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हिन्दू संस्कृति को अपमानित कर गौरवविंत होते फ़िल्मकार

बैन
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 
टीवी पत्रकार रोहित सरदाना और अंजना ओम कश्यप ने नवम्बर 17 को फिल्म ‘पद्मावती’ पर आपस में लंबी बहस हुई। रोहित का कहना था कि करणी सेना टीवी स्पेस पाने के लिए ‘पद्मावती’ का विरोध कर रही है। ऐसे में करणी सेना को जो चाहिए था वह उसे मिल गया है। रोहित ने कहा कि ‘पद्मावती’ के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्मों का अक्सर ही विरोध होता आया है। इस पर अंजना ने कहा कि जो भी दिमाग से फिल्में बनाएगा उसके साथ यही होगा। रोहित सरदाना ने कहा कि संजय लीला भंसाली फिल्म के जरिए रानी पद्मावती की इज्जत को नीलाम कर रहे हैं। इस पर अंजना ने सवाल किया कि क्या आपने फिल्म देखी है?
यह सच है फिल्म का विरोध करने वालों में से किसी ने फिल्म नहीं देखी है। लेकिन विरोध के स्वर राज घराने से मुखरित हुए, क्योकि संजय ने सेंसर में फिल्म भेजने से पूर्व राज घराने को फिल्म दिखाकर किसी विवादित दृश्य को निकालने की बात कही थी, परन्तु भंसाली ने फिल्म पूरी होने उपरान्त उसी राज घराने को नज़रअंदाज़ करना ही विवाद का कारण है। लेकिन indiatv पर "अपनी बात" में रजत शर्मा द्वारा फिल्म की वकालत करते ऐसा स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि "यह "sponsored प्रोग्राम" है। यह मेरी ही धारणा नहीं, बल्कि फिल्म जगत से जुड़े--वर्तमान एवं भूतकाल-- सभी के दिलो-दिमाग पर यही विचार स्पष्ट प्रतीत हो रहे होंगे। 
यह कहना कि मैंने पूरी फिल्म देखी है, रजत शर्मा कोई राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री नहीं है, कि उनके लिए स्पेशल शो आयोजित किया होगा। उनको एक अनुभवी पत्रकार की निष्पक्ष भूमिका का पालन करना चाहिए था, इन्ही बेसिर के समाचार दिखाए जाने के ही कारण मीडिया को बिकाऊ कहा जाता है। केवल दस मिनट रजत शर्मा के प्रवचनों को सत्यापित करने, दूसरे चैनल देखे, कहीं भी किसी ने फिल्म देखने की बात नहीं की। 
रजत पर आरोप इसलिए लगा हूँ, कि सितम्बर 1978 में पत्रकारिता में कदम रखने से पूर्व मै स्वयं पिताश्री एम.बी.एल.निगम(50 के दशक के चर्चित फिल्म वितरक) के कारण फिल्म वितरकों से जुड़ा हुआ था। मैंने अनेको फिल्मों जैसे: दो नम्बर के अमीर, प्रभात, ज़िन्दगी और तूफान, गुप्त ज्ञान (भारत की प्रथम सेक्स शिक्षाप्रद फिल्म, इस फिल्म के प्रदर्शन से रेड लाइट एरिया एवं बुद्धा गार्डन सहित रासलीला के रेस्टोरेंट आदि में सन्नाटा ला दिया था), मीरा-श्याम, खाने-ए-खुदा(हज पर आधारित), आदि कई फिल्मों की स्पेशल स्क्रीनिंग में हिस्सा बना, लेकिन किसी भी फिल्म में केवल एक पत्रकार निमन्त्रित नहीं था।   
अंजना का कहना था कि लोगों ने फिल्म अभी नहीं देखी है। विरोध करने वाले केवल अफवाहों के सहारे ही इसका विरोध कर रहे हैं। इसके बाद अंजना से रोहित से सीधा सवाल किया कि क्या आप करणी सेना के विरोध को सही ठहरा रहे हैं? इस पर रोहित ने कहा कि वह करणी सेना को सही नहीं ठहरा रहे। लेकिन संजय लीला भंसाली की उस सोच का विरोध कर रहे हैं जो यह मानती है कि इस तरह की फिल्म बनाकर फ्री में पब्लिसिटी हासिल की जा सकती है।
रोहित सरदाना का कहना था कि अगर संजय ‘पद्मावती’ को रिलीज से काफी पहले ही सेंसर बोर्ड के पास भेज देते तो इस विवाद को काफी आसानी से सुलझाया जा सकता था। रोहित ने यह भी कहा कि ‘पद्मावती’ को रिलीज से पहले राजस्थान की रानियों को दिखा देना चाहिए था। इससे फिल्म के विवादित हिस्सों को निकालने में आसानी होती और विवाद कम होता। रोहित इस बहस में यह बात बार-बार कहते रहे कि फिल्म के जरिए समाज के एक खास तबके की भावनाओं का मखौल उड़ाया जा रहा है।
रोहित सरदाना ने कहा कि संजय लीला भंसाली को स्टूडियो में बैठकर इंटरव्यू देने की बजाय करणी सेना से बात करना चाहिए। वहीं, अंजना ओम कश्यप का कहना था कि विदेशों में जीसस क्राइस्ट तक पर फिल्म बन जाती है लेकिन भारत में जरा सी बात पर लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। अंजना ने कहा कि ‘पद्मावती’ पर सारा फैसला करणी सेना पर ही नहीं छोड़ देना चाहिए। 
संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म पद्मावती के विरोध लगातार बढ़ रहे है। राजपूत करणी सेना के साथ अब कई हिन्दूवादी संगठनों ने इस विरोध का समर्थन किया है। इससे पहले भी कई बार करणी सेना ने फिल्म को बैन करवाया है।
राजपूत करणी सेना इससे पहले फिल्म जोधा अकबर पर राजस्थान में बैन लगवा चुकी है। फिल्म डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर की यह फिल्म जनवरी 2008 में रिलीज हुई थी लेकिन राजस्थान के किसी भी सिनेमा हॉल में इसे रिलीज नहीं होने दिया गया था।
गौरतलब है कि राजस्थान में 10 साल पहले जब करणी सेना का गठन हुआ था तब इसके 11 उद्येश्यों में सबसे प्रमुख था राजपूत इतिहास से छेड़छाड़ के खिलाफ आवाज उठाना।
राजपूत करणी सेना के कार्यकर्ता कई बार इतिहास के समर्थन में विरोध-प्रदर्शन कर चुके है। नीचे उन फिल्मों व सीरियल का नाम है जिन पर करणी सेना ने विरोध किया था।

