आर.बी.एल.निगम , वरिष्ठ पत्रकार
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर अब छत्तीसगढ के एक शाही घराने के व्यक्ति ने कहा है कि, संजय लीला भंसाली को रिलीज से पहले अपनी फिल्म राजपूत संगठनों को दिखानी चाहिए क्योंकि यह फिल्म उनके इतिहास से जुड़ी हुई है।
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर अब छत्तीसगढ के एक शाही घराने के व्यक्ति ने कहा है कि, संजय लीला भंसाली को रिलीज से पहले अपनी फिल्म राजपूत संगठनों को दिखानी चाहिए क्योंकि यह फिल्म उनके इतिहास से जुड़ी हुई है।
छत्तीसगढ़ के शाही परिवार के सदस्य दिलीप सिंह की बहू हीना सिंह ने कहा है कि, फिल्म में जिस तरह से एक रानी को घूमर में डांस करते हुए दिखाया गया है यह आपत्तिजनक है क्योंकि, राजपूत रानियां इस तरह किसी के सामने नृत्य नहीं करती थीं। हीना सिंह ने कहा कि मेरे परिवार की मांग है कि फिल्म को रिलीज से पहले हमें दिखाया जाए क्योंकि यह इतिहास की बात है।
सिंह ने कहा, ‘इतिहास साक्षी है कि किसी भी राजपूत घराने की महारानी ने किसी के सामने भी कभी नृत्य नहीं किया। वे लोग इस तरह से इतिहास से खिलवाड़ नहीं कर सकते।’
शाही घराने के सदस्यों ने कहा कि डायरेक्टर को इतिहास की और महारानी पद्मावती की इज्जत करनी चाहिए। रानी ने 16000 महिलाओं के साथ मिलकर जौहर किया था और अपना जीवन हिंदुत्व और राजपूत संस्कृति के समक्ष समर्पित कर दिया था।
हीना ने कहा कि हम बस इतना चाहते हैं कि एक बार हम बस जान लें कि फिल्म में आखिर क्या दिखाया गया है। रानी पद्मावती राजपूत महिलाओं की आदर्श हैं ।
दीपिका पादुकोण का सही सवाल था कि एक देश के तौर पर हम कहां जा रहे हैं?
सच में यह हमारा पिछड़ापन ही है कि अब हम अनपढ़, फुहढ़ अश्लीलता परोस रहे कलाकारों से सभ्यता सीख रहे हैं।
यह सिनेमा एक षडयंत्र के तहत हमें एकतरफा सेक्युलरिज़्म सिखा रहा है, जिसकी फिल्मों में पंडित जी हमेशा बेईमान, गांव का ठाकुर जाहिल और लाला ब्याजखोर ही दिखाया गया। दूसरी तरफ पादरी और मौलवी हमेशा मानवीय ही दिखाए गए। यदि सिनेमा समाज का दर्पण है तो यह हक़ीक़त नहीं है, कश्मीर के मदरसों और केरल के चर्च यौन उत्पीड़न, धर्मांतरण, लव जिहाद के ठिकाने हैं, इन पर भी कुछ दिखा देते। खैर, यह तुम्हारे बूते की बात नहीं, सोंच भी नहीं सकते। इतना किसी में साहस नहीं।
लेकिन, ध्यान रखो कि तुम्हारी यही एकतरफा हरकतें हैं, जो देश में चुपचाप दक्षिणपंथ को मजबूत कर रही हैं। मुग़ल-ए-आज़म हो या अनारकली या फिर इस इस प्रेम-प्रसंग पर निर्मित कोई अन्य फिल्म, सभी एक उपन्यास पर निर्मित फिल्मे थी।
सच में यह हमारा पिछड़ापन ही है कि अब हम अनपढ़, फुहढ़ अश्लीलता परोस रहे कलाकारों से सभ्यता सीख रहे हैं।
