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सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मोदी सरकार आयी एक्शन में

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
भारत के अधिकतर लोगों का सुप्रीम कोर्ट पर से भरोसा ख़त्म होता जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के हर फैसले में दखल दे रहा है, अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को भारत से भगाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी, एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि जब तक सुनवाई पूरी ना हो जाए, किसी भी रोहिंग्या घुसपैठिये को भारत से भगाया ना जाए क्योंकि ये इन्सान हैं और इन्हें भगाना मानव अधिकारों के विपरीत है। इस फैसले से देश के लोगों का भरोसा सुप्रीम कोर्ट पर से हट रहा है, ऐसा लग रहा है कि देश केंद्र सरकार नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट चला रहा है, केंद्र सरकार खुद से कोई निर्णय नहीं कर पा रही है। 
सुप्रीम कोर्ट पर उठती उंगलियां
अब लोगों कह कहना है कि जब इस देश में सारे फैसले कोर्ट को ही करने है जैसे के रोहिंग्या मुसलमान हिंदुस्तान में रहेंगे या नहीं रहेंगे, कश्मीर में सेना पैलेट गन चलाएगी या कोई और गन चलाएगी, दिवाली पर पटाखे चलाएंगे या नहीं चलाएंगे, मूर्ति विसर्जन होगा कि नहीं होगा, दही हांडी की ऊंचाई कितनी होगी, राम मंदिर बनेगा या नहीं बनेगा। अगर ये सभी फैसले सुप्रीम कोर्ट को ही करने हैं तो चुनाव कराने की क्या जरूरत है, सुप्रीम कोर्ट से ही पूछ लेना चाहिए कि देश का प्रधानमंत्री किसे बनाना चाहिए।  लोग कह रहे हैं कि जब हर फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना है तो चुनी हुई सरकार की फिर क्या जरुरत है, सुप्रीम कोर्ट के जजों को ही यह देश भी चलाना चाहिए।  ये साफ़ हो चुका है कि सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार नहीं भेजना चाहती।  इसके लिए  केंद्र सरकार से साफ़ कह चुका है कि जब तक अदालती कार्यवाही चल रही है, तब तक रोहिंग्यों को वापस ना भेजा जाए। अब दसियों सालों तक कोर्ट में मामला लटकाया जाएगा और तब तक देश की जनता के टैक्स के पैसों से रोहिंग्यों को खाना खिलाया जाएगा।  मगर अब खबर आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मोदी सरकार गुस्से में है।
कांग्रेस की १० साल लगातार सरकार थी लेकिन उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के किसी भी फैसल में चूं तक नहीं की, ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने अपनी पसंद के लोगों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया था। इसलिए वे चुपचाप पड़े रहते थे। लेकिन जैसे ही देश में मोदी सरकार आयी, सुप्रीम कोर्ट के जज जाग उठे, मोदी सरकार के सभी फैसले में हस्तक्षेप करने लगे, वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि देश मोदी सरकार नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के जज चला रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के हर फैसले में दखल दे रहा है, हर फैसले पर रोक लगा रहा है, हिन्दू समाज के सभी त्योहारों पर बैन लगा रहा है, पहले सुप्रीम कोर्ट ने जन्माष्टमी पर गोविंदा पर बैन लगाया और अब दीवाली पर पटाखा जलाने पर बैन लगा दिया।
आप खुद देखिये, भारत सरकार राम मंदिर बनाना चाहती है, देश के ८०फ़ीसदी हिन्दू भी अयोध्या में राम मंदिर चाहते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट बार बार तारीख बढाकर सुनवाई टाल रहा है। यदि केस मुस्लिम पक्ष में जा रहा होता, पता नहीं, कब का निर्णय हो गया होता। इतना ही नहीं, सरकार की ओर से कोर्ट को गुमराह किया गया कि खुदाई में एक ही खम्बा मिला है। जबकि सच्चाई यह है कि खुदाई में खण्डित मूर्तियाँ, फर्श और मन्दिर का मालवा निकला। यदि रामजन्मभूमि पक्षधर की तरफ से इस तरह की गलत बयानी की होती, पता नहीं कितनी धारायें लगाकर उनको दण्डित किया जा चुका होता।
इसके बाद रोहिंग्या का मामला सामने आया, केंद्र सरकार ने साफ़ साफ़ कह दिया कि रोहिंग्या देश की शांति के लिए खतरा हैं, इनके आतंकियों से संबंध रहे हैं। ये लोग म्यांमार में भी आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की बात नहीं मानी और आज तुगलकी फरमान देते हुए उन्हें भगाने पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने आज के आदेश में केंद्र सरकार से कहा कि जब तक इस मामले की सुनवाई हो रही है तब तब उन्हें जबरजस्ती भगाया ना जाए क्योंकि अगर देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है तो मानव अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं।
आपको पता ही है कि राम मंदिर मामले की ३० वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है लेकिन आज तक सुनवाई ही चल रही है, इसी तरह से रोहिंग्या मामले की सुनवाई होती तो आराम से ४०-५०साल लग जाएंगे, मतलब अब रोहिंग्या ४०-५०वर्षों तक भारत में रहेंगे, बच्चे पैदा करेंगे, जिहाद करेंगे, हिंसा और आतंकवाद करेंगे और सुप्रीम कोर्ट में तारीख पर तारीख चलती रहेगी.
अब आप देखिये, सुप्रीम कोर्ट ना तो राम मंदिर बनाने दे रहा है, ना रोहिंग्या को भगाने दे रहा है, ना हिन्दुओं को पटाखा जलाने दे रहा है, एक तरह से सुप्रीम कोर्ट भारत के लिए पाकिस्तान बन गया है, भारत की सरकार और हिंदुस्तान के नागरिकों को अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट से ही लड़ना पड़ रहा है। यह बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है देश के लिए।