जोधा अकबर (2008)

आशुतोष गोवारिकर की बहुतचर्चित फिल्म ‘जोधा अकबर’ 15 फरवरी 2008 को दुनियाभर में रिलीज हुई लेकिन राजस्थान में नहीं हो सकी। दरअसल इस फिल्म में अकबर व राजपूती शान का प्रतीक जोधा के बीच में प्रेम-प्रसंग को दिखाया गया था। जिस पर करणी सेना ने इसका जमकर विरोध किया था। इसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने वाली फिल्म करार दिया था।

गुलाल (2009)

फिल्म गुलाल के रिलीज के बाद करणी सेना ने इसका विरोध शुरू किया था। फिल्म निर्माता ने इसके बाद शो रोककर स्पेशल स्क्रीनिंग करवाई थी। हालांकि बाद में स्पेशल स्क्रीनिंग के बाद करणी सेना ने फिल्म रिलीज को हरी झंडी दे दी थी।

वीर (2010)

सलमान खान की फिल्‍म वीर को लेकर भी करणी सेना ने विरोध प्रदर्शन किया था। फिल्म में इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के आरोप लगाए गए और इसी के चलते जयपुर में फिल्म के प्रदर्शन के दौरान राजपूतों ने विरोध प्रदर्शन किया। और साथ ही इस फिल्म के पोस्टर भी फाड़ दिए थे। इसके बाद भी आपसी सहमति के बाद फिल्म को रिलीज होने दिया था।

आरक्षण (2011)

प्रकाश झा की इस फिल्म के प्रोमो के बाद ही करणी सेना ने विरोध शुरू कर दिया था। प्रकाश झा ने जयपुर पहुंचकर राजपूत और ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधियों के लिए विशेष स्क्रीनिंग के बाद आपत्तिजनक शब्दों में संशोधन किया। इसके बाद राजस्थान में प्रदर्शन की अनुमति मिली।

जोधा अकबर टीवी सीरियल (2013)

करणी सेना ने जोधा अकबर टीवी सीरियल में भी इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए विरोध शुरू किया था। ये सीरियल जी टीवी पर प्रसारित होता था। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवेल के दौरान धारावाहिक निर्माता एकता कपूर मंच पर पहुंची तो करणी सेना ने हंगामा शुरू कर दिया।
हालांकि बाद में एकता कपूर इस मामले में राजपूत समाज से माफी मांगते हुए यहां सार्वजनिक रूप से धारावाहिक में पात्र जोधा का नाम बदलने, स्क्रिप्ट में बदलाव करने की अनुमति दी थी।
भारतीय फ़िल्मकार भी छद्दम धर्म-निर्पेक्षों की राह चलते हैं, शायद लोक/राज्य सभा का टिकट मिल जाए। पूर्व में फिल्म जगत से सुलझे हुए ही लोगों को भेजा जाता था, लेकिन समय परिवर्तन ने सब कुछ स्वाह कर दिया।आज देखिए कितने फिल्म उद्योग के लोग राज्य सभा में पहुंचे हुए है। लोक सभा में तो खैर जीतकर गए हैं। लेकिन जितने भी इस उद्योग के लोग है-- चाहे किसी भी पार्टी से हो-- देखिए कितनी हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने वाली फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। 