यह सिनेमा एक षडयंत्र के तहत हमें एकतरफा सेक्युलरिज़्म सिखा रहा है, जिसकी फिल्मों में पंडित जी हमेशा बेईमान, गांव का ठाकुर जाहिल और लाला ब्याजखोर ही दिखाया गया। दूसरी तरफ पादरी और मौलवी हमेशा मानवीय ही दिखाए गए। यदि सिनेमा समाज का दर्पण है तो यह हक़ीक़त नहीं है, कश्मीर के मदरसों और केरल के चर्च यौन उत्पीड़न, धर्मांतरण, लव जिहाद के ठिकाने हैं, इन पर भी कुछ दिखा देते। खैर, यह तुम्हारे बूते की बात नहीं, सोंच भी नहीं सकते। इतना किसी में साहस नहीं।
लेकिन, ध्यान रखो कि तुम्हारी यही एकतरफा हरकतें हैं, जो देश में चुपचाप दक्षिणपंथ को मजबूत कर रही हैं। मुग़ल-ए-आज़म हो या अनारकली या फिर इस इस प्रेम-प्रसंग पर निर्मित कोई अन्य फिल्म, सभी एक उपन्यास पर निर्मित फिल्मे थी।
आज के फिल्मकारों को 60 के दशक में पृथ्वी राज कपूर, दारा सिंह और प्रेम नाथ द्वारा अभिनीत "सिकन्दर-ए-आज़म" और 80 के दशक में दारा सिंह द्वारा अभिनीत-निर्मित और निर्देशिक फिल्म "भक्ति में शक्ति" वैसे और भी फिल्में निर्मित हुई हैं, जिनमें मुगलों की मानसिकता को दर्शाया गया है। इन फिल्मों में "सिकन्दर को विश्व विजेता" और "अकबर को महान" बताने वालों को करारा जवाब दिया। काश, ये फिल्में आज के दौर में बनती कट्टरपंथी और छद्दम धर्म-निरपेक्ष सड़क से लेकर संसद तक विधवा-विलाप करते नज़र आ रहे होते।
पद्मावती के समर्थन में बोलने वाले राष्ट्र को बताएँ कि जो रानी खिलजी से अपनी शीलता बचाने कुएँ में कूदी हो, उस रानी द्वारा खिलजी के साथ मौजमस्ती कैसे कर सकती है? कुछ शर्म कर लो, भारतीय इतिहास को कलंकित करने वालों, मुगलों का जितना गुणगान भारत में किया जाता एवं किया जा रहा है, विश्व में कहीं भी नहीं। ब्रिटिश सरकार भी सोंच रही होगी "बेकार में सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद एवं इनके अन्य सहयोगियों के आन्दोलन से डर कर भारत से वापस आए, काश भारत में इन जयचन्दों को खरीद कर इन स्वतंत्रता सेनानियों के ही विरुद्ध जनता को भड़का कर राज करते रहते। देखो किस तरह आतताई मुगलों का गुणगान किया जा रहा है भारत में। जो देश मुगलों को महान बताने वाले अपने प्रभु राम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दें, उन्हें आसानी से ख़रीदा जा सकता था।"
समय आज बहुत तेजी से बदल रहा है, जिसे देख ऐसा आभास होता है कि भारत में मुगलों का गुणगान करने वालों को भी अपनी जयचन्दी मानसिकता को बदलना होगा। मुगलों का गुणगान करने वाले निम्न लेख जरूर पढ़े :-
लेख लिख ही रहा था कि फेसबुक पर अभी(नवम्बर 17) मेरे एक मित्र ने निम्न सूचना दी, जिसे बिना सम्पादित किए प्रस्तुत कर रहा हूँ:--
#द_मैसेज और #पद्मावती
दो फ़िल्म.. जिन पर एकसमान प्रश्रचिन्ह लगे पर दोनों से निबटने की सरकारी नीति बिल्कुल अलग !!
दो फ़िल्म.. जिन पर एकसमान प्रश्रचिन्ह लगे पर दोनों से निबटने की सरकारी नीति बिल्कुल अलग !!
