आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
मोदी सरकार ने 2004 से 2014 के बीच सरकार के फैसलों से जुड़ी पीएमओ की 710 फाइलें सार्वजनिक करने का एलान किया है। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली नेशनल एडवाइजरी कौंसिल (एनएसी) की इन फाइलों से यह साफ हो जाता है कि 10 साल के मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनकी हैसियत रबर स्टैंप से भी कम थी और असली सरकार सोनिया गांधी चला रही थीं। इस तरह से गलतियों का ठीकरा तो मनमोहन पर फूटता रहा, लेकिन बिना किसी जवाबदेही और जिम्मेदारी के असली राजपाट सोनिया गांधी चलाती रहीं।
अवलोकन करें:--
यही बात भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है। विश्व विख्यात अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन की प्रतिष्ठा प्रधानमन्त्री एक प्रधानमन्त्री के रूप में जरुरत से ज्यादा धूमिल हुई है। निष्कलंक होते हुए कालक से अपने आपको बचा नहीं पाए। लगता है या तो सोनिया गाँधी डॉ सिंह की दुखती नब्ज जानती होंगी, जिसके दाबने पर डॉ सिंह कुछ बोलने से अपने आपको असह्य महसूस करते होंगे। अन्यथा कोई इतनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता। उनके आर्डर को सार्वजानिक रूप से फाड दिया जाता है, इतना बड़ा अपमान होने के बावजूद प्रधानमन्त्री की कुर्सी से चिपके रहना, सिद्ध करता है कि कुछ कहीं न कही गड़बड़ है।
सोनिया गांधी ने मनमोहन सरकार को सलाह देने के नाम पर नेशनल एडवाइजरी कौंसिल बनाई थी, जिसकी अध्यक्ष वो खुद थीं। ये कमेटी कोयला, बिजली, विनिवेश, जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों, रोजमर्रा के सरकारी फैसलों से लेकर औद्योगिक नीति जैसे मामलों में फैसले ले रही थी। अंग्रेजी अखबार द न्यूज इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में रिपोर्ट छापी है।
मोदी सरकार ने 2004 से 2014 के बीच सरकार के फैसलों से जुड़ी पीएमओ की 710 फाइलें सार्वजनिक करने का एलान किया है। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली नेशनल एडवाइजरी कौंसिल (एनएसी) की इन फाइलों से यह साफ हो जाता है कि 10 साल के मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनकी हैसियत रबर स्टैंप से भी कम थी और असली सरकार सोनिया गांधी चला रही थीं। इस तरह से गलतियों का ठीकरा तो मनमोहन पर फूटता रहा, लेकिन बिना किसी जवाबदेही और जिम्मेदारी के असली राजपाट सोनिया गांधी चलाती रहीं।
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यही बात भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है। विश्व विख्यात अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन की प्रतिष्ठा प्रधानमन्त्री एक प्रधानमन्त्री के रूप में जरुरत से ज्यादा धूमिल हुई है। निष्कलंक होते हुए कालक से अपने आपको बचा नहीं पाए। लगता है या तो सोनिया गाँधी डॉ सिंह की दुखती नब्ज जानती होंगी, जिसके दाबने पर डॉ सिंह कुछ बोलने से अपने आपको असह्य महसूस करते होंगे। अन्यथा कोई इतनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता। उनके आर्डर को सार्वजानिक रूप से फाड दिया जाता है, इतना बड़ा अपमान होने के बावजूद प्रधानमन्त्री की कुर्सी से चिपके रहना, सिद्ध करता है कि कुछ कहीं न कही गड़बड़ है।
सोनिया गांधी ने मनमोहन सरकार को सलाह देने के नाम पर नेशनल एडवाइजरी कौंसिल बनाई थी, जिसकी अध्यक्ष वो खुद थीं। ये कमेटी कोयला, बिजली, विनिवेश, जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों, रोजमर्रा के सरकारी फैसलों से लेकर औद्योगिक नीति जैसे मामलों में फैसले ले रही थी। अंग्रेजी अखबार द न्यूज इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में रिपोर्ट छापी है।
प्रधानमंत्री नहीं ‘गुलाम’ थे मनमोहन सिंह!