भारत की फिल्मो में हिन्दू विरोधी एजेंडा चलाया जा रहा है, पर आज से ही नहीं बल्कि बहुत पहले से, और लोगों को तो इस बात का आभास भी नहीं होता की उनके खिलाफ एजेंडा चलाया जा रहा है, और वो शिकार हो रहे है, और ये बात दूरदर्शन के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने भी अपने  एक ट्वीट के जरिये कहा, अशोक श्रीवास्तव ने क्या ट्वीट क्या, सबसे पहले आप वही देखिये

Ashok Shrivastav @ashokshrivasta6

60 -70 के दशक से आज तक फिल्मों में हर मौलाना भाई चारे की बात करने वाला, हर ईसाई फादर दयालू दिखाया जाता है और हर पंडित तिलकधारी बलात्कारी - व्यभिचारी ! https://twitter.com/gauravcsawant/status/930758852202524672 …

9:14 AM - Nov 17, 2017

60-70 के दशक से चाहे शोले फिल्म हो, जहाँ अब्दुल चचा बड़े ही धर्मांत्मा थे, अमर अकबर अंटोनी हो, या उस पहले की फिल्मे, हिंदी फिल्मो को अगर आप गौर से देखेंगे तो 60 के दशक से ही हिन्दू विरोधी एजेंडा बड़ी ही चालाकी से चलाया जा रहा है।

फिल्म में मौलाना, मौलवी को बड़ा ही धर्मांत्मा दिखाया जाता रहा है, सभी मस्जिद और मजार और मौलाना भाईचारे की अमन शांति की बात करते हुए दिखाए गए है। जबकि असल में मस्जिदों में क्या होता है, और मौलाना लोग रोज टीवी पर बैठकर कैसे जहर उगलते है, महिलाओं को गालियां देते है, दूसरे धर्मो के प्रति नफरत का प्रदर्शन करते है, ये आप देख चुके है, पर फिल्मो में उनकी छवि को एकदम सही करने का काम किया जाता है। 

हिंदी फिल्मो में चर्च के फादर को भी बहुत धर्मांत्मा दिखाया गया है, हमेशा दयालु, बच्चों गरीबों की मदद करने वाला, जिसका कोई नहीं उसका चर्च है यारो का स्लोगन, अनाथों की मदद करने वाला, चर्च को भी बहुत  महान बनाकर पेश किया गया फिल्मो में, जबकि आप केरल या गोवा के अख़बार उठाये तो हर तीसरे दिन केरल में  खबर छपती है की चर्च के फादर ने बच्चे का बलात्कार किया। लेकिन टीवी पर चर्चा करने का साहस नहीं। हाँ,  किसी साधु/सन्त  कोई झूठा भी आरोप लगाते, चौबीस घंटे चौपालें लगी रहती हैं।  

Image result for hera pheri oldवहीँ हिंदी फिल्मो में पंडित, साधु को हमेशा चोर लुटेरे के रूप में पेश किया गया है, पंडित को मक्कार लुटेरा व्यभिचारी बलात्कारी के रूप में प्रदर्शित किया गया है। ऐसा शख्स जो पाखंड करता है, अब ये पुरानी फिल्म का दृश्य देख लीजिये। 

हेरा फेरी फिल्म में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना को हिन्दू साधु के रूप में दिखाया गया, और दोनों चोरी कर रहे होते हैं। फिल्म "जॉनी मेरा नाम" में हेमा मालिनी और प्राण को साधु-साध्वी के रूप में मन्दिर से चोरी करते दिखाया, आदि एक लम्बी सूची है। फिल्म "प्रभात" जो वैश्यवृति पर आधारित थी, में दलाल का नाम राम और एक सीधी लड़की, जिसे कमाई के लिए शादी करके कोठे पर लाया जाता है, का नाम सीता था, लेकिन विश्व हिन्दू परिषद् के विरोध के बाद दोनों का नाम रमेश और सरिता के नाम से परिवर्तित कर पुनः प्रदर्शित किया गया था। और प्लाजा का पुनः उद्धघाटन इसी प्रभात फिल्म से हुआ था।  इस तरह का एजेंडा कोई आज थोड़ी चलाया जा रहा है, आज बस इतना हो रहा है की कुछ हिन्दू जागरूक हुए है तो वो ऐसी चीजों को अब देखकर विरोध करने लगे है, पहले के हिन्दू तो समझ ही नहीं पाते थे की उनका अपमान किया जा रहा है। 