एक थे मुस्तफा अक्कड ! जन्म तो सिरिया मे लिया था लेकिन कहलाते सिरियन-अमेरिकन थे |
1976 मे इस्लाम पर एक फिल्म बनाने की सोची | लेकिन इतनी हिम्मत तो थी नहीं, पुरी स्टोरी लेके के जगह जगह घूमते रहे |
अल-अझार विश्वविद्यालय , मिस्र ने शायद स्टोरी पढ़ी और फिल्म बनाने की अनुमति कुछ शर्तो पर दे दी, लेकिन विश्व मुस्लिम लीग , सऊदी अरब ने अनुमति नहीं दी |
तमाम आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद आखिर में फिल्म तैयार की गई |
फिल्म का नाम रखा गया " अल-रिसाला ( अंग्रेजी मे " द मैसेज ) |
फिल्म का प्लाट पैगम्बर मुहम्मद साहब के जन्म से लेकर उनके मक्का विजय तक थी |
इस फिल्म में भारत के कन्वर्टेड मुस्लिम ए.आर. रहमान ने संगीत दिया था |
फिल्म का निर्माण जिन शर्तो पर था वो ये थी कि पैगम्बर मुहम्मद , उनकी पत्नियों , बेटी , दामाद , व प्रथम खलीफा अबू बकर के शक्ल और संवाद नहीं होंगे |
यानी कोई कलाकार इन लोगो किरदार को चित्रित नहीं करेगा न ही इन्हें दिखाया जायेगा
और ऐसा हुआ भी |
िफल्म में कोई भी विवादास्पद कंटेंटस नहीं थे, इस्लामिक निर्देशों के अनुसार ही फिल्म बनी थी !
1976 मे इस्लाम पर एक फिल्म बनाने की सोची | लेकिन इतनी हिम्मत तो थी नहीं, पुरी स्टोरी लेके के जगह जगह घूमते रहे |
अल-अझार विश्वविद्यालय , मिस्र ने शायद स्टोरी पढ़ी और फिल्म बनाने की अनुमति कुछ शर्तो पर दे दी, लेकिन विश्व मुस्लिम लीग , सऊदी अरब ने अनुमति नहीं दी |
तमाम आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद आखिर में फिल्म तैयार की गई |
फिल्म का नाम रखा गया " अल-रिसाला ( अंग्रेजी मे " द मैसेज ) |
फिल्म का प्लाट पैगम्बर मुहम्मद साहब के जन्म से लेकर उनके मक्का विजय तक थी |
इस फिल्म में भारत के कन्वर्टेड मुस्लिम ए.आर. रहमान ने संगीत दिया था |
फिल्म का निर्माण जिन शर्तो पर था वो ये थी कि पैगम्बर मुहम्मद , उनकी पत्नियों , बेटी , दामाद , व प्रथम खलीफा अबू बकर के शक्ल और संवाद नहीं होंगे |
यानी कोई कलाकार इन लोगो किरदार को चित्रित नहीं करेगा न ही इन्हें दिखाया जायेगा
और ऐसा हुआ भी |
िफल्म में कोई भी विवादास्पद कंटेंटस नहीं थे, इस्लामिक निर्देशों के अनुसार ही फिल्म बनी थी !
खैर फिल्म बनी और रिलीज होकर योरोप अमेरिका सहित मुस्लिम देशों में दिखाई जाने लगी।
2008 मे किसी ने "अल- रिसाला " फिल्म को हिंदी व उर्दू मे डब करके भारत मे रिलीज करने की सोची |
हैदराबाद मे एक थियेटर मे स्क्रीनिंग रखी गई लेकिन हैदराबाद में शान्ति दूतों का हंगामा शुरू हो गया, जमकर हंगामा हुआ |
हाँ इस बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लड़ने वाले सैकुलर - लिबरल योद्धा भ..वे कहीं बिल में छुप गये ।
बुरके मे ही शायद घर से निकलते थे ?
