory and wealth.
redfort mahavant elephant rider on door knobs
There are statues of Hindu Mahavants riding the elephants of the doors of each interior room of “Khas Mahal” in the Red Fort.
One can see close up of the elephant and rider door knob in the Khas Mahal of the Red Fort in Delhi (in right side of picture above). This is a typically Hindu motif. Other big life-size stone elephants decorating the Naqqar Khana (Music House) gate were slaughtered by invaders. The chopped up pieces may still be seen stored in the Khas Mahal basements.
redfort moti masjid hindu temple
Above picture is the inner view of the entrance to the so-called Moti Masjid inside Delhi’s Red Fort.
The archaeological tablet outside claims that the mosque was built by Aurangzeb, son and successor of Shahjahan. That claim is baseless because :
The entrance is of a temple design.
The arch between the domes is made of banana bunches used in Hindu worship.
On either side above the arch are trays holding five fruits each as holy Hindu offering. Fruit is taboo inside Muslim mosques.
Naming buildings after gems (Moti means pearl) is a Hindu custom.
If Shahjahan built the fort why didn’t he provide it with a mosque ?
The truncated Hindu perambulatory passage may still be seen to exist on the building’s left flank.
The back of the wall shows signs of tampering.
redfort rang mahal
Above pictures is a temple-front design of ribbed gourd-like domes on either side with a pinnacle surmounted by a canopy in the centre, embossed on the riverside wall of the Rang Mahal apartment inside Delhi’s Red fort is emphatic proof that the fort is a pre-Shahjahan Hindu fort.
Even the name Rang Mahal is Hindu.
In this same pavilion is carved on the floor an exquisite lotus in full bloom as a fountain trough.
Muslim rulers have built walls and floors which are plain.
The canopy in the photo may be seen at several Hindu altars. The kalash (pot) under it represents divinity in Hindu (Vedic) tradition.
The perforated marble screens (Jaalees or netred screens) inside the Khas Mahal and Rang Mahal are mentioned even while describing palaces in Ramayana.
The Tomar dynasty founded Lal Kot in 736. The Prithviraj Raso names the Tomar Anangpal as the founder of Lal Kot, whose name is inscribed on Iron Pillar of Delhi at Qutb complex, ascribed to Chandra or Chandragupta II.
Lal Kot (means Red Fort) at Mehrauli, Delhi, was built by tomar dynasty and its ruins are still seen with red colored stones.(Courtesy) 
इस लेख के आदरणीय पाठको से निवेदन है कि जिसके पास इस विषय में कोई प्रमाण सहित जानकारी हो देने की कृपा करें, ताकि देश वास्तविक इतिहास से भ्रमित करने के आरोपियों को दण्डित करने के लिए वर्तमान सरकार को बाध्य कर सके।
अपने ताजमहल के लेख में स्पष्ट लिखा भी था कि विश्व हिन्दू परिषद् ने पहले ही कहा था कि "हम हिन्दुओं को ये तीन --अयोध्या, काशी मथुरा -- दे दो, अन्यथा 3000 लेकर रहेंगे। ताजमहल पर उठा विवाद 3000 वापस लेने का संकेत है। अधिक जानकारी के लिए पी.एन. ओक एवं डॉ गणेशी लाल वर्मा की Coversion Of Hindu Temples  पुस्तक का भी अवलोकन किया जा सकता है।
अनवर शेख द्वारा 1994 में लिखित ‘‘मुसलमानों द्वारा हिन्दू मंन्दिरों का विनाश क्यों?’’ पुस्तक में व्यक्त की गई मर्मान्तक पीड़ा :
‘‘मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू मंन्दिरों के विनाश का कार्य अपनी धन की ललक की पूर्ति व धर्मान्धता के कारण ही किया गया था। यही कारण था कि महमूद गज़नवी की अनेकों बार भारत पर आक्रमण करने की इच्छा हुई। यद्यपि उसके अभियान निन्दनीय व घृणित थे, फिर भी मैं (अनवर शेख) अपने हिन्दू पूर्वज बाप-दादाओं की प्रशंसा नहीं कर सकता कि वे पौरुष और शक्ति प्रदर्शन के वैदिक सिद्धांतों कां त्याग कर पूरी तरह अहिन्दू अवधारणा ‘अहिंसा’ के पुजारी हो गए।

मैं इस महापीड़ा कारक अपमान को सहन करना बेहद कठिन पाता हूं और स्वीकार करता हूं कि चिड़िया की बाज के हाथों मृत्यु निश्चित है। हमें याद होना चाहिए कि बाज एक वैदिक पक्षी होने के कारण क्षत्रियों की शक्ति का प्रतीक होता है। हिन्दुओं ने चिड़िया की भांति व्यवहार करके स्वयं ही अपना विनाश आमंत्रित किया है। एक राष्ट्र जो अपनी बाज समान प्रकृति को छोड़ देता है, निश्चय ही पीड़ित और अपमानित किया जाता है। उसका अंगभंग और वध कर दिया जाता है।’’

‘जब हावी होने की प्रवृत्ति का उद्देष्य दूसरों के सम्मान, सुरक्षा, स्वतंत्रता के मूल्य पर शक्ति का उपयोग करना ही रहता है तो वह सबसे बड़ा दोष हो जाता है।’’
‘‘दूसरी ओर विनम्रता या सहनशीलता, प्रभुत्व के इच्छुक आक्रांता का सामना या उससे संघर्ष न करने पर उससे भी बड़ा दोष हो जाता है क्योंकि इसके कारण आक्रमणकर्ता और अधिक साहसी, दानवी और विनाशकारी हो जाता है। जुझारुपन के अभाव में एक भेड़िया भेड़ मात्र ही है, जो भोजन की मेज पर आहार के लिए ही उपयुक्त होता है। एक राष्ट्र जो अपनी रक्षा के लिए आत्मविश्वास खो देता है, फुटबॉल की तरह हो जाता है, जिससे जो चाहे, जैसे चाहे, खेले यानि कि हर गधा-घोड़ा ठोकर ही मारेगा।’’
‘‘अहिंसा को जीवनादर्श बनाकर हिन्दुओं ने अपने आपको प्रत्येक आक्रमणकर्ता को लालच भरा निशाना बना दिया है। यह कोई धार्मिक गुण नहीं है वरन अपवित्रता का द्योतक है तथा एक अति निन्दनीय दोष को सर्वश्रेष्ठ गुण के रूप में अधिष्ठित करने का प्रयास मात्र है। देवता अपने भक्तों को कायर के रूप में नहीं चाहते, वैदिक देवता अपने देशभक्तों, जो सम्मान की भावना से युद्ध करते हैं, को ही आशीर्वाद देते हैं।’’
‘‘भारतीय लेखकों सर्वश्री रामस्वरूप, सीताराम गोयल, जी.एन. जगत्यानी, ए. घोष (टैक्सास) की देशभक्तिपूर्ण विरोधों की गूंज, जो अपनी लेखनी के माध्यम से सफलीभूत हुई है, बड़ी हताशा के साथ हिन्दू उत्थान की खोज में हैं। वह अपने लोगों के क्षात्रतेज को दुबारा जगाने के लिए सब कुछ करेंगे।’’ -अनवर शेख





    

Comments

Unknown said…
Abe sale bhosdi ke ky ky jhuthlaoge
HemantRankawat said…
बहोत बहोत धन्यवाद आपका जो आपने इतनी सारी जानकारी साझा की,सनातन ही सर्वश्रेष्ठ था और सदैव रहेगा।

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To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

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