आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार क्या राज्य में ईसाई धर्म को बढ़ावा दे रही है? यह सवाल खड़ा हुआ है एक आरटीआई से पता चला है कि कांग्रेस में सिद्धारमैया की सरकार बीते कुछ समय में ईसाई संस्थाओं को करोड़ों रुपये दिए हैं। ये पैसे राज्य में बने चर्च की मरम्मत और सुंदरीकरण के नाम पर दिए गए हैं। इसके अलावा बड़ी रकम नए चर्च और क्रिश्चियन कम्युनिटी हॉल बनाने के लिए दी गई है।
अवलोकन करिये:--
अब तक सुना जाता था कि तमिलनाडु की राजनीति का संचालन चर्च से होता है, जो जितना अधिक धन देगा, उसी पार्टी की सरकार बनेगी। हालाँकि इस समाचार की अधिकारित स्तर पर पुष्टि नहीं हो पायी कि चर्चों को किस रूप में धन दिया जाता है। यदि यह चर्चा सत्य है, तो देखना है, कि अब केन्द्र में हुआ सत्ता परिवर्तन तमिलनाडु में चर्चों से होती संचालित राजनीति में भी क्या परिवर्तन लाएगी?
ऐसा करना संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है, क्योंकि धर्म-निरपेक्ष देश होने की वजह से कोई सरकार धार्मिक संस्थाओं को पैसा नहीं दे सकती। जाहिर है यह सवाल उठता है कि खुद को धर्म-निरपेक्ष पार्टी बताने वाली कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी को क्या कर्नाटक सरकार को रोकना नहीं चाहिए? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि ईसाई संस्थाओं की जेब भरने का काम आलाकमान के इशारे पर ही हो रहा है? जबकि हिन्दुओं के जितने मुख्य मन्दिर हैं, लगभग सभी पर सरकार ने बोर्ड की स्थापना कर किसी न किसी रूप सरकारी तिजोरी से उनको जोड़ दिया गया, परन्तु सरकार ने आज तक न किसी मस्जिद और चर्च में आने वाले धन का रिकॉर्ड रखने किसी बोर्ड की स्थापना की? जबकि मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों में हिन्दू मन्दिरों से अधिक धन आ रहा है। दूसरे मन्दिरों में धन भक्तों द्वारा चढ़ावे का आ रहा है, लेकिन मस्जिद, दरगाह और चर्च में दूसरों साधनों धन आता रहता है। उसका हिसाब कौन लेगा? इस सब के अतिरिक्त क्या मन्दिरों से प्राप्त धन को मदरसों, मस्जिद, दरगाह और चर्चों को दिया जा रहा है? हिन्दू का लुटने के लिए है?
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार क्या राज्य में ईसाई धर्म को बढ़ावा दे रही है? यह सवाल खड़ा हुआ है एक आरटीआई से पता चला है कि कांग्रेस में सिद्धारमैया की सरकार बीते कुछ समय में ईसाई संस्थाओं को करोड़ों रुपये दिए हैं। ये पैसे राज्य में बने चर्च की मरम्मत और सुंदरीकरण के नाम पर दिए गए हैं। इसके अलावा बड़ी रकम नए चर्च और क्रिश्चियन कम्युनिटी हॉल बनाने के लिए दी गई है।
अवलोकन करिये:--
अब तक सुना जाता था कि तमिलनाडु की राजनीति का संचालन चर्च से होता है, जो जितना अधिक धन देगा, उसी पार्टी की सरकार बनेगी। हालाँकि इस समाचार की अधिकारित स्तर पर पुष्टि नहीं हो पायी कि चर्चों को किस रूप में धन दिया जाता है। यदि यह चर्चा सत्य है, तो देखना है, कि अब केन्द्र में हुआ सत्ता परिवर्तन तमिलनाडु में चर्चों से होती संचालित राजनीति में भी क्या परिवर्तन लाएगी?
ऐसा करना संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है, क्योंकि धर्म-निरपेक्ष देश होने की वजह से कोई सरकार धार्मिक संस्थाओं को पैसा नहीं दे सकती। जाहिर है यह सवाल उठता है कि खुद को धर्म-निरपेक्ष पार्टी बताने वाली कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी को क्या कर्नाटक सरकार को रोकना नहीं चाहिए? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि ईसाई संस्थाओं की जेब भरने का काम आलाकमान के इशारे पर ही हो रहा है? जबकि हिन्दुओं के जितने मुख्य मन्दिर हैं, लगभग सभी पर सरकार ने बोर्ड की स्थापना कर किसी न किसी रूप सरकारी तिजोरी से उनको जोड़ दिया गया, परन्तु सरकार ने आज तक न किसी मस्जिद और चर्च में आने वाले धन का रिकॉर्ड रखने किसी बोर्ड की स्थापना की? जबकि मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों में हिन्दू मन्दिरों से अधिक धन आ रहा है। दूसरे मन्दिरों में धन भक्तों द्वारा चढ़ावे का आ रहा है, लेकिन मस्जिद, दरगाह और चर्च में दूसरों साधनों धन आता रहता है। उसका हिसाब कौन लेगा? इस सब के अतिरिक्त क्या मन्दिरों से प्राप्त धन को मदरसों, मस्जिद, दरगाह और चर्चों को दिया जा रहा है? हिन्दू का लुटने के लिए है?