एक प्रधानमंत्री को अपने विवेक से बहुत सारे अहम फैसले लेने होते हैं। लेकिन मनमोहन सिंह को इसकी भी छूट नहीं थी। सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद हर मसले में सलाहनुमा आदेश जारी किया करती थी और मनमोहन सिंह चुपचाप उस पर मुहर लगा दिया करते थे। ये परिषद इतनी ताकतवर थी कि वो तमाम बड़े अफसरों को सीधे अपने दफ्तर 2, मोतीलाल नेहरू प्लेस में बुलाकर रिपोर्ट मांगा करती थी। कई बार तो इसने मंत्रियों को चिट्ठी लिखकर प्रोजेक्ट्स के बारे में जानकारी ली। यह एक तरह से पद और गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन माना जा सकता है क्योंकि मंत्री सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए जवाबदेह होते हैं,सलाहकार परिषद के लिए नहीं। जो फाइलें सार्वजनिक होने वाली हैं, वो इस बात का सबूत हैं कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद फैसले ले रही थी, न कि सलाह या सिफारिश कर रही थी। प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों का काम उन फैसलों पर मुहर लगाने का होता था।
मनमोहन पर नहीं था सोनिया को भरोसा!
अखबार में सलाहकार परिषद की कई बैठकों का जिक्र किया गया है जिनमें हुए फैसले इस बात का सबूत हैं कि सोनिया गांधी को मनमोहन सिंह की काबिलियित पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं था। यही कारण है कि तमाम छोटे-बड़े फैसले इस कमेटी के जरिए ही लिए जा रहे थे। एक फाइल नोट में यहां तक लिखा है कि “चेयरमैन (सोनिया गांधी) ने नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में खेलों के विकास के बारे में सिफारिशें 21 फरवरी 2014 को एक पत्र के माध्यम से भेज दी हैं। साथ ही देश में सहकारिता के विकास पर सिफारिशें भी सरकार को भेजी जा रही हैं। इन पर चेयरमैन (सोनिया गांधी) की अनुमति ली जा चुकी है।”
ये और ऐसी तमाम छोटी-बड़ी सिफारिशें जब प्रधानमंत्री कार्यालय या मंत्रालयों में पहुंचती थीं तो उन्हें बिना किसी सवाल-जवाब या बदलाव के अप्रूव कर दिया जाता था। मतलब यह कि कोयला और 2जी जैसे घोटालों में जिन फैसलों के कारण मंत्रियों और अधिकारियों को जेल जाना पड़ा है, वो फैसले भी शायद सोनिया गांधी के ही लिए हुए थे। अगर इस बारे में सबूत मिल जाते हैं तो इन तमाम घोटालों को लेकर चल रही कानूनी कार्यवाही में ये एक बड़ा उलटफेर साबित हो सकता है।
क्या थी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद?
2004 से 2014 तक चली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद या NAC की चेयरमैन खुद सोनिया गांधी थीं। इसके अलावा उन्होंने अपने चापलूस और भरोसेमंद किस्म के लोगों को इसका सदस्य बना रखा था। इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ता भी थे, जो आम तौर पर देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय देखे जाते हैं। केजरीवाल के साथी रहे अरुणा रॉय और योगेंद्र यादव भी इसी कमेटी में हुआ करते थे। 2005-06 के आसपास अरविंद केजरीवाल ने भी इस कमेटी में घुसने की भरपूर कोशिश की थी और इसके लिए उन्होंने कई लोगों से सिफारिशें भी लगवाई थीं। सोनिया गांधी ने उन्हें कौंसिल का सदस्य तो नहीं बनाया, लेकिन उन्हें एक अलग तरह के एजेंडे पर लगा दिया। इस बात की पुष्टि कांग्रेस के कई सीनियर नेता और योगेंद्र यादव भी कर चुके हैं। जो इस बात को भी सिद्ध करता है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस का ही दूसरा रूप है,जिसका उद्देश्य केवल मोदी का विरोध करना है। जनता में कांग्रेस को बुरा-भला कहना मात्र एक छलावा है। और जनता यही समझती रही कि आम आदमी पार्टी एक नयी सोंच वाली जनता के हित में काम करने वाली पार्टी है। आखिरकार सच्चाई सामने आ ही गयी।
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