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मसलमीन के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी भी कहाँ पीछे रहते, मामले को राज्य की विधान सभा मे उठा दिया |
राज्य के गृह मंत्री के.जेना रेड्डी ने सदन मे वायदा किया कि " फिल्म के विषय वस्तु का अध्ययन किया जायेगा और फिल्म की तब तक स्क्रीनिंग नहीं की जायेगी जब तक इस्लाम धर्म गुरु और मुस्लिम नेता इसे देखते और समर्थन नहीं दे देते |
फिर क्या था अंधेरी के एक थियेटर ने प्राईवेट स्क्रीनिंग रखी गई, तमाम मुस्लिम नेता , उलेमा आदि बुलाये गये और फिल्म को देखा गया| इनके साथ मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष ने भी देखा ....एप्रूव किया| इसके बाद फिल्म की स्क्रीनिंग हुई ।
2008 मे किसी ने "अल- रिसाला " फिल्म को हिंदी व उर्दू मे डब करके भारत मे रिलीज करने की सोची |
हैदराबाद मे एक थियेटर मे स्क्रीनिंग रखी गई लेकिन हैदराबाद में शान्ति दूतों का हंगामा शुरू हो गया, जमकर हंगामा हुआ |
हाँ इस बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लड़ने वाले सैकुलर - लिबरल योद्धा भ..वे कहीं बिल में छुप गये ।
बुरके मे ही शायद घर से निकलते थे ?
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मसलमीन के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी भी कहाँ पीछे रहते, मामले को राज्य की विधान सभा मे उठा दिया |
राज्य के गृह मंत्री के.जेना रेड्डी ने सदन मे वायदा किया कि " फिल्म के विषय वस्तु का अध्ययन किया जायेगा और फिल्म की तब तक स्क्रीनिंग नहीं की जायेगी जब तक इस्लाम धर्म गुरु और मुस्लिम नेता इसे देखते और समर्थन नहीं दे देते |
फिर क्या था अंधेरी के एक थियेटर ने प्राईवेट स्क्रीनिंग रखी गई, तमाम मुस्लिम नेता , उलेमा आदि बुलाये गये और फिल्म को देखा गया| इनके साथ मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष ने भी देखा ....एप्रूव किया| इसके बाद फिल्म की स्क्रीनिंग हुई ।
पता नहीं कितने लोगो ने देखी थी, यह सही जानकारी नही है,
अब प्रश्न ये है कि जब फिल्म को पहले ही इस्लामिक राष्ट्रों मे अनुमति दी जा चुकी थी ..और मिस्र के विश्वविद्यालय के एप्प्रूवल से बनाई गई थी तो ..भारत मे स्क्रीनिंग होने के पहले हंगामा क्युं बरपाया गया ?
और उस समय ये लिबरल , सैकुलर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पुरोधा भ..वे किस बिल मे छुप गये थे ??
फिर सैंसर बोर्ड तो उस समय भी था ...?
फिर सैंसर बोर्ड तो उस समय भी था ...?
" वीरांगना मां रानी पद्ममावती " पर बनी फिल्म के विवाद के मूल मे बस यही है कि राजपूत मांग कर रहे हैं कि फिल्म की रिलीज के पहले कम से कम राजपूत के कुछ नेताओं या राज घरानों को फिल्म दिखा दिया जाये ..??
संजय लीला भंड़वे उसके समर्थक बस एक तर्क दे रहे है कि ..हम सैंसर बोर्ड के प्रति जबाव देह है ? प्राईवेट स्क्रीनिंग नहीं करेंगे ?
संजय लीला भंड़वे उसके समर्थक बस एक तर्क दे रहे है कि ..हम सैंसर बोर्ड के प्रति जबाव देह है ? प्राईवेट स्क्रीनिंग नहीं करेंगे ?
जब "अल-रिशाला " जैसी फिल्मों की प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये राज्य के गृह मंत्री सदन मे तैयार हो जाते है ...डिस्ट्रीब्युटर तैयार हो जाते है ..तो " पद्मावती " की क्यु नहीं ?