ईसाई धर्म को बढ़ावा देने का एजेंडा
26 मार्च 2016 को आरटीआई के तहत कर्नाटक सरकार से कुल 4 सवाल पूछे गए। ये सवाल सरकारी आदेश नंबर- MWD 318MDS2011 (दिनांक 16/01/2012) के हवाले से राज्य अल्पसंख्यक विभाग की तरफ से चर्च को दिए जा रहे फंड के बारे में थे।
पहला सवाल– चर्च की मरम्मत के लिए सरकार की तरफ से साल दर साल कितना फंड दिया गया?
दूसरा सवाल– उन ईसाई संस्थाओं/चर्च के नाम और पते बताएं जिन्हें मरम्मत के नाम पर सरकार से पैसे मिले हैं?
तीसरा सवाल– नए चर्च बनाने पर साल दर साल राज्य सरकार ने कितने पैसे जारी किए?
चौथा सवाल– उन ईसाई संस्थाओं/चर्च के नाम और पते बताएं जिन्हें नए चर्च बनाने के लिए पैसे दिए गए?
दूसरा सवाल– उन ईसाई संस्थाओं/चर्च के नाम और पते बताएं जिन्हें मरम्मत के नाम पर सरकार से पैसे मिले हैं?
तीसरा सवाल– नए चर्च बनाने पर साल दर साल राज्य सरकार ने कितने पैसे जारी किए?
चौथा सवाल– उन ईसाई संस्थाओं/चर्च के नाम और पते बताएं जिन्हें नए चर्च बनाने के लिए पैसे दिए गए?
चर्च के लिए खोला सरकारी खजाना
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खुद को नास्तिक बताते हैं। लेकिन ईसाई संस्थाओं पर पैसे लुटाने की उनकी नीति का ही नतीजा है कि सरकार के 3 साल होने पर 13 मई को क्रिश्चियन संस्थाओं ने बाकायदा उनका अभिनंदन किया। |
2013-14 में कर्नाटक सरकार ने राज्य के 134 गिरिजाघरों को 12.30 करोड़ रुपये दिए। इसके अलावा 6.72 करोड़ रुपये क्रिश्चियन कम्युनिटी सेंटर बनाने के लिए दिए गए। इन कम्युनिटी सेंटरों में ही धर्मांतरण का ज्यादातर काम होता है।2014-15 में यह फंडिंग और बढ़ गई। इस दौरान 125 चर्चों को 16.56 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से दिए गए। इसी तरह 55 ईसाई समुदाय भवन बनाने के लिए करीब 15 करोड़ रुपये बांटे गए। 2015-16 में चर्च की मरम्मत पर 15 करोड़ रुपये बांटे गए। इस दौरान कम्युनिटी सेंटर बनाने के खर्च का ब्योरा नहीं दिया गया।
साल दर साल बढ़ा चर्च का फंड
तीन साल के अंदर चर्च को बांटे जा रहे पैसे में भारी बढ़ोतरी देखी जा सकती है। 2013-14 में कुल मिलाकर 19 करोड़ रुपये दिए गए थे, जोकि 2014-15 में बढ़कर 31.55 करोड़ रुपये हो गए। 2015-16 में रकम कुछ कम हुई, लेकिन इस साल भी 23 करोड़ रुपये ईसाई संस्थाओं की जेब में डाल दिए गए।
कांग्रेस सरकार कर रही है ईसाई धर्म का प्रचार!
अमेरिका जैसे दुनिया के बड़े-बड़े ईसाई देशों में भी सरकारें चर्च बनाने या मरम्मत करने के नाम पर एक भी पैसा नहीं देतीं। कई देशों में ऐसा करना गैर-कानूनी है। सेकुलर देश होने के नाते भारत में भी कोई सरकार किसी धर्म के पूजास्थल बनाने या मरम्मत के लिए पैसे नहीं दे सकती। जहां तक कर्नाटक सरकार का सवाल है उसने राज्य कई कई हिंदू मंदिरों की करोड़ों की संपत्ति सील कर रखी है। इन मंदिरों के रख-रखाव पर इसी में से थोड़ी-बहुत रकम खर्च की जाती है। नतीजा राज्य के सैकड़ों साल पुराने मंदिरों की हालत बेहद जर्जर होती जा रही है।
सिद्धरमैया की सांप्रदायिक राजनीति पुरानी है
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ईसाइयों के अलावा मुस्लिम धर्म के प्रचार पर भी खर्च करती रही है। पिछले साल खबर आई थी कि सिद्धरमैया ने ईसाई और मुस्लिम छात्रों को विदेशों में पढ़ने के लिए पैसे देने का एलान किया था। इसके अलावा मुफ्त जमीन, शादी में 50 हजार रुपये के तोहफे जैसी योजनाएं लाई जा चुकी हैं।
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