राजीव गाँधी ने भी निरस्त किए थे कोर्ट निर्णय

कोर्ट  निर्णय को  पहले भी दो बार तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी द्वारा  मुस्लिम वोटों की खातिर एक बार कलकत्ता हाई कोर्ट के चांदमल चोपड़ा बनाम स्टेट  केस में कुरान की आपत्तिजनक आयतों के विरुद्ध दर्ज़ केस और दूसरा शाहबानो केस निर्णय को संसद के माध्यम से निरस्त किया जा चुका है। और उस समय राजीव गांधी का मुस्लिम समाज के आगे घुटने टेकने के कारण बहुत विरोध हुआ था, लेकिन राजीव गांधी सरकार यानि कांग्रेस सरकार टस से मस नहीं हुई। यदि राजीव गाँधी ने कोर्ट को प्रभावित नहीं किया होता और कलकत्ता हाई कोर्ट को स्वतन्त्र निर्णय लेने दिया होता तो इस्लाम को शांतिप्रिय बताने वालों के मुँह पर करारा तमाचा होता। और शायद भारत इस्लामिक आतंकवाद की आग में नहीं जल रहा होता।  

Calcutta Quran Petition ( to ban Quran in India)

Reader comment on item: Is Allah God?
Submitted by Burton (United States), Dec 2, 2005 at 15:23
Pasted from "Negation in India" by Keonraad Elst.
In 1985 Chandmal Chopra filed a petition with the Calcutta high Court, asking for a ban on the Quran. He added a list with reprehensible verses from the Quran: 29 passages from the Quran (1 to 8 verses in length) that incite violence against unbelievers, 15 which promote enmity, 26 which insult other religions.

Some typical examples are: "Mohammed in Allah's apostle. Those who follow him are merciless for the unbelievers but kind to each other." (Q.48:29) "Make war on them until idolatry does not exist any longer and Allah's religion reigns universally." (Q.8:39, also 2:193) "We break with you; hatred and enmity will reign bnetween us until ye believe in Allahh alone." (Q. 60.4) "The Jews and Christians and the Pagans will burn forever in the fire of hell. They are the vilest of all creatures." (Q.98:51) There are dozens of Quran verses like this which in their unanimity cannot be dismissed as "isolated, mistranslated" little accidents "quoted out of context".

Chandmal Chopra stated in his writ petition: "The cited passages in the Quran... arouse in Muslims the worst sectarian passions and religious fanaticism, which has manifested itself in murders, massacres, plunder, arson, rape and destruction or desecration of sacred places both in historical and in the contemporary period, not only in India but in large parts of the world."

The petition created a lot of furore in Calcutta and abroad. Muslims created street riots. The government intervened and put heavy pressure on the judicial process.
End of paste

.... Enough of appeasement. History has shown that appeseasement of muslims is suicidal. Europeans are learning the hard way.
( Book "Calcutta Quran Petition" can be read on faithfreedom.org)

Note: Opinions expressed in comments are those of the authors alone and not necessarily those of Daniel Pipes. Original writing only, please. Comments are screened and in some cases edited before posting. Reasoned disagreement is welcome but not comments that are scurrilous, off-topic, commercial, disparaging religions, or otherwise inappropriate. For complete regulations, see the "Guidelines for Reader Comments".