हिंदी फिल्मो में हिन्दू विरोध कोई नया नहीं है, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का मुख्य काम ही हिन्दू विरोध रहा है, फिल्म इंडस्ट्री में वामपंथियों और इस्लामिक शक्तियों की काफी मजबूत पकड़ है और इसी कारण निशाने पर सिर्फ हिन्दू ही रहते है, दूसरा बड़ा कारण ये भी है की आज भी अधिकतर हिन्दू जागरूक नहीं है।


बालीवुड‬ और टीवी सीरियल के नजरिए से ‪हिन्दू‬ को कैसे देखा जाता है एक झलक:----
*ब्राह्मण* - ढोंगी पंडित, लुटेरा,
*‪राजपूत* - अक्खड़, मुच्छड़, क्रूर, बलात्कारी
*वैश्य या साहूकार* - लोभी, कंजूस,
*गरीब हिन्दू दलित* - कुछ पैसो या शराब की लालच में बेटी को बेच देने वाला चाचा या झूठी गवाही देने वाला
*सिक्ख*- जोकर आदि बनाकर मजाक उड़ाना
*जाट* खाप पंचायत का अड़ियल बेटी और बेटे के प्यार का विरोध करने वाला और महिलाओ पर अत्याचार करने वाला
जबकि दूसरी तरफ
वही दूसरी और
*मुस्लिम* - अल्लाह का नेक बन्दा, नमाजी, साहसी, वचनबद्ध, हीरो-हीरोइन की मदद करने वाला टिपिकल रहीम चाचा या पठान।
*ईसाई* - जीसस जैसा प्रेम, अपनत्व, हर बात पर क्रॉस बना कर प्रार्थना करते रहना।
ये बॉलीवुड इंडस्ट्री, सिर्फ हमारे धर्म, समाज और संस्कृति पर घात करने का सुनियोजित षड्यंत्र है और वह भी हमारे ही धन से ।
*हम हिन्दू और सिक्ख अव्वल दर्जे के CARTOON बन चुके हैं।*
क्योकि ये कभी वीर हिन्दू पुत्रों महाराणा प्रताप ,गुरु गोविन्द सिंह गुरु तेग बहादुर
चन्द्रगुप्त मौर्य ,अशोक,
विक्रमादित्य, वीर शिवाजी संभाजी राणा साँगा, पृथ्वीराज की कहानी नही बता सकते।
कभी गहराई से विचार कीजियेगा…!!
अगर यही बॉलीवुड देश की संस्कृति सभ्यता दिखाए ..
तो सत्य मानिये हमारी युवा पीढ़ी अपने रास्ते से कभी नही भटकेगी...
समझिये ..जानिए और आगे बढिए...
ये संदेश उन हिन्दू छोकरों के लिए है
जो फिल्म देखने के बाद
गले में क्रोस मुल्ले जैसी छोटी सी दाड़ी रख कर
खुद को मॉडर्न समझते हैं
हिन्दू नौजवानौं के रगो में धीमा जहर भरा जा रहा है
फिल्म जेहाद
*************
सलीम - जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मो को देखे, तो उसमे आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा. इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते है.
फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर "हेमामालिनी" को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है जो यह साबित करता है कि - मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते है. इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि - बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है.कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए.
"दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है. "जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है.
फिल्म 'शान" में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है. फिल्म "क्रान्ति" में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है.
अमर-अकबर-अन्थोनी में तीनो बच्चो का बाप किशनलाल एक खूनी स्मग्लर है लेकिन उनके बच्चों अकबर और अन्थोनी को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई महान इंसान है. साईं बाबा का महिमामंडन भी इसी फिल्म के बाद शुरू हुआ था. फिल्म "हाथ की सफाई" में चोरी - ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी.
कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास करता हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे. हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से देखना.
केवल सलीम / जावेद की ही नहीं बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की फिल्मो का भी यही हाल है. फिल्म इंडस्ट्री पर दाउद जैसों का नियंत्रण रहा है. इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कामेडियन, आदि ही दिखाया जाता है.
"फरहान अख्तर" की फिल्म "भाग मिल्खा भाग" में "हवन करेंगे" का आखिर क्या मतलब था ? pk में भगवान् का रोंग नंबर बताने वाले आमिर खान क्या कभी अल्ला के रोंग नंबर 786 पर भी कोई फिल्म बनायेंगे ? मेरा मानना है कि - यह सब महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि सोची समझी साजिश है एक चाल है ।  

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To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

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