जब एक बार विवाद सुलझाने के लिये कोई "प्रथा " चला दिया तो ...दूसरी बार क्यंु नहीं ??
अब जब प्रथा चला दिया राजकीय संस्थाओ के सहयोग से , तो इसे भी विधि का बल प्राप्त होगा ही ? तो पद्मावती का भी कराईये प्राईवेट स्क्रीनिंग !?
य़े धर्म के आधार पर भेद भाव क्युं ?
जब एक बार विवाद सुलझाने के लिये कोई "प्रथा " चला दिया तो ...दूसरी बार क्यंु नहीं ??
अब जब प्रथा चला दिया राजकीय संस्थाओ के सहयोग से , तो इसे भी विधि का बल प्राप्त होगा ही ? तो पद्मावती का भी कराईये प्राईवेट स्क्रीनिंग !?
य़े धर्म के आधार पर भेद भाव क्युं ?
और शांति बहाली के लिये सरकार क्या कर रही है ?? क्यु नहीं के.जेना. रेड्डी की तरह राजपूत नेताओ को अश्वासन दिया जा रहा है ?? कि हम प्राईवेट स्क्रीनिंग करा कर विवाद खत्म कर रहे हैं ?
और अगर भंसाली भड़ .. प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये तैयार नही होता है, तो ...शान्ति भंग के लिये वो खुद जिम्मेदार होगा?
और अगर भंसाली भड़ .. प्राईवेट स्क्रीनिंग के लिये तैयार नही होता है, तो ...शान्ति भंग के लिये वो खुद जिम्मेदार होगा?
और ये जो सिकुलर लिबरल लोग है "अल-रिशाला " के समय समय पर बिल मे क्यु छुप जाते है ?
बेहतर है वो इस बार भी मुद्दे से दूर रहे ..क्युकि तुम्हारा सुविधा जनक विरोध ही क्ट्टरता का कारण है ..?"
बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का कहना है कि वह संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म ‘पद्मावती’ को हर किसी के साथ साझा करना चाहती हैं। उन्होंने कहा वह फिल्म प्रदर्शित होने का इंतजार नहीं कर सकतीं। मुंबई में ‘वैन ह्यूसेन एंड जीक्यू फैशन नाइट्स’ में उन्होंने कहा कि यह बेहतरीन फिल्म है, जिसमें सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है।
मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा मैं बस इतना ही कहूंगी कि चाहे पोस्टर हो या फिल्म का गीत या ट्रेलर। सभी के लिए हमें लोगों का प्यार मिल रहा है। मुझे लगता है कि हम सब फिल्म को मिल रही प्रतिक्रिया से उत्साहित। हम इस फिल्म को हर किसी के साथ साझा करने का इंतजार नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा यह एक अद्भुत सफर रहा है। वास्तव में हम दिन गिन रहे हैं। हम फिल्म प्रदर्शित होने का इंतजार नहीं कर सकते। हर किसी के साथ इस अनुभव को साझा करने के लिए इंतजार नहीं कर सकते। फिल्म ‘पद्मावती’ का करणी सेना और कुछ अन्य हिंदूवादी संगठन इतिहास से छेड़छाड़ करने आरोप लगाकर विरोध कर रहे हैं। उन्हें अंदेशा है कि फिल्म में राजपूत रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम प्रसंग और वह भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया होगा।
निर्देशक भंसाली हालांकि एक वीडियो जारी कर कह चुके हैं कि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जिस पर किसी को आपत्ति हो। यह फिल्म देखकर राजपूत समुदाय खुद पर गर्व महसूस करेगा। अफवाहों पर ध्यान नहीं दिया जाए। फिल्म में दीपिका के अलावा शाहिद कपूर और रणवीर सिंह भी हैं। अगर कला पर राजनीति भारी नहीं पड़ी, तो यह फिल्म पहली दिसंबर को रिलीज हो जाएगी।
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