आज से सही 28 वर्ष पूर्व, घाटी की मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर आवाज़ आने लगी थी,
कश्मीरी पंडितो या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ।
कश्मीर से निकलने वाले उर्दू समाचार पत्रों में साफ़ लिखा आता था, की कश्मीरी पंडितो कश्मीर छोड़ दो।
19 जनवरी 1990 की वो भयानक रात, जब, उस समय की केंद्र सरकार ने कश्मीर से पंडितो को भगाने की रणनीति चली, और सिर्फ एक रात के लिए, फारुख अब्दुला की सरकार को हटा दिया, उस एक रात के लिए, न कश्मीर में सेना थी, न सरकार और न ही पुलिस।
मस्जिदों से मुस्लिमो को आदेश दिया जा रहा था, की कश्मीरी पंडितो की महिलाओ को रख लो और पुरुषो को मौत के घात उतार दो।
और वही हुआ, वहां के मुस्लिमो ने महिलाओ को और छोटी बच्चीयो को उठा कर रेप करना शुरू कर दिया, और एक ही रात में करीब 3 लाख कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ कर भाग खड़े हुए।
दरअसल ये खेल शुरू किया था, एक जिहादी संघठन, जमात ए इस्लामी ने, जिसने कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया था, की हम मुस्लिम सब एक है , तुम भागो या मरो'।
और इस का साथ दिया, उस समय की केंद्र सरकार ने उस एक रात के लिए, सरकार और प्रशाशन को हटा कर, मुस्लिमो के हाथ खोल कर।
और साथ में, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो लगातार, कश्मीरी मुस्लिमो को अपने भाषणों से उकसा रही थी, और कश्मीर को एक अलग इस्लामिक देश बनाने की बात कर रही थी।
जिसका नतीजा हुआ, के करीब 3 लाख कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़, जम्मू और देश के अन्य हिस्सों में जाकर शरणार्थी बनने को मजबूर हो गए
ये दर्द सिर्फ एक राज्य छोड़ने का नही था, ये दर्द था, अपनी जड़ो से दूर होने का,अपने बसे हुए आशियानों का एक रात में उजड़ने का।
ये दर्द था, हथियार बंद मुस्लिमो से अपनी जान और अपनी महिलायों की अस्मत बचा ने की जंग का।
ये वो दर्द था, जिसे न उच्च न्यायालय और न ही सरकार समझ पा रही है।
ये वो दर्द था, जिसे दर दर की ठोकर खा कर कश्मीरी पंडित पिछले 28 वर्षो से झेल रहे है, और सिकुलर्स, इस पर मोन हो कर तमाशा देख रहे है।
गोधरा और अख़लाक़ की मौत पर सारे छद्दम धर्म-निरपेक्ष कौओं की तरह इकट्ठे होकर विधवा-विलाप कर सकते हैं, लेकिन कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार पर किसी की आवाज़ तक नहीं निकलती,क्यों? क्या हिन्दू नरसंहार के पैदा हुआ है? हिन्दुओं का दम भरने वाली भाजपा और संघ सब खामोश हैं,क्यों?
कश्मीरी पंडितो या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ।
कश्मीर से निकलने वाले उर्दू समाचार पत्रों में साफ़ लिखा आता था, की कश्मीरी पंडितो कश्मीर छोड़ दो।
19 जनवरी 1990 की वो भयानक रात, जब, उस समय की केंद्र सरकार ने कश्मीर से पंडितो को भगाने की रणनीति चली, और सिर्फ एक रात के लिए, फारुख अब्दुला की सरकार को हटा दिया, उस एक रात के लिए, न कश्मीर में सेना थी, न सरकार और न ही पुलिस।
मस्जिदों से मुस्लिमो को आदेश दिया जा रहा था, की कश्मीरी पंडितो की महिलाओ को रख लो और पुरुषो को मौत के घात उतार दो।
और वही हुआ, वहां के मुस्लिमो ने महिलाओ को और छोटी बच्चीयो को उठा कर रेप करना शुरू कर दिया, और एक ही रात में करीब 3 लाख कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ कर भाग खड़े हुए।
दरअसल ये खेल शुरू किया था, एक जिहादी संघठन, जमात ए इस्लामी ने, जिसने कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया था, की हम मुस्लिम सब एक है , तुम भागो या मरो'।
और इस का साथ दिया, उस समय की केंद्र सरकार ने उस एक रात के लिए, सरकार और प्रशाशन को हटा कर, मुस्लिमो के हाथ खोल कर।
और साथ में, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो लगातार, कश्मीरी मुस्लिमो को अपने भाषणों से उकसा रही थी, और कश्मीर को एक अलग इस्लामिक देश बनाने की बात कर रही थी।
जिसका नतीजा हुआ, के करीब 3 लाख कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़, जम्मू और देश के अन्य हिस्सों में जाकर शरणार्थी बनने को मजबूर हो गए
ये दर्द सिर्फ एक राज्य छोड़ने का नही था, ये दर्द था, अपनी जड़ो से दूर होने का,अपने बसे हुए आशियानों का एक रात में उजड़ने का।
ये दर्द था, हथियार बंद मुस्लिमो से अपनी जान और अपनी महिलायों की अस्मत बचा ने की जंग का।
ये वो दर्द था, जिसे न उच्च न्यायालय और न ही सरकार समझ पा रही है।
ये वो दर्द था, जिसे दर दर की ठोकर खा कर कश्मीरी पंडित पिछले 28 वर्षो से झेल रहे है, और सिकुलर्स, इस पर मोन हो कर तमाशा देख रहे है।
गोधरा और अख़लाक़ की मौत पर सारे छद्दम धर्म-निरपेक्ष कौओं की तरह इकट्ठे होकर विधवा-विलाप कर सकते हैं, लेकिन कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार पर किसी की आवाज़ तक नहीं निकलती,क्यों? क्या हिन्दू नरसंहार के पैदा हुआ है? हिन्दुओं का दम भरने वाली भाजपा और संघ सब खामोश हैं,क्यों?
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