The heroic story of the Quran petition


V Sundaram
2006/03/15
        Sita Ram Goel was a fearless intellectual fighter who dedicated his life to the terribly important task of representing the collective suffering of the Hindus in India , testifying to their travails, reasserting their enduring presence and reinforcing their collective memory going back to the dawn of history. Through his powerful writings for more than four decades, he succeeded in explicitly universalising the Hindu crisis in India , thereby giving a greater scope for all round the world to see and understand the Hindu predicament in India . In this context, I cannot help recalling the work done by him to make the people of India aware of the facts and issues relating to The Quran Petition which came up before the Calcutta High Court 21 years ago.
        Three heroic sons of India, namely Sri Chandmal Chopra, advocate of Calcutta High Court, Sri Hamangshu Kumar Chakraborthy and Sri Sital Singh filed an application in the Calcutta High Court under Article 226 of the Constitution of India on 29 March, 1985, praying for a Writ of Mandamus directing the State of West Bengal to declare each copy of the Quran, whether in the original Arabic or in its translation in any of the languages, as forfeited to the government....
.....Thereafter perhaps on account of political pressure from the Congress government in New Delhi and the Marxist government in Calcutta , the learned Judge chose not to proceed in this matter, releasing this matter from her list. As was expected Justice Bimal Chandra Basak dismissed the petition. This judge was also suitably rewarded by the Congress government. All that I am worried about is that there seem to be effective competitors to the likes of Buta Singhs and Natwar Singhs even in the field of judiciary in India !...
.... Soon after publication of the book in July 1986, Indra Sain Sharma, president of the Hindu Raksha Dal, Delhi, and Rajkumar Arya, secretary of the Hindu Raksha Dal, Delhi, were arrested under Sections 153A and 295A of the Indian Penal Code for publishing a poster which had cited 24 Ayats of the Quran under the caption, 'Why riots take place in the country?' They had added the comment: 'These Ayats command the believers (Musalmans) to fight against followers of other faiths' and that 'so long as the Ayats are not removed from the Quran, riots in the country cannot be prevented'. Unlike the hyper politically-inclined Judge of the Calcutta High Court Justice Z S Lohat, Metropolitan Magistrate of Delhi gave a landmark verdict discharging Rajkumar Arya and Indra Sain Sharma on 31 July, 1986. I give below the operative portion from his judgement:
        'It is found that the Ayats are reproduced in the same form as are translated in the said 'Quran Majeed'......

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पीएम मोदी को झुकाना चाहता है कोर्ट

आइये आपको बताते है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में चल क्या रहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट कुछ ख़ास वजहों से रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत से नहीं निकालना चाहता. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट कह रही हैं कि रोहिंग्या आतंकी संगठनों के प्रभाव में हैं, इसके बावजूद कोर्ट मानवता की आड़ में उन्हें देश में ही बसाये जाने के पक्ष में है.सुप्रीम कोर्ट अच्छी तरह जानता है कि यदि उसने रोहिंग्यों को ना निकालने का फरमान जारी कर दिया, तो मोदी सरकार पर रोहिंग्यों को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ जाएगा और पीएम मोदी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.रोहिंग्यों की याचिका ही गैर-कानूनी हैदेश की न्यायपालिका निष्पक्ष फैसले करती है, यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो आपकी ये ग़लतफ़हमी अभी दूर हो जायेगी. यूएन से लेकर कई विदेशी एजेंसियां भी रोहिंग्यों को भारत से ना निकालने पर जोर दे रही हैं, हालांकि मोदी सरकार ने अपना रुख कडा किया हुआ है. सुप्रीम कोर्ट अच्छी तरह जानता है कि यदि उसने रोहिंग्यों को ना निकालने का फरमान जारी कर दिया, तो मोदी सरकार पर रोहिंग्यों को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ जाएगा और पीएम मोदी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.

