कानून मंत्री रविशंकर बोले, राम मंदिर में हिन्दुओं के पास है इतना सबूत की सुप्रीम कोर्ट में ताल ठोक के जीतेंगे
आर.बी.एल.निगम
केंद्रीय कानून मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राम मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी हिन्दुओं को जीत मिलेगी। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिन्दुओं के स्टैंड को विजय मिली थी और सुप्रीम कोर्ट में भी यही होगा। रविशंकर प्रसाद पटना के बख्तियारपुर में एक सभा को संबोधित कर रहे थे। हालाँकि उन्होनें यह साफ कर दिया है कि उनका यह ब्यान देश के कानून मंत्री के तौर पर नही बल्कि एक वकील के तौर पर है।
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केंद्रीय कानून मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राम मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी हिन्दुओं को जीत मिलेगी। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिन्दुओं के स्टैंड को विजय मिली थी और सुप्रीम कोर्ट में भी यही होगा। रविशंकर प्रसाद पटना के बख्तियारपुर में एक सभा को संबोधित कर रहे थे। हालाँकि उन्होनें यह साफ कर दिया है कि उनका यह ब्यान देश के कानून मंत्री के तौर पर नही बल्कि एक वकील के तौर पर है।
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ताल ठोक कर जीतेंगे मंदिर मुद्दा
विवादित मस्जिद के नीचे मिले 14 खम्बों में से एक खम्बा |
दूसरे पक्ष का दावा गलत
रविशंकर प्रसाद ने रामजन्म भूमि स्थान पर दूसरे पक्ष के दावे को गलत बताया। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी फैसला दिया था कि दूसरा पक्ष बाबरी मस्जिद को साबित करने में असफल रहा है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन बातों को कानून मंत्री की हैसियत से नहीं बल्कि रामलला और हिन्दुओं का वकील होने की हैसियत से कह रहे हैं। उन्होंने दोहराया कि सुप्रीम कोर्ट में भी ताल ठोककर हिन्दुओं की भावनाओं की जीत होगी।
अँधा कानून प्रमाण मांगता है, रामलला के मन्दिर होने के इतने प्रमाण है कि कानून खुली आँखों से देखे तो 24X7 प्रमाणों का अम्बार है। इतिहास के अतिरिक्त खुदाई में ही इतने प्रमाण निकलकर आए, राम मन्दिर विरोधियों की आंखें चौंध गयी थी। लेकिन केन्द्र में उनकी सरकार होने पर उन्हें लाभ यह मिला कि खुदाई में मिले समस्त प्रमाणों को कोर्ट में प्रस्तुत ही नहीं किया। और इस बात का उल्लेख पुरातत्व विभाग में निदेशक रहे के.के. मोहम्मद ने तमिल भाषा में लिखित अपनी पुस्तक में भी किया है। खुदाई में इतने प्रमाण मिलने के बावजूद वामपंथियों ने केवल एक ही खम्बा कोर्ट में प्रस्तुत किया।
यहाँ मन्दिर पक्ष के वकीलों की सबसे बड़ी भूल या गलती यह थी, कि कोर्ट को बाध्य कर सकें कि "आखिर किस कारण से खुदाई में मिले इतने प्रमाणों को छुपाकर कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है?" मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि तब आर्गेनाइजर और कई पत्र-पत्रिकाओं ने खुदाई में मिली खण्डित मूर्तियाँ, फर्श, मन्दिरों का मालवा आदि के चित्र प्रकाशित किए थे। यदि उसके आधे ही कोर्ट में प्रस्तुत किए होते तो अब तक मन्दिर बन चुका होता।
स्मरण हो, जब माननीय कोर्ट ने विवादित स्थल की खुदाई का आदेश दिया था, तब मुलायम सिंह ने कहा था कि "यदि खुदाई में मन्दिर के सबूत मिले, तो वहाँ मस्जिद नहीं बनेगी।" लेकिन सबूत मिलने पर मुलायम सिंह की बोलती आज तक बंद है। दूसरे, जब मुलायम सिंह के मुख्यमन्त्री रहते हिन्दू आंदोलनकारियों द्वारा अयोध्या कूच करने से पूर्व रामभक्तों की पकड़-धकड़ चल रही थी, तब कोर्ट से रामजन्मभूमि तारीख से निपट वकील अपनी मंज़िल की ओर जा रहे थे, पुलिस ने उन्हें भी पकड़ कर जेल में बंद कर दिया था। लेकिन जल्द ही अपनी भूल सुधार कर उन्हें छोड़ दिया। उन्होंने सोंचा चलो मुख्यमंत्री जी से मुलाकात कर ली जाए, तब मुलायमसिंह से मिलने पर मुलायम सिंह ने कहा कि "मै मन्दिर का विरोधी नहीं, लेकिन मै अपने वोट-बैंक को बचा रहा हूँ। क्योकि हिन्दू वोट देता है बीजेपी को, फिर कांग्रेस और आखिर मे किसी और को। मुसलमान वोट देता है हमें, इसलिए अपनी वोट की चिन्ता करना हमारी ड्यूटी है।" इस बात का उल्लेख अधिवक्ता डॉ वी.पी. शर्मा ने आर्गेनाइजर से बात करते किया था।
Kushana period artifacts from the 'mosque' site |
https://www.youtube.com/watch?v=8lXOKadb19E#action=share
https://www.youtube.com/watch?v=Y_MSXoWBiMs#action=shareइस लिंक को भी संज्ञान में लिया जाए :--
http://photogallery.indiatimes.com/news/india/history-of-ram-janmabhoomi-and-babri-masjid-case/bharatiya-janta-partys-supreme-leaders/articleshow/58912049.cms