रोहिंग्यों की याचिका ही गैर-कानूनी है

देश की न्यायपालिका निष्पक्ष फैसले करती है, यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो आपकी ये ग़लतफ़हमी अभी दूर हो जायेगी. दरअसल रोहिंग्या मुस्लिमों की ओर से भारत के संविधान के अनुछेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है, कायदे से ये याचिका तुरंत रद्द की जानी चाहिए थी क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है, ना कि अवैध घुसपैठियों के लिए.
इसके बावजूद ना केवल सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली, बल्कि उस पर सुनवाई करते हुए रोहिंग्यों के पक्ष में फैसला तक सुनाने पर उतारू थे. हालांकि फैसला अगली सुनवाई तक के लिए टाल दिया गया है, मगर साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट फैसला रोहिंग्यों के पक्ष में ही सुनाएगा.
अवलोकन करें:--
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मानवता वगैरहा कि बातें करना तो सब ढोंग है, अगर रत्ती भर मानवता होती इन जजों में तो कश्मीरी पंडित एक दशक से भी अधिक वक़्त से अपने ही राज्य से निर्वासित ना घूम रहे होते. कश्मीर में सेना के जवानों पर पत्थर फेकने वालों पर पेलेट गन चलाने पर रोक ना लगाई गयी होती. दरअसल अंतर्राष्ट्रीय दबाव के सामने भारत की न्यायपालिका कैसे घुटने टेकती है, ये बात साफ़ हो चुकी है.दरअसल रोहिंग्या मुस्लिमों की ओर से भारत के संविधान के अनुछेद 32के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है, कायदे से ये याचिका तुरंत रद्द की जानी चाहिए थी क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है,ना कि अवैध घुसपैठियों के लिए.इसके बावजूद ना केवल सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली, बल्कि उस पर सुनवाई करते हुए रोहिंग्यों के पक्ष में फैसला तक सुनाने पर उतारू थे. हालांकि फैसला अगली सुनवाई तक के लिए टाल दिया गया है, मगर साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट फैसलारोहिंग्यों के पक्ष में ही सुनाएगा.मानवता वगैरहा कि बातें करना तो सब ढोंग है, अगर रत्ती भर मानवता होती इन जजों में तो कश्मीरी पंडित एक दशक से भी अधिक वक़्त से अपने ही राज्य सेनिर्वासित ना घूम रहे होते. कश्मीर में सेना के जवानों पर पत्थर फेकने वालों पर पेलेट गनचलाने पर रोक ना लगाई गयी होती. दरअसल अंतर्राष्ट्रीय दबाव के सामने भारत की न्यायपालिका कैसे घुटने टेकतीहै, ये बात साफ़ हो चुकी है.
अदालतों में लम्बित केसों की चिन्ता  नहीं 
पूरे देश को पता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में इस वक्त लाखों केस लटके पड़े हैं, अदालतों और जजों को उन केसों की सुनवाई करने का वक्त नहीं है, जैसे ही केंद्र सरकार उन मामलों की सुनवाई करने का दबाव डालती है तो सुप्रीम कोर्ट कहता है, जजों की कमी है, पहले कॉलेजियम व्यवस्था के जरिये भर्ती पर सहमति जटाओ... ब्ला ब्ला ब्ला...

आपको जानकार दुःख होगा कि जितने भी मामले लंबित पड़े हैं, वे ज्यादातर गरीबों के हैं, गरीब लोग सुप्रीम कोर्ट के मंहगे वकीलों को अफोर्ड नहीं कर पाते, उनके पास इतने पैसे ही नहीं हैं, जब वे मंहगे वकीलों को पैसे नहीं दे पाते तो उनके केस की बारी भी नहीं आ पाती और उनकी फाइल दबी रहती है लेकिन अमीरों के केसों की फटाफट सुनवाई होती है, वे करोड़ों रुपये वकीलों को दे देते हैं और मामले को रफा रफा करवा लेते हैं। 

एक बात और ध्यान में आयी है, अगर कोई मामला या पेटीशन मोदी सरकार के खिलाफ दायर की जाती है तो सुप्रीम कोर्ट दौड़कर उसकी सुनवाई करता है और केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाता है, कभी कभी तो प्रधान न्यायाधीश खुद मामले की सुनवाई करते हैं। अब आप सोचिये जब इस अदालत के पास गरीबों के मामलों को सुनने का वक्त नहीं है तो ये मोदी सरकार के खिलाफ फटाफट सुनवाई क्यों करते हैं। दुश्मनी की वजह से। सुप्रीम कोर्ट आजकल मोदी सरकार से दुश्मनी निकाल रहा है। मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट से भ्रष्टाचार और भ्रष्ट जजों को समाप्त करना चाहते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि उन्हें जजों की भर्ती करने की परमिशन मिले और वे अपने भाई बंधुओं की भी भर्ती कर सकें। कॉलेजियम व्यवस्था चाहते हैं जबकि इसका विरोध कर रहे हैं। 

जब नोटबंदी चल रही थी, पूरा देश मोदी के इस आदेश से खुश है लेकिन बेईमान नाराज हैं और कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में मोदी सरकार के खिलाफ याचिका डाल रहे हैं, और सभी याचिकाओं की सुनवाई कांग्रेसी वकील कपिल सिब्बल कर रहे हैं। कायदे से कहें तो सुप्रीम कोर्ट को ही समझ जाना चाहिए था कि कांग्रेस के समर्थक या पार्टी के लोग ही याचिकाएं डाल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को खुद उन याचिकाओं को रोककर पहले गरीबों के मामलों की सुनवाई करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। केंद्र सरकार ने भी अनुरोध किया कि ऐसी याचिकाएं रोकी जाएं। जब सुप्रीम कोर्ट को एक याचिका मोदी सरकार के खिलाफ मिली तो उन्होंने तुरंत ही उस याचिका की सुनवाई की। यही नहीं प्रधान न्यायाधीश ने खुद उस मामले की सुनवाई की और मोदी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि नोटबंदी से दंगे हो जाएंगे। उन्होंने केंद्र सरकार को नोटबंदी के लिए 30 नवम्बर का वक्त दिया है। 

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