इसमें दो राय नहीं कि यदि कोर्ट के समक्ष खुदाई मिले समस्त प्रमाण प्रस्तुत कर दिए या कर दियें जाएँ, अयोध्या में किसी भी जगह दूर तक किसी भी कीमत पर मस्जिद बन ही नहीं सकती। मस्जिद के लिए जगह देना तो सोंच से ही बाहर है। क्योकि मुकदमा उस स्थल का है कि "वहाँ मन्दिर था या नहीं?" अयोध्या के किसी और क्षेत्र का नहीं।
अयोध्या मंदिर इतिहास गज़ब है डॉट रिपोर्ट
अयोध्या की स्थापना - वैवस्वत मनु महाराज द्वारा सरयू तट पर अयोध्या की स्थापना की गई।
- श्री राम मंदिर की स्थापना - श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
- मंदिर का ध्वंस – मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
- ढांचे का निर्माण – ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके। क्यू की उनकी औकात नही थी, की हमारे जैसा निर्माण कर सके, हमने तो पूरा मंदिर बना दिया उनसे तो केवल उस पर चुना लगाना था, वो भी नही हुआ । इसी बात से यह बात भी साबित होती है की ताज महल क्या है और किसने बनवाया होगा।
- रामलला प्रकट हुए – २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
- मंदिर पर ताला – कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने “श्रीराम जय राम जय जय राम” का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
- 1990 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए जनसमर्थन जुटाने के उद्देश्य से देशभर में रथयात्रा निकाली।
The 12 century 'Hari-Vishnu' inscription found at the 'mosque site' |
Part of dwara-palaka (gate keeper) found at the 'mosque' site |
- भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा. 1940 के दशक से पहले, मस्जिद को मस्जिद-इ-जन्मस्थान (हिन्दी: मस्जिद ए जन्मस्थान,उर्दू: مسجدِ جنمستھان, अनुवाद: “जन्मस्थान की मस्जिद”) कहा जाता था, इस तरह इस स्थान को हिन्दू ईश्वर, भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। पुजारियों से हिन्दू ढांचे को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा।
- बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश, भारत के इस राज्य में 3 करोड़ 10 लाख मुस्लिम रहा करते हैं, की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक थी। हालांकि आसपास के जिलों में और भी अनेक पुरानी मस्जिदें हैं, जिनमे शरीकी राजाओं द्वारा बनायी गयी हज़रत बल मस्जिद भी शामिल है, लेकिन विवादित स्थल के महत्व के कारण बाबरी मस्जिद सबसे बड़ी बन गयी. इसके आकार और प्रसिद्धि के बावजूद, जिले के मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद का उपयोग कम ही हुआ करता था और अदालतों में हिंदुओं द्वारा अनेक याचिकाओं के परिणामस्वरूप इस स्थल पर राम के हिन्दू भक्तों का प्रवेश होने लगा.।
- सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) ने रिपोर्ट की आलोचना यह कहते हुए की कि “हर तरफ पशु हड्डियों के साथ ही साथ सुर्खी और चूना-गारा की मौजूदगी” जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिला, ये सब मुसलमानों की उपस्थिति के लक्षण हैं “जो कि मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर के होने की बात को खारिज कर देती है” लेकिन ‘खंबों की बुनियाद’ के आधार पर रिपोर्ट कुछ और दावा करती है जो कि अपने निश्चयन में “स्पष्टतः धोखाधड़ी” है क्योंकि कोई खंबा नहीं मिला है,
यदि सरकार मस्जिद के लिए कहीं और जगह देती है तो इतने वर्षों तक संघर्ष उपरान्त जीते मुक़दमे को जीत नहीं हार माना जाएगा। क्योकि यह जीत नहीं समझौता माना जाएगा। उस स्थिति में हिन्दू सरकार से पूछे कि:--
1. जब औरंगज़ेब रोड का नाम बदला, तब क्या किसी और रोड का नाम औरंगज़ेब रोड रखा था?
1. जब औरंगज़ेब रोड का नाम बदला, तब क्या किसी और रोड का नाम औरंगज़ेब रोड रखा था?
2. जब रेस कोर्स रोड का नाम बदला, तब क्या किसी अन्य रोड का नाम रेस कोर्स रखा था?
3. जब मुगलसराय स्टेशन का नाम बदला तब क्या किसी अन्य स्टेशन का नाम मुगलसराय रखा था?
4. जब यह स्थल मन्दिर नहीं था, फिर ताला खोलकर पूजा करने की इज़ाज़त क्यों दी?
5. विवादित जगह पर शिलान्यास की इजाजत क्यों दी गयी? शिलान्यास की इजाजत देने का स्पष्ट मतलब है, कोर्ट भी सच्चाई जानती है, लेकिन तुष्टिकरण खुलकर न्याय नहीं होने दे रहा। शिलान्यास का आदेश देने का अर्थ है, मन्दिर बनाने की इजाजत। फिर इतने वर्ष किन कारणों से कोर्ट केस को लम्बित रखे हुए है?
6. क्या खुदाई में मिले अवशेषों को छुपाकर कोर्ट को गुमराह करने वालों को दण्डित किया जाएगा?
यदि नहीं, फिर मस्जिद के लिए जगह देना उन रामभक्तों के बलिदान का अपमान करना है। और इसे झूठ की अप्रत्यक्ष जीत ही मानी जाएगी। जब कोई मुवक्किल मकान का मुकदमा हारता है तो क्या किसी कोर्ट ने हारे हुए मुवक्किल को कोई अन्य मकान देने का आदेश दिया है? यदि नहीं, फिर अब क्यों? यह सरकार का काम है कि जीत कर हारती है(यानि मस्जिद के लिए जगह देती है) या विरोध करने वालों के साथ सख्ती से पेश आएगी?
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